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मजबूरों के 'मसीहा': युवा समाजसेवी कर रहे बाढ़ प्रभावितों की मदद, रेस्क्यू से लेकर रहने-खाने तक की कर रहे व्यवस्था

मुरैना में बाढ़ प्रभावितों की मदद के लिए अब युवा समाजसेवी भी आगे आए हैं. प्रशासन के दावों की पोल खुलने के बाद अब यही समाजसेवी लोगों के रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं.

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मजबूरों के 'मसीहा'
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Published : Aug 5, 2021, 5:03 PM IST

मुरैना। बाढ़ से निपटने की पूरी तैयारी के प्रशासन कितने भी दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हो चुका है. बाढ़ प्रभावित 90 गांव के लोग रहने और खाने के मोहताज हो गए हैं, जिनकी मदद के लिए युवा समाजसेवी आगे आए हैं. ये समाजसेवी अपनी तरफ से बाढ़ प्रभावितों के रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं. इतना ही नहीं बाढ़ में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए भी ये समाजसेवी दिन रात काम कर रहे हैं.

युवा समाजसेवी कर रहे बाढ़ प्रभावितों की मदद

प्रशासन के दावों की खुली पोल

चंबल और क्वारी नदी के उफान पर आने से 90 से ज्यादा गांवों में जलसैलाब आया हुआ है. कई गांवों को प्रशासन ने खाली करवाया, लेकिन बाढ़ से घिरे जिन गांवों में तीन दिन बाद भी प्रशासन की मदद नहीं पहुंची, वहां के ग्रामीण खाली बर्तन, बोतल और टायर ट्यूब की नाव बनाकर खुद की जान बचा रहे हैं. प्रशासन ने कुछ ग्रामीणों का रेस्क्यू कर उनको दूसरी जगह शिफ्ट किया है, लेकिन यह लोग किस हाल में है, इसकी सुध कोई नहीं ले रहा है. रेस्क्यू किए गए सैकड़ों लोग भूख से बेहाल है.

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बाढ़ से हाल बेहाल

समाजसेवी संस्थाओं ने संभाला मोर्चा

बाढ़ प्रभावित लोगों को मदद मुहैया नहीं होने पर समाजसेवियों ने मोर्चा संभाल लिया है. समाजसेवी संस्थाएं बाढ़ में फंसे लोगों का रेस्क्यू कर रही हैं. उनके भोजन और रहने की भी व्यवस्था की जा रही है. ग्रामीणों से लेकर समाजसेवी संस्थाओं ने तक प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है.

चंबल नदी का 'रौद्र' रूप: 89 गांव बाढ़ प्रभावित, ग्रामीणों तक नहीं पहुंच रही सरकारी मदद, ईटीवी भारत पर जानें ग्राउंड रिपोर्ट

युवा समाजसेवी ने स्टीमर के लिए दिलाया पेट्रोल

सबलगढ़ तहसील के अटार मदनपुरा गांव में 20 लोग बाढ़ में फंस गए थे. सूचना मिलने पर प्रशासन ने चंबल नदी में चलने वाले स्टीमर को हायर किया, लेकिन इस स्टीमर में डीजल नहीं था. डेढ़ घंटे में भी प्रशासन 5 लीटर डीजल का इंतजाम नहीं कर पाया. उधर, बाढ़ में फंसे लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे. यह देखकर सबलगढ़ के कुछ युवाओं ने पेट्रोल पंप से डीजल खरीदकर स्टीमर को मुहैया कराया, तब जाकर 20 लोगों का रेस्क्यू किया गया.

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लोगों का रेस्क्यू

बीजेपी नेता ने भेजे खाने के पैकेट

सबलगढ़ में रायढी राधेन से 100 से ज्यादा ग्रामीणों का आपदा प्रबंधन की टीम ने मोटर बोट के जरिए रेस्क्यू किया. लेकिन प्रशासन की तरफ से जहां इन्हें बसाया गया है, वहां भोजन-पानी का कोई इंतजाम नहीं था, गांव के छोटे बच्चे भूखे थे, उनकी हालत देखकर बीजेपी नेता सौरभ सिकरवार ने भोजन के पैकेट बनवाकर वितरित करवाए.

