मुरैना। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले माहौल किसी जलसे के जैसा होता है. इन दोनों एमपी में यह चुनावी खुशबू हर तरफ फैली हुई है, क्योंकि अब कभी भी आगामी विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा हो सकती है. सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी हो या विपक्ष की कांग्रेस पार्टी आने वाले चुनाव के लिए पूरा दमखम झोंक रहे हैं, खासकर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में तो सभी विधानसभाओं पर लोगों की निगाहें टिकी हुई है, क्योंकि दिमनी विधानसभा से खुद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस बार प्रत्याशी घोषित हुए हैं. लेकिन जौरा विधानसभा सीट पर अभी सस्पेंस बरकरार है, तो चलिए जानते हैं क्या बना रहे हैं इस बार जौरा विधानसभा सीट पर चुनावी समीकरण. क्या भारतीय जनता पार्टी अपनी सीट बचा पाएगी या फिर फिर कांग्रेस पार्टी काबिज हो जाएगी?
जौरा विधानसभा की खासियत: मुरैना जिले की जौरा विधानसभा क्षेत्र वैसे तो चंबल के नजदीक बना क्षेत्र है, जो यहां वाटर टूरिज्म और पर्यटकों को आकर्षित करता है. इसके साथ ही इकाई क्षेत्र में पगारा रिजर्वायर भी है जो संकलित जल कैनाल्स के जरिये क्षेत्र के साथ साथ पड़ौसी जिलों में कृषि के लिए पानी उपलब्ध करता है. वहीं हाल ही में मुख्यमंस्त्री शिवराज सिंह चौहान ने जौरा को नगर परिषद से नगर पालिका बनाने की घोषणा कर दी, जिससे आगामी समय मे क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी और लॉकन को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी.
जौरा विधानसभा सीट के मतदाता: जौरा विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 07 की मतदाताओं की बात करें तो विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता (2.8.2023) के अनुसार 2,54,449 हैं, इनमें पुरुष मतदाता 1,37,545 है और महिला मतदाता 1,16,895 हैं. इनके साथ ही विधानसभा क्षेत्र में 9 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं, जो आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.
जौरा विधानसभा सीट के जातीय समीकरण: जौरा विधानसभा क्षेत्र में हिंदुओं की आबादी 95% है, जबकि वहीं इस क्षेत्र में 3.87% मुसलमान वोटर है. इनके साथ-साथ यहां इसी जैन, सिख और बौद्ध धर्म के साथ अन्य समाज के लोग भी रहते हैं. इस क्षेत्र पर कुशवाह, ब्राह्मण, धाकड़ और दलित मतदाताओं का दबदबा रहता है, लेकिन जातिगत आधार ओर या क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य है. यहां ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब 48 हजार है, वहीं क्षत्रिय वोटर की संख्या 35000 से अधिक है जो ज्यादातर कुशवाह और सिकरवार समाज से आते हैं. इसके अलावा अनुसूचित जाति वर्ग की वोटर संख्या भी मजबूत है, करीब 25 हजार, जिनमें जाटवों की संख्या ज्यादा है. वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले कुशवाहा समाज और धाकड़ समाज के भी करीब 23 हजार मतदाता है, इसके साथ ही मुसलमान वोटरों की संख्या करीब 10000 है.
जौरा विधानसभा सीट का पॉलिटिकल सिनारियो: मध्य प्रदेश निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 4 जौरा विधानसभा सीट कई महीनो में मध्य प्रदेश की राजनीति में अपनी खास पहचान रखती है, भले ही 2020 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ था, लेकिन यह चुनाव सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफा की वजह से नहीं बल्कि तत्कालीन कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन की वजह से हुआ था. इस विधानसभा सीट के इतिहास के बारे में बात करें तो यह सीट कभी किसी एक दल की बिपति नहीं रही, ना ही जनता ने कभी लगातार एक ही पार्टी पर भरोसा किया. यहां अब तक 13 बार चुनाव हुए, जिनमें 4 बार सीट कांग्रेस के खाते में थी तो 2 बार निर्दलीय प्रत्याशी भी जीते. बहुजन समाजवादी पार्टी भी 3 बार क्षेत्र में अपना विधायक बन चुकी है, इसके अलावा प्रजातांत्रिक, सोशलिस्ट, जनता दल, जनता पार्टी को भी यहां एक-एक बार मौका मिला है. वहीं भाजपा भी उपचुनाव मिला कर दो बार जीती है.
खास बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी लगातार 10 सालों तक प्रदेश की सरकार में गुजार चुकी थी, बावजूद इसके 2013 में जाकर पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने जोड़ा विधानसभा सीट पर अपना विधायक बनाया 2018 में यह सेट एक बार फिर कांग्रेस के हाथ में गई, तो उपचुनाव होने पर खाली हुई. सीट बीजेपी ने एक बार फिर पूर्व विधायक सूबेदार सिंह राजौधा के जरिये हासिल कर ली. अब 2023 के चुनाव को लेकर जौरा विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों को लेकर अब तक स्थिति साफ नहीं है, भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर अपने विधायक सूबेदार सिंह को मौका दे सकती है, लेकिन पार्टी के कुछ और नेता भी सर्वे में शामिल हैं. वहीं कांग्रेस एक बार फिर अपने पूर्व प्रत्याशी रहे पंकज उपाध्याय पर दावा खेल सकती है, माना जा रहा है कि इस बार भी इस सीट पर हमेशा की तरह त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.
