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'नेताजी' ने जब-जब बदला दल, जनता ने बदल दिया चेहरा, लेकिन अब यहां टूटेगा सालों पहले का मिथक ?

मुरैना जिले की पांच विधानसभा सीटों में हो रहे उपचुनाव में दल बदल मुद्दा सबसे बड़ा है. क्योंकि यहां चुनावों में टिकट व जीत के लिए पाला बदलने वाले नेताओं को जनता ने कभी स्वीकार नहीं किया है. लेकिन इस बार चुनावी समीकरण जो बन रहे हैं वो जनता के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. अब देखना होगा क्या इस बार ये मिथक टूट पाएगा. पढ़िए पूरी खबर...

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Published : Oct 27, 2020, 6:03 PM IST

Party Change Leader
दल बदलू नेता

मुरैना। मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा दल बदल है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी और नेता सब मंच से एक-दूसरे को गद्दार, धोखेबाज और लोकतंत्र के हत्यारा कहकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. लेकिन मुरैना जिले के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां की जनता ने दल बदल कर चुनाव मैदान में उतरने वाले नेताओं को स्वीकार नहीं किया. चाहे नेता कितना भी प्रभावी क्यों न रहे हो. लेकिन उन्हें चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

मुरैना सीट पर दल बदलू नेताओं की स्थिति

ऐसा नहीं है कि यहां कि जनता ने केवल दलबदल करने वाले नेता को नकारा है बल्कि क्षेत्र बदलने वाले नेताओं को भी जनता ने स्वीकार नहीं किया. हालांकि विधानसभा चुनावों में क्षेत्र बदलने वाले जनसंघ के संस्थापक सदस्य और भाजपा के पित्र पुरुष माने जाने वाले जहार सिंह शर्मा अपवाद हैं. जिन्होंने मुरैना जिले की विभिन्न सीटों पर बदल बदल कर चुनाव लड़ा.

दल बदलने वाले नेताओं का इतिहास

मुरैना जिले में दल बदलने वाले नेता हमेशा चुनाव में हार का सामना करते हैं. ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में आपको बताते हैं जिन नेताओं ने जब-जब दल बदला जनता ने उस क्षेत्र में चेहरा ही बदल दिया.

ऐदल सिंह कंषाना- 1993 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और वह सुमावली से पहली बार विधायक बने. 1998 में बहुजन समाज पार्टी से दूसरी बार विधायक बने. 2002 में बहुजन समाज पार्टी के विधायकों ने कांग्रेस में विलय कर लिया और 2003 के चुनाव में यह कंषाना कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में सुमावली के मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह सिकरवार से हार का सामना करना पड़ा.

Aidal Singh Kansana
ऐदल सिंह कंषाना

सेवाराम गुप्ता- मुरैना विधानसभा सीट पर 1990 में भारतीय जनता पार्टी से विधायक बने. 1993 में भाजपा ने इनका टिकट काट दिया. 1998 में दूसरी बार पार्टी ने मौका दिया तो पुनः चुनाव जीते, लेकिन 2003 में भाजपा ने उनका टिकट काटकर पुलिस की सेवा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए रुस्तम सिंह को उम्मीदवार बनाया गया, तब सेवाराम गुप्ता ने 2003 का चुनाव भाजपा से बगावत कर समाजवादी पार्टी से लड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यही नहीं इन्हें मात्र 80264 वोट मिले.

रविंद्र सिंह तोमर भिडौसा - 2008 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ा और वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार से महज 254 मतों से पीछे रह गए. 2013 में रविंद्र सिंह बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और बहुजन समाज पार्टी के बलवीर दंडोतिया से चुनाव हार गए. 2018 में कांग्रेस ने इनका टिकट काट दिया तो ये अब 2020 उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं.

Ravindra Singh Tomar Bhidosa
रविंद्र सिंह तोमर भिडौसा

सोने राम कुशवाह -जौरा विधानसभा सीट से पहला चुनाव 1993 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और चुनाव जीते. दूसरा चुनाव भी 1998 में बहुजन समाज पार्टी के झंडे तले लड़े और हाथी पर बैठकर भोपाल पहुंचे, लेकिन 2003 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया, तो समता दल से चुनावी समर में उतरे तो जनता ने उन्हें नकार दिया और पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2008 और 2013 में समता दल और 2018 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं मिल सकी.

अजब सिंह कुशवाहा-2013 में सुमावली विधानसभा से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सिंह सिकरवार से चुनाव हार गए. 2018 में दल बदल कर अजब सिंह कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें कांग्रेस के ऐदल सिंह कंषाना से हार का सामना करना पड़ा. इस बार फिर दल बदल कर कांग्रेस में पहुंच गए और कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव में सुमावली से मैदान में हैं .

