मुरैना। सावन का पूरा महीना विशेष प्रकार के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. कभी अच्छी बारिश की शुरुआत के लिए हरियाली महोत्सव मनाया जाता है, तो कभी फसलों की शुरुआत से किसानों का मन प्रफुल्लित होता है. वहीं बहनों के लिए सावन महीना हिंडोली और मल्हार सहित रक्षाबंधन के विशेष त्योहार के लिए प्रसिद्ध है. आधुनिकता के दौर में अब सावन के महीने में ना तो हरियाली महोत्सव को गंभीरता से लिया जाता है और ना ही बहनें हिंडोले झूलती कहीं दिखाई देती हैं. झूलते समय गाए जाने वाले लोकगीत मल्हार की गूंज भी अब कहीं खो गई है.
वर्तमान दौर में संचार क्रांति ने आदमी की व्यस्तता इतनी बढ़ा दी है कि वह समाज, संस्कृति और परंपराओं के लिए उसके पास समय ही नहीं है. हर शख्स मोबाइल और कंप्यूटर में अपनी एनर्जी को लगाने से खुद को योग्य और आधुनिक मानने लगा है. मोबाइल की व्यस्तता में इंसान इतना खो गया है कि वह हर पल आभासी दुनिया में ही खोया रहता है. किसी को एक-दूसरे से बात करने तक की फुर्सत नहीं है. एक समय था जब लोग चाहे शहर के हों या ग्रामीण क्षेत्र के त्योहारों को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते थे.
सावन महीने में महिलाएं सामूहिक रूप से झूला झूलते हुए सुहाने मौसम का आनंद लेती थीं. अब इन झूलों की जगह सास-वहू वाले नाटकों ने ले ली है, जिस वजह से उनके मन में भी कई तरह की उधेड़बुन लगी रहती है. आज के इस तकनीकी युग में भारतीय त्योहार, परंपरा और संस्कृति गुम होती जा रही है. कुछ महिलाओं का मानना है इसके पीछे एकल परिवार होना और व्यवसाय में पुरुषों की व्यस्तता है. त्योहारों और परंपराओं को अब सिर्फ एक रस्म की तरह निभाया जाने लगा है. यही वजह है कि लोग अब त्योहारों पर एक-दूसरे के घर ना जाकर सोशल मीडिया से ही बधाई देकर इतिश्री कर लेते हैं.
लोग एक-दूसरे से अंदरुनी तौर पर कटते जा रहे हैं, सिर्फ बाहरी ढकोसले ही रह गए हैं. कुछ लोगों का मानना है कि युवा पीढ़ी पढ़ाई में इतनी व्यस्त रहती है कि अब परिवार के बड़े-बुजुर्गों के पास पर्याप्त समय नहीं रहता है. यही वजह है कि अब कई लोग उन पुराने पलों को भी सोशल मीडिया पर याद करते हैं. आज भी लोग उन पुरानी परंपराओं, संस्कृति को याद करते हैं तो मन खुशी से झूम उठता है और रह जाती है सिर्फ मुस्कान.