मंदसौर। 'ये शिक्षा नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए, एक कीचड़ का दरिया है और बचके जाना है'. कीचड़ से बचते-संभलते इन मासूमों को रोजाना इसी जद्दोजहद से गुजरना पड़ता है. मंदसौर के सबसे पुराने बालागंज सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले मासूम कीचड़ में लिपटकर स्कूल के गेट तक पहुंचते हैं. उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, स्कूल पहुंचने पर टीचर की फटकार भी उन्हें सुननी पड़ती है.
बारिश होते ही बालागंज सरकारी स्कूल का मैदान तालाब में तब्दील हो जाता है. हालात यहां तक हो जाते हैं कि स्कूल भवन के बीच में और चारों तरफ पानी-ही पानी दिखता है. जिससे न सिर्फ बच्चों को परेशानी होती है, बल्कि उनके परिजन भी परेशान होते हैं. पानी की निकासी नहीं होने से स्कूल से बाहर जाने वाला रास्ता दल-दल बन चुका है, जिससे परिजन छात्रों को स्कूल भेजने में भी खौफ खाते हैं.
आजादी के ठीक बाद खुले इस स्कूल में प्राथमिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की 11 क्लास के 617 बच्चे पढ़ते हैं. मैदान में घुटने तक पानी भर जाने से पांचवी कक्षा के छात्रों को स्कूल पहुंचना रोजाना 'कीचड़ का दरिया' पार करने से कम नहीं होता. बमुश्किल स्कूल पहुंचने पर मासूमों की ड्रेस और जूते पूरी तरह गंदे हो जाते हैं. स्कूल प्रबंधन ने मुरम डालकर एक विकल्प तैयार किया था, जिसका तेज बारिश ने नामो-निशान मिटा दिया. स्कूल के प्राचार्य के मुताबिक खेल मैदान और बिल्डिंग के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर पालिका की है, जिसका इस ओर कोई ध्यान नहीं. कई बार शिकायत के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.
जब ईटीवी भारत ने नगर पालिका सीएमओ से इस मुद्दे पर सवाल किया तो उन्होंने खेल मैदान से पानी की निकासी कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया. कहीं -जर्जर भवन, कहीं रसोईघर में स्कूल तो कहीं मौत का सामना करते मासूम, आखिर ऐसी परिस्थितियों से कैसे पढ़ेगा इंडिया और जब पढ़ेगा नहीं इंडिया तो कैसे बढ़ेगा इंडिया.