मंदसौर। मध्य प्रदेश के गठन के पूर्व सीमावर्ती जिले मंदसौर का देश के इतिहास में काफी महत्व रहा है. अविभाजित मंदसौर जिले में आजादी से पहले और मध्य भारत काल में 6 रियासतें शामिल थी. ये देश का एकमात्र जिला है, जहां मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती की संस्कृतियां प्रचलित रही हैं. प्रदेश के गठन और जिले के विभाजन के बाद भी इस जिले में आज भी मालवा के अलावा राजस्थान की मेवाड़ी और हाड़ोती संस्कृतियों का पुट साफ नजर आता है.
3 तहसीलों का नया जिला नीमच
मध्य भारत के अविभाजित जिले की तस्वीर में 8 तहसीलें थी. नीमच, भानपुरा और गरोठ तहसील राजस्थान के मेवाड़ और हाड़ोती क्षेत्र से जुड़ी हुई थी. देश के इस एकमात्र जिले में तीन संस्कृतियां और 6 रियासतें शामिल थी. मनासा और रामपुरा तहसीलों का कुछ हिस्सा होलकर रियासत इंदौर के अधीन था. मंदसौर, नीमच और सुवासरा का अधिकतर हिस्सा सिंधिया रियासत ग्वालियर की मिल्कियत माना जाता था, जबकि सीतामऊ तहसील की एक स्वतंत्र रियासत राठौर वंशी रही. जिले की मल्हारगढ़ तहसील, जावरा नवाब के रियासत की वसूली का क्षेत्र रहा है. भेंसौदा मंडी और बोलियां इलाका राजस्थान की सीमा से जुड़े क्षेत्र झालावाड़ रियासत का हिस्सा रहा, लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति के चलते 90 के दशक में प्रदेश के इस सबसे बड़े जिले का विभाजन हो गया और 3 तहसीलों का नया जिला नीमच बनाया गया.
होलकर रियासत काल में शिक्षा का महत्व
इतिहास की दृष्टि से होकर रियासत काल में शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है. लिहाजा मंदसौर में जिला मुख्यालय होने के बावजूद गुलाम भारत के दौरान ही रामपुरा में कॉलेज की स्थापना हो गई. सिंधिया रियासत के क्षेत्र में भी विकासवादी कार्य अधिक हुए. मंदसौर के जिला अस्पताल, वाटर वर्क्स और दलोदा में शक्कर मिल की स्थापना सिंधिया घराने की ही देन है.
आज भी मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती संस्कृति मौजूद है
जानकारों के मुताबिक मध्यप्रदेश के गठन के दौरान राजस्थान के कई क्षेत्र के लोग मध्यप्रदेश में विलय के लिए संघर्षशील रहे, लेकिन तत्कालीन सरकारों ने परिसीमन के आधार पर राज्यों का विभाजन कर दिया गया. वहीं अफीम की पैदावार और भगवान पशुपतिनाथ मंदिर की पहचान के तौर पर पहचाने जाने वाले इस जिले में प्रदेश के गठन के 64 साल के बावजूद आज भी मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती संस्कृति मौजूद है.