मुरैना/ग्वालियर। सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर छिड़ा संग्राम अब खूनी रंग (Controversy Over Caste of Emperor Mihir Bhoj) लेने लगा है, जाति की जंग में ही ग्वालियर और मुरैना में गुर्जर और क्षत्रिय समाज के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं. मुरैना में सड़क जाम के बाद बानमोर में 12 से अधिक युवकों ने गुरुवार रात मुरैना और ग्वालियर के बीच चलने वाली बसों में तोड़फोड़ की थी, तब बस में सवार यात्री अपनी जान बचाने के लिए चीख-पुकार मचा रहे थे, वर्ग संघर्ष की आशंका को देखते हुए जिला प्रशासन ने आगामी तीन दिनों तक मुरैना में स्कूल व कोचिंग संस्थान बंद रखने का आदेश देर रात जारी कर दिया था. हालांकि, अब मुरैना में धारा-144 लगा दी गई है.
वर्गों में बदलने लगी जाति पर छिड़ी जंग
इस विवाद की वजह है कि इसी महीने के दूसरे सप्ताह में ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की एक मूर्ति लगाई गई थी, इस मूर्ति के नीचे लगे शिलालेख में उन्हें गुर्जर बताया गया है, बस यही बात क्षत्रियों को नागवार गुजरी और इसके विरोध (Gurjar Kshatriya Face to Face) में वो सड़क पर आ गए. अब दो जातियों के बीच छिड़ी इस जंग का दायरा बढ़ता जा रहा है, जोकि अब धीरे-धीरे वर्ग संघर्ष का रूप लेता जा रहा है. जब ये विवाद सुलग रहा था, तभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार यानि 22 सितंबर को ग्रेटर नोएडा के दादरी में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था, जिसके बाद इस आग को और हवा मिल गई.
ग्वालियर में NSA के तहत होगी कार्रवाई
विवाद के बाद ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह और एसपी अमित सांघी ने दोनों जातियों के नेताओं की बैठक बुलाई और कहा कि सम्राट मिहिर किसी भी वंश या समुदाय के हों, पर उनको लेकर शहर का माहौल न बिगाड़ा जाए, यदि चेतावनी के बाद भी कोई नहीं मानता है और इस तरह के काम करता है, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है तो उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व जिलाबदर की कार्रवाई की जाएगी क्योंकि मामला न्यायालय में है और जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता है, तब तक किसी तरह का विवाद न करें. इस पर दोनों पक्षों ने वादा किया है कि वह किसी तरह का कोई विवाद नहीं करेंगे, साथ ही पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेंगे.
सम्राट मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक थे
इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालात और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.
जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे
हालांकि, सम्राट मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटी हैं, जिनमें इनके गुर्जर या राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद हुआ है, गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे, जबकि राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में मिला है. वर्तमान में यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.
इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है, गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी, जबकि गुरुवार को ही राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी.
'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.
ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.
सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत
सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.