बाढ़ का कहर: विदिशा में कई गावों का संपर्क जिला मुख्यालय से टूटा, घर गिरने से एक घायल

प्रशासन पर गंभीर आरोप

सबलगढ़ से लेकर अंबाह पोरसा तक चंबल के किनार बसे गांव के लोगों को या तो रेस्क्यू कर निकाला गया है या फिर अभी गांव मेंं फंसे हुए हैं. प्रशासनिक अधिकारियों ने बैठक का निर्देश तो जारी कर दिया, लेकिन उन पर अमल कर पाना बड़ी बात है. मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान लोगों के प्रति अति संवेदनशील हैं, लेकिन मुरैना कलेक्टर के यहां तो उनके आदेशों का भी पालन नहीं हो रहा है. उसका कारण यह है कि बाढ़ में फंसे ग्रामीण या तो गांव में फंसे हैं या भूख से बिलख रहे हैं.

मुरैना। बाढ़ से निपटने की पूरी तैयारी के प्रशासन कितने भी दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हो चुका है. बाढ़ प्रभावित 90 गांव के लोग रहने और खाने के मोहताज हो गए हैं, जिनकी मदद के लिए युवा समाजसेवी आगे आए हैं. ये समाजसेवी अपनी तरफ से बाढ़ प्रभावितों के रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं. इतना ही नहीं बाढ़ में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए भी ये समाजसेवी दिन रात काम कर रहे हैं.

युवा समाजसेवी कर रहे बाढ़ प्रभावितों की मदद

प्रशासन के दावों की खुली पोल

चंबल और क्वारी नदी के उफान पर आने से 90 से ज्यादा गांवों में जलसैलाब आया हुआ है. कई गांवों को प्रशासन ने खाली करवाया, लेकिन बाढ़ से घिरे जिन गांवों में तीन दिन बाद भी प्रशासन की मदद नहीं पहुंची, वहां के ग्रामीण खाली बर्तन, बोतल और टायर ट्यूब की नाव बनाकर खुद की जान बचा रहे हैं. प्रशासन ने कुछ ग्रामीणों का रेस्क्यू कर उनको दूसरी जगह शिफ्ट किया है, लेकिन यह लोग किस हाल में है, इसकी सुध कोई नहीं ले रहा है. रेस्क्यू किए गए सैकड़ों लोग भूख से बेहाल है.

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बाढ़ से हाल बेहाल

समाजसेवी संस्थाओं ने संभाला मोर्चा

बाढ़ प्रभावित लोगों को मदद मुहैया नहीं होने पर समाजसेवियों ने मोर्चा संभाल लिया है. समाजसेवी संस्थाएं बाढ़ में फंसे लोगों का रेस्क्यू कर रही हैं. उनके भोजन और रहने की भी व्यवस्था की जा रही है. ग्रामीणों से लेकर समाजसेवी संस्थाओं ने तक प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है.

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युवा समाजसेवी ने स्टीमर के लिए दिलाया पेट्रोल

सबलगढ़ तहसील के अटार मदनपुरा गांव में 20 लोग बाढ़ में फंस गए थे. सूचना मिलने पर प्रशासन ने चंबल नदी में चलने वाले स्टीमर को हायर किया, लेकिन इस स्टीमर में डीजल नहीं था. डेढ़ घंटे में भी प्रशासन 5 लीटर डीजल का इंतजाम नहीं कर पाया. उधर, बाढ़ में फंसे लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे. यह देखकर सबलगढ़ के कुछ युवाओं ने पेट्रोल पंप से डीजल खरीदकर स्टीमर को मुहैया कराया, तब जाकर 20 लोगों का रेस्क्यू किया गया.

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लोगों का रेस्क्यू

बीजेपी नेता ने भेजे खाने के पैकेट

सबलगढ़ में रायढी राधेन से 100 से ज्यादा ग्रामीणों का आपदा प्रबंधन की टीम ने मोटर बोट के जरिए रेस्क्यू किया. लेकिन प्रशासन की तरफ से जहां इन्हें बसाया गया है, वहां भोजन-पानी का कोई इंतजाम नहीं था, गांव के छोटे बच्चे भूखे थे, उनकी हालत देखकर बीजेपी नेता सौरभ सिकरवार ने भोजन के पैकेट बनवाकर वितरित करवाए.

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प्रशासन पर गंभीर आरोप

सबलगढ़ से लेकर अंबाह पोरसा तक चंबल के किनार बसे गांव के लोगों को या तो रेस्क्यू कर निकाला गया है या फिर अभी गांव मेंं फंसे हुए हैं. प्रशासनिक अधिकारियों ने बैठक का निर्देश तो जारी कर दिया, लेकिन उन पर अमल कर पाना बड़ी बात है. मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान लोगों के प्रति अति संवेदनशील हैं, लेकिन मुरैना कलेक्टर के यहां तो उनके आदेशों का भी पालन नहीं हो रहा है. उसका कारण यह है कि बाढ़ में फंसे ग्रामीण या तो गांव में फंसे हैं या भूख से बिलख रहे हैं.

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