मुरैना। कोरोना वायरस की चैन को तोड़ने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान सभी परिवार संग अपने- अपने घरों में कैद रहे. लेकिन कई लोग ऐसे हैं, जो अपने परिवार से दूर यानि वृद्धाश्रम में रह रहे हैं. बुजुर्गों के लिए घर- परिवार से बड़ा कुछ नहीं, लेकिन कई वृद्धजन ऐसे हैं, जिनके लिए अब वृद्धाश्रम ही उनका घर और वहां रह रहे लोग ही उनका परिवार हैं. ईटीवी भारत की टीम ने ऐसे ही बुजुर्गों से बातचीत की और जाना कि, कोरोना काल में वो अपना दिन कैसे व्यतीत कर रहे हैं.
कोरोना काल में बुजुर्ग कैस बीता रहे समय ?
आधुनिकता के तरफ तेजी से बढ़ते समाज में बुजुर्गों के प्रति लोगों का नरजिया बदलता जा रहा है. यही वजह है कि, ओल्ड एज होम यानी वृद्धाश्रम की जरूरत महानगर ही नहीं छोटे शहरों में भी बढ़ती जा रही है. मुरैना का शासकीय वृद्धाश्रम 50 बेड की क्षमता वाला है, यहां 14 वृद्धजन निवास करते हैं. जिनमें 5 महिला और 9 पुरुष हैं. शहर के मध्य बना वृद्धाश्रम बुजुर्गों के लिए सुखद वातावरण देने वाला है. यहां महिला खंड अलग और पुरुष खंड अलग है. दूसरी ओर सत्संग भवन और डायनिंग हाल बना है. जिसमें बुजुर्गों के लिए समय व्यतीत करने, मनोरंजन आदि की व्यवस्था है.
भजन कीर्तन में लगा रहे हैं मन
बुजुर्गों के लिए भजन कीर्तन के लिए वाद्ययंत्र भी मौजूद हैं, जहां दिन के खाली समय में सभी वृद्धजन सत्संग हाल में एकत्रित होकर वाद्य यंत्रों के साथ कीर्तन करते हैं. बुजुर्गों की देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी हैं, जो सभी निवासरत वृद्धों को समय पर चाय, नास्ता, दो वक्त के भोजन से लेकर दैनिक नित्य क्रियाओं के लिए सभी का ध्यान रखते हैं. अधिकारियों के मुताबिक बुजुर्गों का घर परिवार नहीं है या जिनके घर में कोई उनकी देख भाल करने वाला नहीं है. ऐसे लोगों को सामाजिक न्याय विभाग द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में रखा जाता है. आश्रम की व्यवस्था में कोई कमी ना रहे, इसके लिए रेडक्रॉस सोसायटी से भी आश्रम के संचालन की व्यवस्था में सहयोग लिया जाता है.
डायटीशियन की रिकमेंड पर दिया जाता है भोजन
कोरोना वायरस के दौर में वृद्धाश्रम में रहने वालों बुजुर्गों का समय- समय पर मेडिकल चेकअप होता है और जिला अस्पताल में पदस्थ डायटीशियन की रिकमेंड पर भोजन और अन्य खाद्य सामग्री दी जाती है. आश्रम में निवास करने वाली बुजुर्ग महिला ने बताया कि, वे 8 सालों से यहां निवास कर रही हैं, उन्हें यहां घर जैसा स्नेह और प्यार मिलता है. वहीं मनमोहन अग्रवाल का कहना है कि, उनके परिवार में कोई नहीं था. उन्होंने शादी नहीं की है. भाइयों के बेटे हैं, लेकिन उनके साथ रहना नहीं था. इसलिए आश्रम में रहना तय किया. उन्होंने बताया कि, वृद्धाश्रम उन्हें परिवार जैसा लगता है और अपना पूरा समय भगवान का नाम लेकर भजन- कीर्तन करते हुए व्यतित करते हैं.
वृद्धाश्रमों के बढ़ते चलन और बुजुर्गों को बेघर करने वाली संतानों के खिलाफ भी सरकार ने कार्रवाई करने का कानून बनाया है. ऐसे हालातों में पहले एसडीएम कोर्ट में सुनवाई कर मामले में समझौता करने के लिए काउंसलिंग कराई जाती है, फिर भी कोई संतान अपने घर के बुजुर्ग को रखना नहीं चाहती, तो इस कानून के तहत कार्रवाई की जाती है. मुरैना में पहले एक दो लोगों पर वृद्धजन संरक्षण अधिनियम के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं.