ETV Bharat / state

तालीम के लिए रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करते हैं मासूम, स्कूल भेजने में डरते हैं परिजन

शहर के सबसे पुराने बालागंज सरकारी स्कूल में प्राथमिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की 11 क्लास के 617 बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल मैदान में घुटने तक पानी भर जाने से पांचवी कक्षा के छात्रों को स्कूल पहुंचना रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करने से कम नहीं होता.

फोटो
author img

By

Published : Jul 7, 2019, 9:05 PM IST

Updated : Jul 8, 2019, 12:09 AM IST

मंदसौर। 'ये शिक्षा नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए, एक कीचड़ का दरिया है और बचके जाना है'. कीचड़ से बचते-संभलते इन मासूमों को रोजाना इसी जद्दोजहद से गुजरना पड़ता है. मंदसौर के सबसे पुराने बालागंज सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले मासूम कीचड़ में लिपटकर स्कूल के गेट तक पहुंचते हैं. उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, स्कूल पहुंचने पर टीचर की फटकार भी उन्हें सुननी पड़ती है.

तालीम के लिए रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करते हैं मासूम


बारिश होते ही बालागंज सरकारी स्कूल का मैदान तालाब में तब्दील हो जाता है. हालात यहां तक हो जाते हैं कि स्कूल भवन के बीच में और चारों तरफ पानी-ही पानी दिखता है. जिससे न सिर्फ बच्चों को परेशानी होती है, बल्कि उनके परिजन भी परेशान होते हैं. पानी की निकासी नहीं होने से स्कूल से बाहर जाने वाला रास्ता दल-दल बन चुका है, जिससे परिजन छात्रों को स्कूल भेजने में भी खौफ खाते हैं.


आजादी के ठीक बाद खुले इस स्कूल में प्राथमिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की 11 क्लास के 617 बच्चे पढ़ते हैं. मैदान में घुटने तक पानी भर जाने से पांचवी कक्षा के छात्रों को स्कूल पहुंचना रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करने से कम नहीं होता. बमुश्किल स्कूल पहुंचने पर मासूमों की ड्रेस और जूते पूरी तरह गंदे हो जाते हैं. स्कूल प्रबंधन ने मुरम डालकर एक विकल्प तैयार किया था, जिसका तेज बारिश ने नामो-निशान मिटा दिया. स्कूल के प्राचार्य के मुताबिक खेल मैदान और बिल्डिंग के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर पालिका की है, जिसका इस ओर कोई ध्यान नहीं. कई बार शिकायत के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.


जब ईटीवी भारत ने नगर पालिका सीएमओ से इस मुद्दे पर सवाल किया तो उन्होंने खेल मैदान से पानी की निकासी कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया. कहीं -जर्जर भवन, कहीं रसोईघर में स्कूल तो कहीं मौत का सामना करते मासूम, आखिर ऐसी परिस्थितियों से कैसे पढ़ेगा इंडिया और जब पढ़ेगा नहीं इंडिया तो कैसे बढ़ेगा इंडिया.

मंदसौर। 'ये शिक्षा नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए, एक कीचड़ का दरिया है और बचके जाना है'. कीचड़ से बचते-संभलते इन मासूमों को रोजाना इसी जद्दोजहद से गुजरना पड़ता है. मंदसौर के सबसे पुराने बालागंज सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले मासूम कीचड़ में लिपटकर स्कूल के गेट तक पहुंचते हैं. उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, स्कूल पहुंचने पर टीचर की फटकार भी उन्हें सुननी पड़ती है.

तालीम के लिए रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करते हैं मासूम


बारिश होते ही बालागंज सरकारी स्कूल का मैदान तालाब में तब्दील हो जाता है. हालात यहां तक हो जाते हैं कि स्कूल भवन के बीच में और चारों तरफ पानी-ही पानी दिखता है. जिससे न सिर्फ बच्चों को परेशानी होती है, बल्कि उनके परिजन भी परेशान होते हैं. पानी की निकासी नहीं होने से स्कूल से बाहर जाने वाला रास्ता दल-दल बन चुका है, जिससे परिजन छात्रों को स्कूल भेजने में भी खौफ खाते हैं.


