मुरैना। ग्वालियर-चंबल संभाग में सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर छिड़ी जंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, मुरैना एसपी ने सिटी कोतवाली थाने के चार पुलिसवालों को निलंबित कर दिया है क्योंकि ये पुलिसकर्मी अपनी आंखों के सामने अराजक तत्वों को सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगे पोस्टर फाड़ते देखते रहे और उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की, ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में एसपी ने उन पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई की है. उधर तीन थानों की पुलिस इस विवाद को खड़ा करने वाले 40 लोगों को अब तक पकड़कर जेल भेज चुकी है.
जानिए कौन हैं सम्राट मिहिर भोज, जिनकी जाति पर 'जंग' के लिए आमने-सामने हैं गुर्जर-क्षत्रिय
चार पुलिसकर्मियों को एसपी ने किया निलंबित
इस कार्रवाई को लेकर पुलिस पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं, जिस समय उपद्रवी पोस्टरों को फाड़ रहे थे, कोतवाली टीआई भी वहीं मौके पर टीम के साथ मौजूद थे, लेकिन उन्होंने भी इन लोगों को नहीं रोका, अधिकारियों ने थाना प्रभारी का बचाव कर चार पुलिसवालों को इस मामले में निलंबित कर दिया है.
मिहिर भोज की होर्डिंग फटते देखते रहे पुलिसकर्मी
ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा पर लगाई गई पट्टिका में सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर वंश का लिख दिया गया है, इसे लेकर ग्वालियर से शुरू हुआ विवाद मुरैना तक पहुंच गया है, 23 सितंबर को राजपूत समाज के युवाओं ने शहर में रैली निकाली, ज्ञापन सौंपा और कुछ युवाओं ने उग्र होते हुए गुर्जर समाज के लोगों द्वारा लगाए गए सम्राट मिहिर भोज के होर्डिंग को फाड़ दिया था. होर्डिंग जब फाड़े जा रहे थे, तब कोतवाली थाने के कुछ पुलिसकर्मी वहां तैनात थे, जिन्होंने उपद्रवी छात्रों को रोकने का प्रयास नहीं किया, इस घटना के बाद गुर्जर समाज के युवा भी उग्र हो गए और हाई-वे पर दो दिन तक बस व अन्य वाहनों में तोड़फोड़ करते रहे.
पुलिस के निशाने पर 100 उत्पाती!
इस मामले में एसपी ललित शाक्यवार ने कोतवाली के एसआई राकेश यादव, एएसआई जेपी शर्मा, हवलदार जयसिंह और सिपाही मुकेश कुमार को सस्पेंड करने के आदेश जारी किए हैं, उधर सम्राट मिहिर भोज विवाद में उत्पात, हंगामा व तोड़फोड़ करने के आरोप में पुलिस ने 100 लोगों को चिह्नित किया है, जिनमें से 40 लोगों को जेल भेजा गया है, वहीं पुलिस शोसल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले लोगों पर भी नजर रख रही है.
सम्राट मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक थे
इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालात और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.
जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे
हालांकि, सम्राट मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटी हैं, जिनमें इनके गुर्जर या राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद हुआ है, गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे, जबकि राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में मिला है. वर्तमान में यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.
इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है, गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी, जबकि गुरुवार को ही राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी.
'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.
ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.