मंदसौर। भगवान शिव की आराधना में सबसे पवित्र मास सावन और भादों माना जाता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक इन दोनों महीनों में शिव की आराधना करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. लेकिन शिवलिंग पर जलाभिषेक एक सर्वमान्य धार्मिक परंपरा है आराधना के सबसे पहले चरण में शामिल किया गया है. पुराणों में उल्लेख के अनुसार नदियों के साफ जल से शिव प्रतिमा पर किया गया जलाभिषेक काफी शुभ और फलदाई माना गया है. लेकिन इन सबसे परे प्राकृतिक जलाभिषेक के योग धार्मिक महत्व में सबसे ज्यादा चमत्कारिक है. देश में कई स्थान ऐसे हैं जहां शिवलिंगी मंदिर नदियों के किनारे स्थित हैं. जब-जब इन नदियों में उफान आता है, तो नदी के पानी से प्रतिमाओं का प्राकृतिक जलाभिषेक होता है. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है मंदसौर में. जहां शिवना नदी के पास स्थित भगवान पशुपतिनाथ का हर साल शिवना नदी जलाभिषेक करती है.
शुभ माना जाता है प्राकृतिक जल अभिषेक
मंदसौर के भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी अष्टमुखी शिव प्रतिमा स्थित है. बताया जाता है कि शिवभक्त ओलीकर राजाओं ने मालवा और मेवाड़ पर राज करते वक्त यहां कई शिव प्रतिमाएं बनवाई थीं. मंदसौर की शिवना नदी से निकली यह अष्टमुखी प्रतिमा भी उनमें से एक मानी जाती है. दुनिया की सबसे बड़ी यह शिव प्रतिमा सन 1940 में शिवना नदी की तलहटी से मिली थी और इस विशाल प्रतिमा की ऊंचाई साढ़े सात फीट ऊंची और मोटाइ ढाई मीटर है.
इस प्रतिमा का मंदिर नदी के दक्षिण किनारे पर इस हिसाब से बना हुआ है कि पूरे अंचल में जब भरपूर बारिश होती है तो शिवना नदी की बाढ़ से इसके गर्भ गृह में मौजूद प्रतिमा का जलाभिषेक होता है. अमूमन मानसूनी सीजन में इस तरह का योग एक बार जरुर बनता है. इस साल भी दो बार यहां प्राकृतिक जलाभिषेक के योग बने जिसे संपन्नता के सूचक माने जाने वाले इस योग से इलाके में खुशी का माहौल है. मंदिर के प्रधान पुजारी इस योग को इस साल काफी शुभ मान रहे हैं.
अष्टमुखी पशुपतिनाथ की प्रतिमा
मंदसौर में स्थित पशुपतिनाथ की प्रतिमा अष्टमुखी है. चार ऊपर और चार नीचे मुखों वाली इस बड़ी प्रतिमा में जीवन से जुड़ी भगवान की चारों अवस्थाएं मौजूद हैं. प्रतिमा के पूर्व में बाल्यावस्था, दक्षिण में किशोरावस्था, पश्चिम में प्रौढ़ावस्था और उत्तर में वृद्धावस्था के रूप हैं. इस प्रतिमा पर जलाभिषेक करना भगवान के सर्व जीवन रूपी शरीर पर अभिषेक करना माना गया है. ऐसे में जब नदी में आई बाढ़ के पानी से इस प्रतिमा का प्राकृतिक जलाभिषेक हो तो यह काफी प्राकृतिक तौर पर काफी शुभ माना गया.
पुरातत्व एवं इतिहासकार कैलाश चंद्र पांडे ने भी शिवना नदी के द्वारा प्राकृतिक जलाभिषेक को धार्मिक लिहाज से उत्तम बताया है. 1800 साल पुरानी प्रतिमा नदी में लंबे समय तक पानी में पड़ी रही और शिवना के प्राकृतिक जल प्रवाह से जलपूरित इसके उत्तम स्वरूप के कारण ही दुनिया की एक अलौकिक प्रतिमा मानी गई है. इस साल भी पूरे प्रदेश में बाढ़ के हालात थे. इसके बावजूद मालवा में संतुलित वर्षा के योग को भी धार्मिक लिहाज से भगवान का आशीर्वाद माना जा रहा है.
धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के मुताबिक इसे प्राकृतिक जलाभिषेक को क्षेत्र की उन्नति वाला बताया जा रहा है. इस बार की बारिश में दो बार यहां प्राकृतिक जलाभिषेक के योग बने. जहां शिवना ने शिव का जलाभिषेक किया. इस दौरान कई दिनों तक पशुपतिनाथ की प्रतिमा शिवना के जल में डूबी रही. यही वजह है कि इस धार्मिक योग से मालवांचल में खुशी का माहौल है.