जौरा विधानसभा सीट का 2020 उपचुनाव का रिजल्ट: पूरे प्रदेश में 2020 में हुए उपचुनाव के दौरान जौरा विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हुए था, जो तत्कालीन विधायक की मृत्यु के चलते हुए उस चुनाव में बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार सिंह राजौधा को एक बार फिर मौका दिया था. चुनाव हुए तो उन्हें जनता ने उपचुनाव में 67599 वोट दिए, वहीं कांग्रेस ने इस सीट को अपने कब्जे में बरकरार रखने के लिए पंकज उपाध्याय को टिकट दिया था. पंकज को 54121 वोट मिले, वहीं तीसरे नंबर पर बहुजन समाजवादी पार्टी के सोनेराम कुशवाह 48285 वोट के साथ रहे. चुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के सूबेदार सिंह इस चुनाव में 13478 वोट से जीते.
जौरा विधानसभा सीट का 2018 का रिजल्ट: साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यह कांग्रेस पार्टी के खाते में गई थी. कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व विधायक बनवारी लाल शर्मा एक बार फिर मैदान में थे, जिन्हें जनता ने 56187 वोट देकर विधायक बनाया था. वहीं इस चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी के मनीराम धाकड़ 41014 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे, 2018 के चुनाव में पूर्व विधायक सूबेदार सिंह राजौधा भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हर का सामना करना पड़ा और वे तीसरे स्थान पर रहे. सूबेदार सिंह राजौधा को इस चुनाव में 37988 वोट मिले थे, इस चुनाव में कांग्रेस 15173 वोटो से जीती थी.
जौरा विधानसभा सीट का 2013 का रिजल्ट: भारतीय जनता पार्टी के लिए 2013 का चुनाव बहुत खास था, क्योंकि इसी चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी जौरा विधानसभा सीट पर जीती थी. उस दौरान भारतीय जनता पार्टी ने सूबेदार सिंह राजौधा पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था, सूबेदार सिंह को जनता का प्यार मिला और उन्हें चुनाव में 42421 वोट मिले. वहीं कांग्रेस ने बनवारी लाल शर्मा को टिकट दिया था, जिन्हें चुनाव में 39923 वोट से काम चलाना पड़ा. नतीजा बेहद कम मार्जिन के साथ 2498 वोट से सीट बीजेपी के खाते में चली गई थी.
जौरा विधानसभा सीट का 2008 का रिजल्ट: 2008 का चुनाव बसपा के हक में था बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मनीराम धाकड़ को इस चुनाव में 36485 वोट हासिल हुए थे, वह कुल वोट के 31.39 प्रतिशत वोट मत के साथ विजय घोषित हुए थे. वहीं दूसरे नंबर पर कांग्रेस के वृंदावन सिंह थे, जिन्हें जनता ने 27890 वोट दिए थे. इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में तीसरे स्थान पर थी. नागेंद्र तिवारी उनके प्रत्याशी थे, जिन्हें कुल 17610 वोट मिले थे. इस चुनाव में बसपा 8595 वोट के अंतर से जीती थी.
जौरा विधानसभा सीट के स्थानीय मुद्दे: इस क्षेत्र में भी प्रदेश के कई इलाकों की तरह बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, यहां शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं का अभाव क्षेत्र के युवाओं को पलायन के लिए मजबूर करता है. विधानसभा क्षेत्र में पेयजल समस्या भी एक प्रभावी मुद्दा है, यहां पगारा बांध एकमात्र पेयजल आपूर्ति की उम्मीद पैदा करता है, लेकिन लंबे समय से इस समस्या का समाधान किसी नेता ने नहीं कर पाया है. इसका कारण है कि सरकारी योजनाएं बनते-बनते रुक जाती हैं. वर्तमान में नगरीय क्षेत्र में पेयजल की आपूर्ति निकाय द्वारा की जाती है, जो पर्याप्त नहीं है, जिसकी वजह से पगारा बांध से पेयजल आपूर्ति योजना की मांग समय-समय पर उठाती रही है. वहीं जंगली क्षेत्र में गिने जाने वाले पहाड़गढ़ के ग्रामीण आज भी पक्की सड़क का सपना देखते हैं, यह 50-50 किलोमीटर पहाड़गढ़ मानपुर और पहाड़गढ़ सहसराम मार्ग पर पक्की सड़क स्वीकृत होने के बाद भी अधर में अटकी हुई है. वहीं पथरीला क्षेत्र होने की वजह से इस क्षेत्र में भी जल संकट लोगों के लिए एक बड़ी समस्या है, इसके साथ-साथ जौरा विधानसभा क्षेत्र में बना कैलारस शक्कर कारखाना भी स्थानीय लोगों के लिए हम चुनावी मुद्दा है. इस पर अब किसी दल की कोई रुचि नजर नहीं आती, लेकिन जौरा कैलारस पहाड़गढ़ क्षेत्र के किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है. इसी कारखाने की वजह से इन क्षेत्रों में गन्ने की अच्छी खेती और उसकी फसल का अच्छा मुनाफा किसानों को मिलता था, लेकिन बीते कई वर्षों से यह कारखाना बंद पड़ा है और अब ना तो इस पर बीजेपी और ना ही कांग्रेस नहीं कोई दूसरा दाल चर्चा तक करना चाहता है.