मंदसौर। शांति का टापू कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, मंदसौर गोलीकांड के बाद लगातार ये जिला सुर्खियों में रहा है, कभी किसानों पर गोलियां चलाई गईं, तो कहीं हिंसों की आग में ये जिला जलता रहा. इतना सबकुछ होने के बावजूद आज भी ये जिला शांत नहीं है, जब डोरोना और बादाखेड़ी गांव के लोगों से बात की गई, तो उन्होंने अपनी दास्ता ईटीवी भारत को बताई, कि कैसे उन्होंने इस हिंसा की आग को झेला. आपको पूरी कहानी बताएंगे, पहले ये जान लीजिए की इस हिंसा की वजह क्या है ?
बाबरी मंस्जिद से लेकर राम जन्मभूमि तक का इतिहास
देश में रामजन्मभूमि को लेकर कई सालों से विवाद चला, इसे लेकर कई बार दंगे हुए, कई घरों को तोड़ दिया गया, तो कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी, 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को भी ढहा दिया गया, इस दौरान देश भर में भड़के दंगों में 2 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई, वहीं हज़ारों लोग घायल भी हुए. इस हिंसा के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई सालों तक केस चलता रहा, हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं.
- सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला
अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर सालों बाद नौ नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, आखिर पांच अगस्त 2020 को श्री रामजन्मभूमि पर श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संतों की उपस्थिति में भूमिपूजन किया. इस भूमिपूजन के बाद राममंदिर ट्रस्ट ने आम जनता से अपील की और कहा कि मंदिर निर्माण के लिए चंदा दें, ताकि अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बन सके.
- मंदसौर में क्यों हुई हिंसा ?
भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए पूरे देश में संघ और हिन्दू संगठन ने रैली निकाली, लोगों से चंदा देने के लिए अपील करनी शुरू की, इस दौरान मंदसौर में भी बाइक रैली निकाली गई, हिन्दू संगठन के लोग हर गली मोहल्लों में जाकर मंदिर निर्माण के लिए चंदा लिया, लोगों ने राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा भी दिया, लेकिन कुछ इलाकों में इस रैली ने हिंसक रूप ले लिया. हिन्दू संगठन का आरोप है कि कुछ लोगों ने उनकी बाइक रैली पर पथराव कर दिया. जिससे कई कार्यकर्ता घायल हो गए. वहीं मुस्लिम संगठनों का आरोप है, कि उन्हे जबरन निशाना बनाया गया.
- मुस्लिम संगठनों का आरोप
मंदसौर के डोरोना व बादाखेड़ी गांव में रहने वाले मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इन रैलियों के दौरान हिंदूवादी संगठन जान-बूझकर मुस्लिम इलाक़ों में जा रहे हैं, वहां नारेबाजी कर रहे हैं और डीजे बजा रहे हैं. जिस वजह से यहां हिंसक स्थिति पनप रही है.
- दोनों पक्षों पर पुलिस ने की कार्रवाई
मन्दसौर में 29 दिसंबर 2020 को भी हिंदू संगठन ने बाइक रैली निकाली, ये रैली जैसे ही डोरोना व बादाखेड़ी गांव पहुंची, वहां दोनों पक्षों में विवाद हो गया. विवाद के चलते दोनों गांवों में तनाव की स्थिती निर्मित हो गई, इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस ने दोनों पक्षों पर कार्रवाई की गई है.
- 6 गिरफ्तार, 40 से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज
नई आबादी पुलिस से मिली जानकारी अनुसार मामले में एक पक्ष के 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए, पुलिस ने तत्काल उन्हें गिरफ्तार कर लिया, वहीं 40 से अधिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए चिंहित किया गया है. दूसरे पक्ष के 3 लोगों पर एफआईआर लॉन्च कर उन्हे गिरफ्तार किया गया, वहीं कुछ को चिन्हित कर तलाश शुरू कर दी गई है.
- 29 दिसंबर के दिन क्या हुआ ?
29 दिसंबर 2020 की दोपहर नई आबादी के डोरोना और बादाखेड़ी गांव में राम मंदिर निर्माण को लेकर जन जागरण यात्रा निकाली गई थी, इसी दौरान रैली में शामिल एक पक्ष के कुछ लोगों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया, हालांकि पुलिस बल यात्रा के दौरान साथ में मौजूद थी, लेकिन रैली में ज्यादा भीड़ होने की वजह से पुलिस हिंसा को नहीं संभाल सकी, सूचना के बाद भारी पुलिस बल मौके पर पहुंची, जिसके बाद हालात पर काबू पाया गया.
घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए, देर रात पुलिस ने मामले में दोनों पक्षों के खिलाफ 6 एफआईआर लॉन्च की गई, और उन्हे गिरफ्तार किया, इसके साथ ही 40 से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर किया है.
- वायरल वीडियो के जरिए हो रही कार्रवाई
पुलिस के मुताबिक वायरल वीडियो के को देखकर पुलिस आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर रही है, वहीं दर्ज एफआईआर के बाद कुछ आरोपियों की तलाश भी की जा रही है, पुलिस का कहना है कि जल्द ही सभी आरोपी गिरफ्तार कर लिए जाएंगे.
- पत्थरबाजी घटनाओं पर एक नजर
- मंदसौर
राम जन्मभूमि जन जागरण को लेकर रैली निकाली जा रही थी. इस दौरान दो पक्षों के बीत तनातनी हो गई. इस मामले में जहां विशेष समुदाय के लोगों का आरोप है कि बाइक सवार युवकों ने तोड़फोड़ की है. तो वहीं घायल युवकों का कहना है कि उनसे पर्स-चेन लूटकर बाइक में आग लगा दी गई.
2. उज्जैन
25 दिसंबर को युवा मोर्चा और हिंदू संगठन ने रैली निकाली थी, जहां ट्रैफिक होने की वजह से रैली में शामिल कार्यकर्ताओं की गाड़ी विशेष समुदाय के व्यक्ति की गाड़ी से टकरा गई. इसी बीच दोनों में विवाद की स्थिति बन गई. देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया कि एक पक्ष के परिजन के घर पर पथराव होने लगा. इसकी सूचना मिलते ही आला अधिकारी भारी पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे, जहां स्थिति पर काबू पा लिया गया. इस घटना के बाद हिंदू संगठन और युवा मोर्चा के कई कार्यकर्ता घायल हुए, जिन्हें इलाज के लिए अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया.
3. इंदौर
29 दिसंबर को इंदौर के देपालपुर तहसील के चंदन खेड़ीगांव में स्थानीय नव युवक चलित भगवा बाईक रैली निकाल रहे थे. इसी दौरान अचनाक एक समुदाय के लोगों ने बाइक चालकों पर पथराव कर दिया. पथराव से मौके पर तनाव की स्थिति बन गई. जिसके बाद पत्थर लगने से कुछ कार्यकर्ता घायल हो गए.
4. नीमच
उपनगर नीमच सिटी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में 27 दिसंबर अचानक पत्थरबाजी होने लगी, दोपहर 12 बजे के करीब भोजन सत्र में विद्यार्थी खाना खाने के लिए अपनी थालियां लेने गए थे तभी अज्ञात व्यक्तियों ने शिविर पर भवन के पीछे से पथराव कर दिया. हालांकि इस घटना में किसी को चोट नहीं आई थी.
- पत्थरबाजों के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी
मध्यप्रदेश में लगातार पथराव के बाद शिवराज सरकार ने कानून बनाने की बात कही है, इसका मसौदा भी तैयार कर लिया गया है, ताकि ऐसी घटनाओं पर लगाम लगया जा सके, लेकिन इस नए कानून को लेकर विशेष समुदाए के लोगों का कहना है कि इस नए कानून को लाने का मकस विशेष लोगों को निशाना बनाना है. वहीं विपक्ष कह रहा है कि शब्दों के आडंबर से सरकार राजनीतिक रोटियां सेंक रही है. बाबा साहेब के संविधान में इस तरह की घटनाओं को लेकर पहले से कई प्रावधान हैं. मध्यप्रदेश में पिछले महीने कुछ घटनाएं ऐसी जरूर हुई हैं. जिसमें सामूहिक पत्थरबाजी देखने को मिली है. लेकिन कानून के जानकार मानते हैं कि प्रदेश के हालात ऐसे नहीं है कि इस तरह के कानून की जरूरत हो, लेकिन सरकार को कानून बनाने का अधिकार है.
- क्यों पड़ी पत्थरबाजों के खिलाफ कानून बनाने की आवश्यकता ?
मध्यप्रदेश में पिछले दिनों अयोध्या में निर्मित हो रहे राम मंदिर को लेकर धार्मिक संगठनों द्वारा रैलियां निकालकर चंदा एकत्रित किया जा रहा था. इन रैलियों के दौरान उज्जैन,इंदौर,मंदसौर, नीमच और खरगोन में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आई हैं. बताया जा रहा है कि समुदाय विशेष के लोगों ने इन रैलियों पर पथराव किया है. वहीं ये भी आरोप है कि इन रैलियों के दौरान धर्म विशेष के विरोध में गंभीर और आपत्तिजनक नारेबाजी की गई. इसलिए पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं. शिवराज सरकार ने इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए सामूहिक पत्थरबाजी पर सख्त कानून बनाने का ऐलान किया है.
