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MP Seat Scan Mandsaur: मंदसौर के दिल में क्या है? इस चुनाव में कांग्रेस को मिलेगी विजय, या जारी रहेगा BJP की जीत का सफर

चुनावी साल में ईटीवी भारत आपको मध्यप्रदेश की एक-एक सीट का विश्लेषण लेकर आ रहा है. आज हम आपको बताएंगे मंदसौर विधानसभा सीट के बारे में. इस सीट पर पिछले 4 चुनावों से बीजेपी ही जीतते आ रही है. जबकि महज दो बार ही कांग्रेस ने यहां जीत का स्वाद चखा है. इस बार जहां कांग्रेस बीजेपी के कार्यकाल में विकास कार्यों पर सवाल उठा रही है तो वहीं बीजेपी जनता के बीच अपने कार्यकाल की उपलब्धियों गिना रही है.

MP Seat Scan Mandsaur
एमपी सीट स्कैन मंदसौर
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 4, 2023, 6:12 PM IST

मंदसौर। शिवना नदी के तट पर स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर और प्रदेश का इकलौता अफीम उत्पादक जिला...जी हां हम बात कर रहे हैं, मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की. राजस्थान से सटे मंदसौर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में धर्म का तडका भले ही न लगता हो, लेकिन मादक पदार्थ और किसान हर बार केन्द्र में होता है. इस विधानसभा सीट पर बीजेपी की तगड़ी पकड़ मानी जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा भी इस सीट से जीत चुके हैं. अभी तक के चुनावों में इस सीट से कांग्रेस से दो ही चेहरे विधायक बने हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर 1998 में आखिरी बार जीत दर्ज की थी. हार की एक वजह अंदरूनी गुटबाजी भी रही है.

MP Seat Scan Mandsaur
मंदसौर सीट का रिपोर्ट कार्ड

बीजेपी के गढ़ को तोड़ने की कोशिश: मंदसौद विधानसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी. इसके बाद से इस सीट पर 13 बार चुनाव हो चुके हैं. इसमें 8 बार बीजेपी और 5 बार कांग्रेस जीत दर्ज कर चुकी है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से इस सीट पर बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 2018 के आखिरी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया ने कांग्रेस के नरेन्द्र नहाटा को 18 हजार 370 वोटों से हराया था. इस सीट पर कांग्रेस के श्याम सुंदर पाटीदार ही चार बार और नवकृष्ण पाटिल ने 1998 में कांग्रेस के लिए आखिरी चुनाव जीता था. इसके बाद से 2003, 2008, 2013 और 2018 में लगातार बीजेपी ही इस सीट से जीतती आ रही है. आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया एक बार फिर दमखम से दावेदारी कर रहे हैं. उधर कांग्रेस की तरफ से महेन्द्र गुर्जर, नवकृष्ण पाटिल, विपिन जैन, नरेन्द्र नाहटा और राजेश रघुवंशी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के सामने चुनाव में एकजुटता बनाए रखना जीत के लिए अहम सवाल होगा.

MP Seat Scan Mandsaur
साल 2018 का रिजल्ट

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

MP Seat Scan Mandsaur
मंदसौर सीट के मतदाता

आरोपों-दावों के बीच मतदाता का मन टटोल रहे नेता: मंदसौर विधानसभा सीट पर 16.78 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर्स हैं. जबकि 5.36 फीसदी अनुसूचित जनजाति और करीब 25 हजार पाटीदार समाज के मतदाता हैं. इस विधानसभा में 2 लाख 56 हजार 70 मतदाता हैं. इसमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 29 हजार 849, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 26 हजार 215 है. थर्ड जेंडर के वोटर 6 हैं. इस सीट पर किसान, रोजगार, शिवना नदी के शुद्धिकरण, खराब सड़कों आदि के मुद्दे फिर चर्चा में हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे नरेन्द्र नाहटा आरोप लगाते हैं कि "पिछले 15 सालों से क्षेत्र में एक ही विधायक है, इसके पहले भी बीजेपी का विधायक था, लेकिन इसके बाद भी क्षेत्र की तस्वीर नहीं बदली. खराब सड़कें, दूषित होती शिवना नदी, बिना डॉक्टर के अस्पताल अब भी यहां हैं." हालांकि बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया दावा करते हैं कि "क्षेत्र में पिछले सालों में जमकर विकास कार्य हुए हैं. इस क्षेत्र को सीएम राइज स्कूल मिला, शिवना नदी के शुद्धिकरण के लिए केन्द्र सरकार से 27 करोड़ मिल चुके हैं. जल जीवन मिशन के तहत कार्य चल रहा है. सडकें बेहतर हुई हैं. जाहिर है विपक्ष के आरोपों और सत्ता पक्ष के दावों को क्षेत्र के मतदाता जमीनी हकीकत की कसौटी पर कसेंगे और इसके आधार पर ही अपना वोट डालेंगे.

