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परिवार के सदस्य जैसे किया बैल का क्रिया-कर्म, तेरहवीं में पूरे गांव को कराया भोज - बैल की तेरहवीं

मंदसौर जिले के मकड़ावन गांव के किसान उमराव सिंह ने जानवरों के प्रति इंसानों के प्यार की अनोखी मिशाल पेश की है. उमराव सिंह ने अपने बैल के मरने के बाद उन्होंने उसका अंतिम संस्कार कर गांवभर को तेरहवीं भोज भी कराया. उन्होंने कहा कि बैल हमारे परिवार के सदस्य की तरह था.

किसाने की बैल की तेरहवीं
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Published : Jul 13, 2019, 6:10 PM IST

मंदसौर। क्या आपने कभी सुना है कि किसी जानवर के मरने पर इंसानों जैसा क्रिया कर्म किया जाता हो, लेकिन मंदसौर जिले के मकड़ावन गांव के किसान उमराव सिंह ने ऐसा ही किया है. उन्होंने अपने बैल के मर जाने बाद पूरे रीति-रिवाज से उसका अंतिम संस्कार किया और उसकी तेरहवीं भी की, जिसमें पूरे गांव को भोज भी कराया.

परिवार के सदस्य जैसे किया बैल का क्रिया-कर्म, तेरहवीं में पूरे गांव को कराया भोज

उमराव अपने बैल रेंडा को अपने परिवार के सदस्य की तरह ही मानते थे. इसलिए बैल का अंतिम संस्कार भी परिवार के एक सदस्य की तरह ही किया. यही नहीं उमराव ने अंतिम संस्कार के बाद पूरे तेरह दिनों तक पंडितों से पूजा-पाठ भी कराया

उमराव सिंह ने बताया कि उन्होंने 18 साल पहले बैल को बजार से खरीदा था. जब से वह उनके घर आया था, तभी से उनकी तरक्की दिनों-दिन बढ़ती गई. रेंडा बैल उनके घर का एक जानवर ही नहीं था, बल्कि उनके घर का अहम सदस्य था. उसकी मौत के बाद ऐसा लगा कि मानों परिवार का कोई सदस्य बिछड़ गया है.

अपने बैल के प्रति उमराव सिंह का ये प्यार देख सब उनकी तारीफ कर रहे हैं क्योंकि जानवरों के साथ अन्याय की खबरें तो खूब सुनी जाती हैं, लेकिन उनके साथ इंसानी व्यवहार का ये नजारा सभी को एक नई सीख देता है.

मंदसौर। क्या आपने कभी सुना है कि किसी जानवर के मरने पर इंसानों जैसा क्रिया कर्म किया जाता हो, लेकिन मंदसौर जिले के मकड़ावन गांव के किसान उमराव सिंह ने ऐसा ही किया है. उन्होंने अपने बैल के मर जाने बाद पूरे रीति-रिवाज से उसका अंतिम संस्कार किया और उसकी तेरहवीं भी की, जिसमें पूरे गांव को भोज भी कराया.

परिवार के सदस्य जैसे किया बैल का क्रिया-कर्म, तेरहवीं में पूरे गांव को कराया भोज

उमराव अपने बैल रेंडा को अपने परिवार के सदस्य की तरह ही मानते थे. इसलिए बैल का अंतिम संस्कार भी परिवार के एक सदस्य की तरह ही किया. यही नहीं उमराव ने अंतिम संस्कार के बाद पूरे तेरह दिनों तक पंडितों से पूजा-पाठ भी कराया

उमराव सिंह ने बताया कि उन्होंने 18 साल पहले बैल को बजार से खरीदा था. जब से वह उनके घर आया था, तभी से उनकी तरक्की दिनों-दिन बढ़ती गई. रेंडा बैल उनके घर का एक जानवर ही नहीं था, बल्कि उनके घर का अहम सदस्य था. उसकी मौत के बाद ऐसा लगा कि मानों परिवार का कोई सदस्य बिछड़ गया है.

अपने बैल के प्रति उमराव सिंह का ये प्यार देख सब उनकी तारीफ कर रहे हैं क्योंकि जानवरों के साथ अन्याय की खबरें तो खूब सुनी जाती हैं, लेकिन उनके साथ इंसानी व्यवहार का ये नजारा सभी को एक नई सीख देता है.

Intro:मन्दसौर जिले के गांव मकड़ावन में आज भी अपार स्नेह हे जिंदा । एक जानवरों को परिवार का सदस्य मान बेल का किया 13वीं का कार्यक्रम आयोजितBody:मंदसौर जिले के गांव मकड़ावन में एक बेल ने बदल दी परिवार की आर्थिक स्थिति।

गांव में आज भी जानवरों के प्रति कितना स्नेही है इस आधुनिक युग में भाई भाई का नहीं दोस्त दोस्त का नहीं पिता पुत्र का नहीं मां बेटे की नहीं बेटा मां का नहीं ऐसे परिवारिक हास्य घटनाएं घटित होती रहती है आए दिन देखने को मिल रहे हैं वही शामगढ़ के नजदीक गांव मकड़ावन में जानवरों के प्रति इतना स्नेह और प्रेम अपने आप में एक प्रेरणा है।

शामगढ़ के नजदीक मकडावन गांव में उमरावसिंह नामक किसान ने अपने बैल का बड़ी धूमधाम से तेरीवी मौसर किया हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उमरावसिंह एवं उसके परिवार के लोगों द्वारा बेल रेंडा जो कि विगत दिनों देहांत हो गया था परिवार को बडा दुख पहुंचा। परिवार वालो का कहना था कि हम बहुत ही किस्मत वाले थे जो बेल रेण्डा हमारे घर आया। क्योंकि जब हमने यह बैल मेले में से खरीदा तब हमारी परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी । इस बेल को खरीदने के बाद हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया एवं हमने इस बेल के रहते हुए खेती खरीदी ट्रैक्टर खरीदा एवं कई कार्य किए और सफलता हासिल की गरीबी की स्थिति से बैल रेण्डा काफी आर्थिक उन्नति में संयोग किया था और आज हम सबकी आर्थिक स्थिति अच्छी मजबूत हो गई है। हम इस बेल को नहीं भूल सकते इसलिए हमने बेल के मरने पर हिंदू रीति रिवाज के अनुसार शोक पत्रिका छपवाकर आज हमने हमारे मृतक बेल रेण्डा का मौसर का कार्यक्रम रखा। हमारे परिचित मिलने जुलने वाले एवं समाज के लोगों को दुर दराज से बुलाकर पगड़ी दस्तूर की रस्म कि एवं भोजन का कार्यक्रम भी रखा। संवाददाता जीवन सांकला की रिपोर्टConclusion:इसे आधुनिक युग में व्यक्तिवादी भावनाएं प्रबल होने के बाद भी गांव में आज भी मानवता और जानवरों के प्रति स्नेह व प्यार कायम है गांव की सीख अब शहर वाले कहां अपनाते हैं और अपने परिवार को खो देते हैं और आपसी विवाद बढ़ते जाते हैं
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