मंदसौर। पुलिस की ठांय-ठांय से सुर्खियों में आया मंदसौर शहर पिछले विधानसभा चुनाव में सियासत का सबसे बड़ा केंद्र बन गया था. किसान हत्याकांड की पहली बरसी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बदलाव की जो नींव रखी थी, उसने प्रदेश में 15 सालों से जमी बीजेपी की नींव हिलाकर रख दी. हालांकि, मंदसौर पहले भी मालवा की राजनीति का केंद्र माना जाता रहा है. बीजेपी के दबदबे वाले मंदसौर संसदीय क्षेत्र में संघ का सीधा दखल माना जाता है, जहां इस बार संघ के करीबी बीजेपी प्रत्याशी सुधीर गुप्ता और राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन के बीच कांटे की टक्कर है.
राजस्थान की सीमा से सटा मंदसौर संसदीय क्षेत्र बड़े सियासी उलटफेर के लिए जाना जाता है. 1951 से अब तक इस सीट पर 16 आम चुनाव हुए हैं. जिनमें सात बार बीजेपी ने बाजी मारी है तो पांच बार कांग्रेस को जीत मिली है, जबकि चार बार जनसंघ के प्रत्याशी ने विजय हासिल की है. बीजेपी के दिग्गज नेता डॉक्टर लक्ष्मीनारायण पाण्डेय ने इस सीट से आठ बार जीत हासिल की है. हालांकि 2009 के चुनाव में मीनाक्षी नटराजन के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
मंदसौर-नीमच संसदीय क्षेत्र में इस बार 17 लाख 44 हजार 495 वोटर मतदान करेंगे. जिनमें 8 लाख 93 हजार 350 पुरुष मतदाता तो 8 लाख 51 हजार 100 महिला मतदाता शामिल हैं. जहां कुल 2157 मतदान केंद्र बनाए गए हैं.
मंदसौर संसदीय क्षेत्र के तहत मंदसौर, गरोठ, मल्हारगढ़, मनासा, सुवासरा, जावरा, नीमच और जावद विधानसभा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से सात पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी तो महज एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. जिससे आम चुनाव में भी बीजेपी का पलड़ा भारी लगता है. मंदसौर की सियासी फिजा में इस बार खेती-किसानी, बेरोजगारी, औद्योगिक विकास जैसे मुद्दों के साथ-साथ अफीम किसानों का मुद्दा भी हावी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी परेशानियों से मतदाता परेशान हैं.
संघ की नर्सरी कहे जाने वाले इस क्षेत्र में पिछले आम चुनाव में बीजेपी के सुधीर गुप्ता ने मीनाक्षी नटराजन को 3 लाख 3 हजार 649 वोटों के बड़े अंतर से हराया था, जबकि पुराने प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने-सामने हैं. खास बात ये है कि मंदसौर सीट पर डॉक्टर लक्ष्मीनारायण पाण्डेय के अलावा अब तक दूसरा कोई नेता दोबारा चुनाव नहीं जीत सका है, लेकिन इस बार छह दशक पुराना सियासी मिथक टूटने वाला है क्योंकि दोनों प्रत्याशी एक-एक बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं. लिहाजा इस बार दोनों में से किसी एक की जीत के साथ ही ये मिथक टूट जायेगा, अब यहां कमल खिलता है, या पंजे की धमक दिखती है, ये 23 मई को ही तय होगा.