Ajab Singh Kushwaha, Congress candidate, Sumawali Assembly
अजब सिंह कुशवाह, कांग्रेस प्रत्याशी , सुमावली विधानसभा

रामप्रकाश राजोरिया - 2013 में मुरैना विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भारतीय जनता पार्टी के रुस्तम सिंह से महज पांच हजार वोटों से चुनाव हार गए. 2018 में बसपा ने टिकट काट दिया तो रामप्रकाश राजोरिया ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा जनता ने 54 हजार वोट मिलने वाले रामप्रकाश को महज सात हजार वोटों में ही सिमित कर दिया. इस बार उपचुनाव में मुरैना विधानसभा से रामप्रकाश राजोरिया बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी हैं .

Morena
मुरैना

ये भी पढ़ें : राजनीति नहीं छोड़ी गंगा मैया की सेवा के लिए ब्रेक लिया, 2024 में लड़ूंगी चुनाव: उमा भारती

इस बार टूटेगा मिथक

दल बदल कर चुनाव लड़ना और मंत्री बन कर चुनाव न जीत पाने वाले उम्मीदवार इस बार दिमनी सुमावली अंबा और मुरैना विधानसभा में इस मिथक को तोड़ सकते हैं, क्योंकि सुमावली विधानसभा में कैबिनेट मंत्री ऐदल सिंह कंषाना दल बदल कर भाजपा में आए हैं, तो कांग्रेस उम्मीदवार भी भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आए हैं. दोनों ही प्रत्याशी दलबदलू हैं. ऐसे में जीत किसी की भी हो मिथक टूटेगा.

दिमनी विधानसभा में भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए गिर्राज दंडोतिया सरकार में राज्य मंत्री हैं. तो वहीं पहले बहुजन समाज पार्टी फिर भारतीय जनता पार्टी और अब कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे रविंद्र सिंह तोमर के बीच मुख्य मुकाबला है, इसलिए हार जीत किसी की भी हो मिथक टूटेगा.

Kamlesh Jatav, BJP candidate, Ambah Assembly
कमलेश जाटव, भीजेपी प्रत्याशी, अंबाह विधानसभा

इसी तरह अंबा विधानसभा में कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए कमलेश जाटव मैदान में हैं, तो कांग्रेस से उम्मीदवार सत्य प्रकाश बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कुछ समय पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे. तो भारतीय जनता पार्टी से तीन बार विधायक बने बंसीलाल भाजपा छोड़ समाजवादी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए जीत किसी की भी हो मिथक तो टूटेगा.

मुरैना। मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा दल बदल है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी और नेता सब मंच से एक-दूसरे को गद्दार, धोखेबाज और लोकतंत्र के हत्यारा कहकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. लेकिन मुरैना जिले के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां की जनता ने दल बदल कर चुनाव मैदान में उतरने वाले नेताओं को स्वीकार नहीं किया. चाहे नेता कितना भी प्रभावी क्यों न रहे हो. लेकिन उन्हें चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

मुरैना सीट पर दल बदलू नेताओं की स्थिति

ऐसा नहीं है कि यहां कि जनता ने केवल दलबदल करने वाले नेता को नकारा है बल्कि क्षेत्र बदलने वाले नेताओं को भी जनता ने स्वीकार नहीं किया. हालांकि विधानसभा चुनावों में क्षेत्र बदलने वाले जनसंघ के संस्थापक सदस्य और भाजपा के पित्र पुरुष माने जाने वाले जहार सिंह शर्मा अपवाद हैं. जिन्होंने मुरैना जिले की विभिन्न सीटों पर बदल बदल कर चुनाव लड़ा.

दल बदलने वाले नेताओं का इतिहास

मुरैना जिले में दल बदलने वाले नेता हमेशा चुनाव में हार का सामना करते हैं. ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में आपको बताते हैं जिन नेताओं ने जब-जब दल बदला जनता ने उस क्षेत्र में चेहरा ही बदल दिया.

ऐदल सिंह कंषाना- 1993 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और वह सुमावली से पहली बार विधायक बने. 1998 में बहुजन समाज पार्टी से दूसरी बार विधायक बने. 2002 में बहुजन समाज पार्टी के विधायकों ने कांग्रेस में विलय कर लिया और 2003 के चुनाव में यह कंषाना कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में सुमावली के मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह सिकरवार से हार का सामना करना पड़ा.