- क्या होंगे कानून के प्रावधान ?
- सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दोषियों से वसूली का प्रावधान किया जा सकता है.
- सामूहिक और दलीय आधार पर होने वाली पत्थरबाजी की घटनाओं में कड़ी सजा का प्रावधान किया जा सकता है.
- धर्म की आड़ लेकर और धार्मिक स्थलों पर खड़े होकर इस तरह की घटना को अंजाम देने में संबंधित जगह को भी राजसात करने का प्रावधान किया जा सकता है.
- पत्थरबाजी की घटनाओं को लेकर अलग से ट्रिब्यूनल गठित किया जा सकता है, जो तय समय सीमा में ऐसे मामलों का निराकरण करेगा.
- पत्थरबाजी को लेकर कानून में पहले से क्या हैं प्रावधान ?
पत्थरबाजी पर बनाए जा रहे कानून को लेकर विपक्ष जहां सरकार पर शब्दों का आडंबर रचा राजनीतिक रोटियां सेकने का आरोप लगा रहा है तो कानून के जानकार कहते हैं कि आईपीसी और सीआरपीसी में पहले से ऐसे कई प्रावधान हैं कि ऐसी घटनाओं पर कार्रवाई की जा सकती है. जानकार मानते हैं कि कानून व्यवस्था के मामले में मजिस्ट्रेट के लिए ही बहुत सारी शक्तियों के प्रावधान हैं.
- आईपीसी की धारा 322: किसी व्यक्ति को जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने की स्थिति में धारा 322 के तहत अपराध पंजीबद्ध हो सकता है.
- आईपीसी की धारा 326: कोई भी व्यक्ति घातक हथियार या किसी वस्तु से किसी को गंभीर रूप से जख्मी कर दे. जैसे किसी को चाकू मारना,किसी का कोई अंग काट देना या ऐसा जख्म देना जिससे जान को खतरा हो, तो गैर जमानती अपराध पंजीबद्ध होता है.
- कानून व्यवस्था को लेकर मजिस्ट्रेट की शक्तियां
कानून के जानकार मानते हैं कि सामूहिक पत्थरबाजी या इस तरह के विरोध प्रदर्शन में कार्रवाई करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास काफी शक्तियां हैं. कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट ऐसे कई अधिकारों का उपयोग कर सकता है,जो इस तरह की घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक हैं.
- पत्थरबाजों के खिलाफ अलग से कानून लाने की जरूरत नहीं-वकील
वकील साक्षी पवार का कहना है कि मध्यप्रदेश में जो अभी पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आई हैं, वह निंदनीय हैं. जहां तक इन घटनाओं पर अलग से कोई कानून बनाने की जरूरत है, तो मुझे लगता है कि ऐसी कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि हमारे कानून में पहले से इतनी धाराएं हैं,जो इस तरह की घटनाओं में उपयोगी हैं. जैसे आईपीसी की धारा 322 और धारा 326 इन घटनाओं में उपयोग में आ सकती हैं. संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो ऐसे मामले में लोक व्यवस्था के लिहाज से राज्य सरकार कानून बना सकती है. लेकिन जब कोई पत्थरबाजी सामूहिक तरीके से करता है,तो यह एक तरह की अभिव्यक्ति होती है कि वह अपना विरोध जता रहा है. इस तरह के विरोध प्रदर्शन पर कानून की दृष्टि से कई तरह के उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. हमारे संविधान और आईपीसी और सीआरपीसी की दृष्टि से देखा जाए,तो कानून व्यवस्था के मामले में मजिस्ट्रेट के पास इतनी शक्तियां होती हैं कि वह कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में अपनी शक्तियों का उपयोग कर नियंत्रण कर सकता है. मुझे नहीं लगता है कि अलग से कानून बनाने की जरूरत है. यदि हमारे मध्यप्रदेश में पत्थरबाजी की घटनाएं आम हो जाएं,तब ऐसे कानून की जरूरत होती है.
- सिर्फ नाम का 'शांति का टापू'
मध्यप्रदेश भले ही शांति का टापू कहा जाता हो, लेकिन इस तरह की घटनाओं ने मध्यप्रदेश की शांति को छीन लिया है, एक बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिससे हिंसा भड़क रही है. अब देखना होगा कि मध्यप्रदेश सरकार ऐसी हिंसक घटनाओं को लेकर आगे क्या करती है, ताकि ऐसी हिंसक घटनाएं दोबारा न हों. ऐसा न हो कि मध्यप्रदेश सिर्फ नाम के लिए शांति का टापू बनकर रह जाए.