मंदसौर। शिवना नदी के किनारे विराजमान भगवान पशुपतिनाथ का अष्टमुखी रूप पूरी दुनिया में अनोखा, अलग और इकलौता है, जहां पूरे साल भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि पर भक्त अल सुबह से ही भगवान पशुपतिनाथ पर जलाभिषेक करने की अपनी बारी का इंतजार करते हैं क्योंकि महाशिवरात्रि पर पूरे दिन भक्तों का तांता लगा रहता है.
इस शिवलिंग में मौजूद भगवान पशुपतिनाथ की अष्ठमुखी प्रतिमा में श्रद्धालुओं को जीवन के चार पड़ाव दिखाई देते हैं. पूर्व दिशा में बाल्यकाल, दक्षिण में युवावस्था, पश्चिम में प्रौढ़ावस्था और उत्तर में वृद्धावस्था जैसी भाव भंगिमाओं को दर्शाने वाली ये प्रतिमा महाशिवरात्रि पर विशेष सिंगार के बाद और मनमोहक हो जाती है.
ऐतिहासिक महत्व
पशुपतिनाथ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है, बताया जाता है कि महाकवि कालीदास ने अपने ग्रंथों के मंगलाचरण में अष्टमुखी शिव का जिक्र किया है. लिहाजा माना जाता है कि ये प्रतिमा 2000 साल पुरानी है और इतिहास के स्वर्णकाल माने जाने वाले गुप्त साम्राज्य से ताल्लुक रखती है.
प्रतिमा की बनावट
अगर प्रतिमा की बनावट की बात की जाए तो वह अपने आप में अद्भुत है. आग्नेय चट्टान से बनी इस प्रतिमा का वजन 4600 किलोग्राम है, जबकि वक्रता में ऊंचाई 7.25 फीट और सीधी में 11.25 फीट है. कहा जाता है कि भगवान शिव की इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में नहीं है.
स्थापना की कहानी
भगवान शिव की ये प्रतिमा शिवना नदी की रेत में उल्टी दबी थी, जिस पर धोबी रोजाना कपड़े धोया करते थे. सन 1940 में नदी में पानी कम होने के बाद ये शिवलिंग मिला, जिसे 1961 में मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया. भगवान पशुपतिनाथ के इस रूप को देख श्रद्धालु भी खुद को धन्य मानते हैं.
21 फरवरी को महाशिवरात्रि है, इस दिन को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, इस दिन का इंतजार भक्तों को भी बड़ी बेसब्री से रहता है. इस बार महाशिवरात्रि सोमवार को पड़ने की वजह से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि सोमवार को भगवान शिव का ही दिन माना जाता है.