मंदसौर। दुनियाभर में भगवान शिव की कई रूपों में पूजा की जाती है. देश में 12 ज्योतिर्लिंगों को सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है. लेकिन मध्य प्रदेश के मंदसौर में स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर की मान्यता विशेष है. ऐसा माना जाता है कि पूरे देश में सिर्फ मंदसौर में ही भगवान शिव की अष्टमुखी प्रतिमा है. देशभर से श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन सावन में यहां भक्तों की संख्या काफी ज्यादा होती है.
गर्भगृह में नहीं मिलेगा प्रवेश
दो साल से कोरोना के चलते पशुपतिनाथ मंदिर के गर्भगृह में भक्तों का प्रवेश वर्जित है. ऐसे में पिछले साल की तरह इस साल भी सावन में भोले के भक्तों को दूर से ही उनके दर्शन करना होंगे. सावन के महीने के लिए पशुपतिनाथ मंदिर में भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. दर्शन के लिए आ रहे श्रद्धालुओं की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा जा रहा है. कोविड गाइडलाइन के तहत भक्तों को भगवान के दर्शन करवाए जा रहे हैं.
अनोखा है मंदिर का इतिहास
मंदसौर पशुपतिनाथ मंदिर को लेकर अनोखी कथा प्रचलित है. माना जाता है कि उजादी नाम के धोबी शिवना नदी पर एक शिला पर बैठकर कपड़े धोया करते थे. एक रात में स्वप्न में भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मुझे शिवना की कोख से निकालें. इसके बाद अगले दिन उस शिला के आसपास खुदाई की गई तो वहां भगवान शिव की अष्टमुखी प्रतिमा थी
1940 में शिवना नदी से मिली थी प्रतिमा
1940 में उदाजी ने प्रतिमा को शिवना के तट पर विराजित कर दिया. 1961 में प्रत्यक्षानंद महाराज ने यहां भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा कर भगवान शिव के मंदिर को पशुपतिनाथ का नाम दिया. आज यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. मंदिर में लगी साढ़े 7 फीट की भगवान शिव की अष्टमुखी प्रतिमा अपने आप में अनोखी है.
ढाई हजार साल पुरानी है प्रतिमा
हालांकि प्रतिमा को लेकर इतिहासकारों का अलग मत है. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह प्रतिमा करीब ढाई हजार साल पुरानी है. कुछ लोगों का दावा है कि यह प्रतिमा 14वीं शताब्दी में बनाई गई थी. इतिहासकारों का तर्क है कि यह प्रतिमा शेव काल और गुप्तकाल की हो सकती है. इस प्रतिमा इसके आठ मुख, साढ़े 7 फीट ऊंचाई और इसका वजन है. माना जाता है कि शिव के 8 चेहरों में बाल्य, युवा, किशोरवस्था और प्रोणवस्था के रूप के दर्शन होते हैं.
दर्शन से ही पूर्ण होती है हर मनोकामना
भगवान पशुपतिनाथ के बारे में कई तरह की मान्यताएं है. सावन में पशुपतिनाथ के दर्शन से हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है. ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्या अगर सावन के हर दिन आकर बाबा पशुपतिनाथ का पूजन करें तो उन्हें मन चाहा वर प्राप्त होता है. हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं.
सावन के महीने में पशुपति नाथ मंदिर प्रबंधन ने एक अनोखी परंपरा भी शुरू की है. सावन में पूरे महीने भगवान का अभिषेक करने वाले यजमानों को प्रबंध समिति एक पौधा भेंट स्वरूप देती है. मंदिर प्रबंधन की पर्यावरण और प्रकृति को बचाने की अनूठी परंपरा है. मंदिर प्रबंधन की इस पहल की हर कोई तारीफ करता है. जिला कलेक्टर और पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंधन ने पश्चिम रेल मंडल रतलाम से मंदसौर से गुजरने वाली किसी ट्रेन का नाम पशुपतिनाथ एक्सप्रेस रखने की मांग की है, रतलाम मंडल ने इसका प्रस्ताव केन्द्रीय रेलवे बोर्ड को भेजा है.
सावन के लिए की गई विशेष व्यवस्था
सावन को महीने की शुरुआत होते ही पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष साज-सज्जा की गई है. पूरे मंदिर परिसर को विशेष रूप से सजाया गया है. सुरक्षा के दृष्टि से मंदिर परिसर में 41 कैमरे लगाए गए हैं. साथ ही भक्तों को कोरोना गाइडलाइन का पालन करवाने के लिए विशेष रूप से व्यवस्था की गई है.