आजादी के ठीक बाद खुले इस स्कूल में प्राथमिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की 11 क्लास के 617 बच्चे पढ़ते हैं. मैदान में घुटने तक पानी भर जाने से पांचवी कक्षा के छात्रों को स्कूल पहुंचना रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करने से कम नहीं होता. बमुश्किल स्कूल पहुंचने पर मासूमों की ड्रेस और जूते पूरी तरह गंदे हो जाते हैं. स्कूल प्रबंधन ने मुरम डालकर एक विकल्प तैयार किया था, जिसका तेज बारिश ने नामो-निशान मिटा दिया. स्कूल के प्राचार्य के मुताबिक खेल मैदान और बिल्डिंग के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर पालिका की है, जिसका इस ओर कोई ध्यान नहीं. कई बार शिकायत के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.


जब ईटीवी भारत ने नगर पालिका सीएमओ से इस मुद्दे पर सवाल किया तो उन्होंने खेल मैदान से पानी की निकासी कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया. कहीं -जर्जर भवन, कहीं रसोईघर में स्कूल तो कहीं मौत का सामना करते मासूम, आखिर ऐसी परिस्थितियों से कैसे पढ़ेगा इंडिया और जब पढ़ेगा नहीं इंडिया तो कैसे बढ़ेगा इंडिया.

Intro:मंदसौर। शहर के सबसे पुराने शासकीय बालागंज स्कूल के छात्र-छात्राएं बरसाती मौसम में भारी परेशानियों के शिकार हैं। यहां के स्कूल का खेल मैदान थोड़ी सी बरसात में तालाब में तब्दील हो जाता है ।इस मैदान में एक बार पानी जमा होने के बाद यह कई दिनों से नहीं सूखता है ।लिहाजा इस स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहालों को स्कूल से घर और घर से स्कूल जाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ।


Body:आजादी के बाद सबसे पहले खुले इस स्कूल की पूरी बिल्डिंग बरसाती मौसम में चारों तरफ से तालाबनुमा एरिया से घिर जाती है। इस स्कूल में प्राथमिक माध्यमिक और हाईस्कूल की 11 क्लासे लगती है। जिनमें 617 बच्चे पढ़ाई करते हैं। शहर के बीच स्थित इस स्कूल में ज्यादातर सामान्य तबके के बच्चे ही पढ़ाई करते हैं ।बरसात से तालाब में तब्दील होने वाले खेल मैदान में घुटनों घुटनों तक पानी भर जाता है, और इस वजह से पहली से पांचवी तक की पढ़ाई करने वाले छात्र छात्राएं खासे परेशान हैं। बच्चों को कीचड़ भरा रास्ता पार कक्षा में जाना पड़ता है और कई बार उनके जूते कीचड़ में ही फंसे रह जाते हैं।उधर स्कूल यूनिफॉर्म भी गंदी होने से उन्हें टीचरों का भी डॉट फटकार का सामना करना पड़ता है।
byte 1:अनु कुमारी, छात्रा
byte 2:मंतशा, छात्रा


Conclusion:शहर के सबसे पुराने इस स्कूल के खेल मैदान और बिल्डिंग के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर पालिका प्रशासन की है। लेकिन प्राथमिक शाला के नन्हे-मुन्ने बच्चों को रोजाना हो रही दिक्कतों के मामले में न ही स्कूल प्रबंधन और ना ही नगर पालिका प्रशासन का कोई ध्यान है। स्कूल के प्रिंसिपल के मुताबिक उन्होंने स्कूल की दीवारों के सहारे मुरम डालकर जाने आने के लिए एक रास्ता बना दिया है जिस पर चलकर छात्र-छात्राएं क्लासों में आ रहे हैं ।उधर नगर पालिका प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी तो पूरे मामले से ही बेखबर है ।स्कूली छात्रों को पूरे 4 महीने होने वाली इस परेशानी के मामले में छात्रों के परिजन और प्रिंसिपल ने कई बार नगर पालिका प्रशासन को अवगत करवाया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही नजर आ रहा है। हालांकि नगर पालिका सीएमओ अब मैदान में एक नाली बनाकर उसका पानी खाली करवाने की बात कह रहे हैं ।
byte 3:गायत्री कुमारी ,छात्रा की माँ
byte 4:कृष्णकांत नीमा, प्राचार्य, बालागंज स्कूल
byte 5: आरपी मिश्रा, सीएमओ, नगर पालिका परिषद, मंदसौर



विनोद गौड़ ,रिपोर्टर ,मंदसौर

नोट: यह खबर ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव खबर है
Last Updated : Jul 8, 2019, 12:09 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.