Aidal Singh Kansana
ऐदल सिंह कंषाना

सेवाराम गुप्ता- मुरैना विधानसभा सीट पर 1990 में भारतीय जनता पार्टी से विधायक बने. 1993 में भाजपा ने इनका टिकट काट दिया. 1998 में दूसरी बार पार्टी ने मौका दिया तो पुनः चुनाव जीते, लेकिन 2003 में भाजपा ने उनका टिकट काटकर पुलिस की सेवा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए रुस्तम सिंह को उम्मीदवार बनाया गया, तब सेवाराम गुप्ता ने 2003 का चुनाव भाजपा से बगावत कर समाजवादी पार्टी से लड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यही नहीं इन्हें मात्र 80264 वोट मिले.

रविंद्र सिंह तोमर भिडौसा - 2008 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ा और वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार से महज 254 मतों से पीछे रह गए. 2013 में रविंद्र सिंह बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और बहुजन समाज पार्टी के बलवीर दंडोतिया से चुनाव हार गए. 2018 में कांग्रेस ने इनका टिकट काट दिया तो ये अब 2020 उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं.

Ravindra Singh Tomar Bhidosa
रविंद्र सिंह तोमर भिडौसा

सोने राम कुशवाह -जौरा विधानसभा सीट से पहला चुनाव 1993 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और चुनाव जीते. दूसरा चुनाव भी 1998 में बहुजन समाज पार्टी के झंडे तले लड़े और हाथी पर बैठकर भोपाल पहुंचे, लेकिन 2003 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया, तो समता दल से चुनावी समर में उतरे तो जनता ने उन्हें नकार दिया और पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2008 और 2013 में समता दल और 2018 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं मिल सकी.

अजब सिंह कुशवाहा-2013 में सुमावली विधानसभा से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सिंह सिकरवार से चुनाव हार गए. 2018 में दल बदल कर अजब सिंह कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें कांग्रेस के ऐदल सिंह कंषाना से हार का सामना करना पड़ा. इस बार फिर दल बदल कर कांग्रेस में पहुंच गए और कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव में सुमावली से मैदान में हैं .

Ajab Singh Kushwaha, Congress candidate, Sumawali Assembly
अजब सिंह कुशवाह, कांग्रेस प्रत्याशी , सुमावली विधानसभा

रामप्रकाश राजोरिया - 2013 में मुरैना विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भारतीय जनता पार्टी के रुस्तम सिंह से महज पांच हजार वोटों से चुनाव हार गए. 2018 में बसपा ने टिकट काट दिया तो रामप्रकाश राजोरिया ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा जनता ने 54 हजार वोट मिलने वाले रामप्रकाश को महज सात हजार वोटों में ही सिमित कर दिया. इस बार उपचुनाव में मुरैना विधानसभा से रामप्रकाश राजोरिया बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी हैं .

Morena
मुरैना

ये भी पढ़ें : राजनीति नहीं छोड़ी गंगा मैया की सेवा के लिए ब्रेक लिया, 2024 में लड़ूंगी चुनाव: उमा भारती

इस बार टूटेगा मिथक

दल बदल कर चुनाव लड़ना और मंत्री बन कर चुनाव न जीत पाने वाले उम्मीदवार इस बार दिमनी सुमावली अंबा और मुरैना विधानसभा में इस मिथक को तोड़ सकते हैं, क्योंकि सुमावली विधानसभा में कैबिनेट मंत्री ऐदल सिंह कंषाना दल बदल कर भाजपा में आए हैं, तो कांग्रेस उम्मीदवार भी भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आए हैं. दोनों ही प्रत्याशी दलबदलू हैं. ऐसे में जीत किसी की भी हो मिथक टूटेगा.

दिमनी विधानसभा में भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए गिर्राज दंडोतिया सरकार में राज्य मंत्री हैं. तो वहीं पहले बहुजन समाज पार्टी फिर भारतीय जनता पार्टी और अब कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे रविंद्र सिंह तोमर के बीच मुख्य मुकाबला है, इसलिए हार जीत किसी की भी हो मिथक टूटेगा.

Kamlesh Jatav, BJP candidate, Ambah Assembly
कमलेश जाटव, भीजेपी प्रत्याशी, अंबाह विधानसभा

इसी तरह अंबा विधानसभा में कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए कमलेश जाटव मैदान में हैं, तो कांग्रेस से उम्मीदवार सत्य प्रकाश बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कुछ समय पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे. तो भारतीय जनता पार्टी से तीन बार विधायक बने बंसीलाल भाजपा छोड़ समाजवादी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए जीत किसी की भी हो मिथक तो टूटेगा.

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