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सूना रहा कजलियां का पर्व, विसर्जन के लिए नहीं निकले लोग - कजलियां त्योहार पर कोरोना का प्रभाव

कजलियां त्योहार पर लोग घरों पर बोए गेहूं की हरी-भरी कजली एक-दूसरे को भेंट किया करते थे, लेकिन इस बार कोरोना महामारी का असर साफ तौर पर देखने को मिला है. जहां नदियों और तालाबों के घाट सूने नजर आ रहे हैं.

corona virus effect on Kajaliyan festival
कजलियां त्योहार पर कोरोना का प्रभाव
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Published : Aug 4, 2020, 8:28 PM IST

मंदसौर। रक्षाबंधन के एक दिन बाद कजलियां का पर्व मनाया जाता है, जिसमें तकरीबन हर घर में बांस की टोकरी पर गेहूं लगाए जाते हैं. कजलियां त्योहार के दिन इनकी विधिवत तरीके से पूजा की जाती है. उसके बाद दोपहर के समय नदियों के किनारे ले जाकर धोया जाता है.

एक बार फिर से पूजा-अर्चना कर भगवान को कजलियां अर्पित की जाती हैं, जिसके बाद लोग एक-दूसरे को कजरियां भेंटकर सुख-समृद्धि की शुभकामनाएं देते हैं. यह त्योहार उन महिलाओं के लिए भी बहुत खास होता है, जो ससुराल से अपने मायके आई होती हैं.

हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार इस बार फीका नजर आया. कोरोना वायरस के चलते इस साल ना तो महिलाएं अपने मायके आ पाईं और ना ही कजलियां का पर्व धूमधाम से मनाया जा सका.

प्रशासन ने पहले ही निर्देश जारी कर दिए थे कि कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए लोग भीड़ बनाकर घर से बाहर नदियों पर ना जाएं और ना ही एक-दूसरे से मुलाकात करें. इसके अलावा इस त्योहार में खास तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए.

हर वर्ष कजलियां के पर्व पर मेले का आयोजन किया जाता था. हर वर्ग की महिलाएं सिर पर कजलियां की टोकरी रखकर गाते-बजाते हुए निकलती थीं. नदियों पर जाकर कार्यक्रम का आयोजित किया जाता था, लेकिन इस साल नदियों और तालाबों के घाट सूने रहे और कजलियां का पर्व महज ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिकता बनकर रह गया है.

मंदसौर। रक्षाबंधन के एक दिन बाद कजलियां का पर्व मनाया जाता है, जिसमें तकरीबन हर घर में बांस की टोकरी पर गेहूं लगाए जाते हैं. कजलियां त्योहार के दिन इनकी विधिवत तरीके से पूजा की जाती है. उसके बाद दोपहर के समय नदियों के किनारे ले जाकर धोया जाता है.

एक बार फिर से पूजा-अर्चना कर भगवान को कजलियां अर्पित की जाती हैं, जिसके बाद लोग एक-दूसरे को कजरियां भेंटकर सुख-समृद्धि की शुभकामनाएं देते हैं. यह त्योहार उन महिलाओं के लिए भी बहुत खास होता है, जो ससुराल से अपने मायके आई होती हैं.

हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार इस बार फीका नजर आया. कोरोना वायरस के चलते इस साल ना तो महिलाएं अपने मायके आ पाईं और ना ही कजलियां का पर्व धूमधाम से मनाया जा सका.

प्रशासन ने पहले ही निर्देश जारी कर दिए थे कि कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए लोग भीड़ बनाकर घर से बाहर नदियों पर ना जाएं और ना ही एक-दूसरे से मुलाकात करें. इसके अलावा इस त्योहार में खास तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए.

हर वर्ष कजलियां के पर्व पर मेले का आयोजन किया जाता था. हर वर्ग की महिलाएं सिर पर कजलियां की टोकरी रखकर गाते-बजाते हुए निकलती थीं. नदियों पर जाकर कार्यक्रम का आयोजित किया जाता था, लेकिन इस साल नदियों और तालाबों के घाट सूने रहे और कजलियां का पर्व महज ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिकता बनकर रह गया है.

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