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बिना किसी जोड़ के आज भी खड़ा है विशाल ककनमठ शिव मंदिर, 11वीं शताब्दी में हुआ था निर्माण - 11वीं शताब्दी का शिव मंदिर

मुरैना से 40 किलोमीटर दूर रानी ककनावती के लिए बनवाया गया ककनमठ शिव मंदिर आज भी अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है. ये विशाल मंदिर 110 फीट ऊंचा हैं, जिसमें 52 खंभे हैं.

Kakanamath Shiv Temple
ककनमठ शिव मंदिर
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Published : Jul 20, 2020, 1:32 PM IST

मुरैना। श्रावण माह में देशभर के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हर एक शिवालय की अपनी मान्यता, विशेषता और अहमियत है. मुरैना में भी एक खास शिवालय है, जहां मंदिर निर्माण में बड़े-बड़े पत्थर की शिलाओं का उपयोग किया गया है. इन पत्थर के शिलाओं को जोड़ने के लिए न तो किसी गारे का उपयोग किया गया है और न ही किसी मिट्टी- सीमेंट का. इस मंदिर को ककनमठ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां लोगों की गहरी आस्था है.

ककनमठ शिव मंदिर

11वीं शताब्दी में बना मंदिर

जिला पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा बताते हैं कि, 11वीं शताब्दी में कच्छप घात राजा ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. ककनावती के इष्ट देव भगवान भोलेनाथ थे, इसलिए राजा कच्छप घात ने इस विशालकाय मंदिर का निर्माण करवाया. ये मंदिर 110 फीट ऊंचा हैं, जिसमें 52 खंभे हैं.


रानी के नाम पर है मंदिर का नाम
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कच्छप राजवंश की राजधानी सिहोनिया के तत्कालीन राजा कच्छप घात ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. जानकारी के मुताबिक रानी ककनावती भगवान भोलेनाथ की अनन्य उपासक थीं. वे ज्यादातर भोलेनाथ की पूजा में लीन रहती थीं. राजा ने रानी की पूजा-अर्चना और साधना की सुविधा को ध्यान में रखते हुए, इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया था. पुरातत्व अधिकारी शर्मा ने बताया कि, रानी ककनावती के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ककनमठ शिव मंदिर रखा गया है.

ये भी पढ़ें- आज भी श्रद्धा का केंद्र है अतिप्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, देवी अहिल्याबाई ने कराई थी स्थापना

बताया जाता है कि, रानी ककनावती जब तक भगवान शिव की आराधना नहीं कर लेती थीं, तब तक वो न ही अन्न ग्रहण करती थीं और न ही पानी पीती थीं. वर्तमान में मंदिर पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है और जिला पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है.

मंदिर में नहीं है कोई जोड़
सदियों पुराने इस मंदिर की ये विशेषता है कि, इसके निर्माण में बड़े-बड़े पत्थर की शिलाओं का उपयोग किया गया है, लेकिन उन्हें जोड़ने के लिए किसी भी तरह के सीमेंट कंक्रीट या गारे का उपयोग नहीं किया गया है. यहां पत्थर एक-दूसरे से ग्रिप के माध्यम से जुड़े हैं. यही कारण है कि, विशालकाय 110 फीट ऊंचा यह शिव मंदिर आज भी यथास्थिति में विद्यमान है.

ककनमठ शिव मंदिर की सिहोनिया क्षेत्र के समूचे ग्रामीण अंचल में विशेष मान्यता है और यहां सैकड़ों की संख्या में लोग श्रावण के महीने में कांवण लाकर भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक करते हैं, लेकिन इस साल लॉकडाउन होने के कारण कांवण यात्रा प्रतिबंधित रही. सावन के हर सोमवार बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आकर भगवान शिव की उपासना करते हैं.

मुरैना। श्रावण माह में देशभर के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हर एक शिवालय की अपनी मान्यता, विशेषता और अहमियत है. मुरैना में भी एक खास शिवालय है, जहां मंदिर निर्माण में बड़े-बड़े पत्थर की शिलाओं का उपयोग किया गया है. इन पत्थर के शिलाओं को जोड़ने के लिए न तो किसी गारे का उपयोग किया गया है और न ही किसी मिट्टी- सीमेंट का. इस मंदिर को ककनमठ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां लोगों की गहरी आस्था है.

ककनमठ शिव मंदिर

11वीं शताब्दी में बना मंदिर

जिला पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा बताते हैं कि, 11वीं शताब्दी में कच्छप घात राजा ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. ककनावती के इष्ट देव भगवान भोलेनाथ थे, इसलिए राजा कच्छप घात ने इस विशालकाय मंदिर का निर्माण करवाया. ये मंदिर 110 फीट ऊंचा हैं, जिसमें 52 खंभे हैं.


रानी के नाम पर है मंदिर का नाम
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कच्छप राजवंश की राजधानी सिहोनिया के तत्कालीन राजा कच्छप घात ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. जानकारी के मुताबिक रानी ककनावती भगवान भोलेनाथ की अनन्य उपासक थीं. वे ज्यादातर भोलेनाथ की पूजा में लीन रहती थीं. राजा ने रानी की पूजा-अर्चना और साधना की सुविधा को ध्यान में रखते हुए, इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया था. पुरातत्व अधिकारी शर्मा ने बताया कि, रानी ककनावती के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ककनमठ शिव मंदिर रखा गया है.

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बताया जाता है कि, रानी ककनावती जब तक भगवान शिव की आराधना नहीं कर लेती थीं, तब तक वो न ही अन्न ग्रहण करती थीं और न ही पानी पीती थीं. वर्तमान में मंदिर पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है और जिला पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है.

मंदिर में नहीं है कोई जोड़
सदियों पुराने इस मंदिर की ये विशेषता है कि, इसके निर्माण में बड़े-बड़े पत्थर की शिलाओं का उपयोग किया गया है, लेकिन उन्हें जोड़ने के लिए किसी भी तरह के सीमेंट कंक्रीट या गारे का उपयोग नहीं किया गया है. यहां पत्थर एक-दूसरे से ग्रिप के माध्यम से जुड़े हैं. यही कारण है कि, विशालकाय 110 फीट ऊंचा यह शिव मंदिर आज भी यथास्थिति में विद्यमान है.

ककनमठ शिव मंदिर की सिहोनिया क्षेत्र के समूचे ग्रामीण अंचल में विशेष मान्यता है और यहां सैकड़ों की संख्या में लोग श्रावण के महीने में कांवण लाकर भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक करते हैं, लेकिन इस साल लॉकडाउन होने के कारण कांवण यात्रा प्रतिबंधित रही. सावन के हर सोमवार बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आकर भगवान शिव की उपासना करते हैं.

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