मंदसौर। शिवना नदी के तट पर स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर और प्रदेश का इकलौता अफीम उत्पादक जिला...जी हां हम बात कर रहे हैं, मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की. राजस्थान से सटे मंदसौर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में धर्म का तडका भले ही न लगता हो, लेकिन मादक पदार्थ और किसान हर बार केन्द्र में होता है. इस विधानसभा सीट पर बीजेपी की तगड़ी पकड़ मानी जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा भी इस सीट से जीत चुके हैं. अभी तक के चुनावों में इस सीट से कांग्रेस से दो ही चेहरे विधायक बने हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर 1998 में आखिरी बार जीत दर्ज की थी. हार की एक वजह अंदरूनी गुटबाजी भी रही है.

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मंदसौर सीट का रिपोर्ट कार्ड

बीजेपी के गढ़ को तोड़ने की कोशिश: मंदसौद विधानसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी. इसके बाद से इस सीट पर 13 बार चुनाव हो चुके हैं. इसमें 8 बार बीजेपी और 5 बार कांग्रेस जीत दर्ज कर चुकी है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से इस सीट पर बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 2018 के आखिरी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया ने कांग्रेस के नरेन्द्र नहाटा को 18 हजार 370 वोटों से हराया था. इस सीट पर कांग्रेस के श्याम सुंदर पाटीदार ही चार बार और नवकृष्ण पाटिल ने 1998 में कांग्रेस के लिए आखिरी चुनाव जीता था. इसके बाद से 2003, 2008, 2013 और 2018 में लगातार बीजेपी ही इस सीट से जीतती आ रही है. आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया एक बार फिर दमखम से दावेदारी कर रहे हैं. उधर कांग्रेस की तरफ से महेन्द्र गुर्जर, नवकृष्ण पाटिल, विपिन जैन, नरेन्द्र नाहटा और राजेश रघुवंशी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के सामने चुनाव में एकजुटता बनाए रखना जीत के लिए अहम सवाल होगा.

MP Seat Scan Mandsaur
साल 2018 का रिजल्ट

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

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मंदसौर सीट के मतदाता

आरोपों-दावों के बीच मतदाता का मन टटोल रहे नेता: मंदसौर विधानसभा सीट पर 16.78 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर्स हैं. जबकि 5.36 फीसदी अनुसूचित जनजाति और करीब 25 हजार पाटीदार समाज के मतदाता हैं. इस विधानसभा में 2 लाख 56 हजार 70 मतदाता हैं. इसमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 29 हजार 849, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 26 हजार 215 है. थर्ड जेंडर के वोटर 6 हैं. इस सीट पर किसान, रोजगार, शिवना नदी के शुद्धिकरण, खराब सड़कों आदि के मुद्दे फिर चर्चा में हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे नरेन्द्र नाहटा आरोप लगाते हैं कि "पिछले 15 सालों से क्षेत्र में एक ही विधायक है, इसके पहले भी बीजेपी का विधायक था, लेकिन इसके बाद भी क्षेत्र की तस्वीर नहीं बदली. खराब सड़कें, दूषित होती शिवना नदी, बिना डॉक्टर के अस्पताल अब भी यहां हैं." हालांकि बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया दावा करते हैं कि "क्षेत्र में पिछले सालों में जमकर विकास कार्य हुए हैं. इस क्षेत्र को सीएम राइज स्कूल मिला, शिवना नदी के शुद्धिकरण के लिए केन्द्र सरकार से 27 करोड़ मिल चुके हैं. जल जीवन मिशन के तहत कार्य चल रहा है. सडकें बेहतर हुई हैं. जाहिर है विपक्ष के आरोपों और सत्ता पक्ष के दावों को क्षेत्र के मतदाता जमीनी हकीकत की कसौटी पर कसेंगे और इसके आधार पर ही अपना वोट डालेंगे.

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