मुरैना। गणपति बप्पा दस दिनों के लिए भक्तों के घर आ गए हैं. भक्त भी बप्पा का हर्षोंउल्लास के साथ स्वागत कर रहे हैं. मुरैना के दिलीप गोयल ने भी हर बार की तरह इस बार भी गाय के गोबर और पंचगव्य गणपति की मूर्तिया बनाई है. ताकि लोगों से बिना मांगे ही बड़ी धनराशि आ सके और इस धनराशि से आवारा गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम किया जा सके.
पर्यावरण को सुरक्षित रखती है गोबर की प्रतिमा
दिलीप गोयल बताते है कि वह 2005 से गणेश उत्सव के दौरान गणेशजी की गोबर और पंचगव्य से बनी प्रतिमाएं बना रहे हैं. जबकि समय-समय पर अन्य त्योहारों पर भी वे अन्य देवी-देवातों की गोबर से बनी प्रतिमाएं बनाते हैं. दिलीप गोयल कहते हैं कि यह मूर्तियां पर्यावरण को सुरक्षित रखती है. इसलिए हम सभी को प्लास्टिक ऑफ पेरिस की जगह मिट्टी और गोबर से बनी मूर्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए.
गोबर को हिंदू धर्म में माना जाता है पवित्र
गाय का गोबर सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति में बेहद पवित्र माना जाता है. धार्मिक हिसाब से तो गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है और गाय में 33 कोटि देवता निवास करते हैं. इसलिए गाय के गोबर से बनने वाली मूर्तियां धार्मिक महत्व की मूर्तियां भी मानी जाती हैं. दिलीप गोयल ने अपने मेडिकल व्यवसाय से समय निकाल कर दो से 3 घंटे नियमित रूप से अपने परिवार के साथ गाय के गोबर से मूर्ति बनाने का काम शुरू किया जिसके चलते उनका नाम दिलीप गोयल से दिलीप गोबर्ट हो गया.
दूसरे शहरों में भी भेजी जाती है मूर्तियां
दिलीप गोयल की गोबर और पंचगव्य से बनी मूर्तियां ना केवल मुरैना बल्कि देश के बड़े शहरों में जाती हैं. जिनसे एक बड़ी धनराशि भी उन्हें मिलती है. कोरोना काल में दिलीप गोयल ने लगभग डेढ़ हजार से अधिक मूर्तियां बनाई थी और वह सभी मूर्तियां इंदौर मुंबई और अन्य शहरों में ऑर्डर पर भेजी जा चुकी हैं. मुरैना शहर में भी लगभग 2 सैकड़ा से अधिक गणेश मूर्तियां लोग गणेश चतुर्थी के अवसर पर स्थापित करने के लिए ले गए हैं.
एक लाख से अधिक का दान
कोरोना संकट के दौरान आवारा गोवंश की सेवा के लिए दिलीप गोयल गोबर ने मूर्ति के विक्रय से होने वाली आय से पिछले चार माह में एक लाख 21000 से अधिक का दान कर दिया. शासन प्रशासन स्तर पर भी लंबे समय से दिलीप गोयल की कला को सराहा जा रहा है. लेकिन इसे और व्यवसायिक रूप देने एवं गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस काम में तेजी लाने की जरुरत है.