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बांस की कलाकारी करने वाली इस महिला के हाथों में है जादू... आप भी देखिए - बांस

मंडला जिले के बम्हनी में रहने वाली कविता विश्वकर्मा ने बांस से सजावटी चीजें बनाने में महारत हासिल की है.

bamboo art
बांस की बेहतरीन कलाकारी
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Published : Dec 20, 2019, 11:56 PM IST

मंडला। जिले के बम्हनी में रहने वाली कविता विश्वकर्मा ने कभी आर्ट की ट्रेनिंग नहीं ली लेकिन बांस से वो ऐसी चीजें बनाती हैं कि इनकी कला को प्रदेश की राजधानी से लेकर देश के दिल तक तक हर जगह सराहना मिल चुकी है.

बांस के गुलदस्ते हों या फिर जहाज से लेकर दूसरी सजावटी चीजें बनाने में कविता विश्वकर्मा को महारत हासिल है. ताज्जुब की बात ये कि कविता ने इन सबकी कहीं ना तो ट्रेनिंग ली ना ही कभी किसी कलाकार से सीखा है. कविता के पति जब लकड़ी और बांस पर कलाकारी करते थे तो उन्हें देखकर कविता ने बांस को आकार देना शुरू कर दिया.

बांस की बेहतरीन कलाकारी

कविता इतनी बारीकी के काम करती हैं कि जो भी देखे बस देखता रह जाए. इस काम में उनका बेटा भी उनकी मदद करता है.वहीं उनके पति लकड़ी से दूसरी तरह के सजावटी सामान बनाते हैं. कविता का कहना है कि दोनों के काम मे कोई दखल नहीं देता. दोनों अपनी रुचि और सोच को अलग-अलग तरह से आकार देते हैं, कविता दिल्ली, जयपुर, भोपाल जैसी जगहों पर लगने वाले आर्ट एंड क्राफ्ट मेलों में भी हिस्सा लेती हैं और उन्हें भोपाल में सम्मान भी मिल चुका है.

उनका कहना है कि सरकारी मदद नहीं मिल पाने के चलते की परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि कच्चा माल समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता. वहीं मेहनत की लिहाज से लोग मेहनताना भी नहीं देना चाहते.

मंडला। जिले के बम्हनी में रहने वाली कविता विश्वकर्मा ने कभी आर्ट की ट्रेनिंग नहीं ली लेकिन बांस से वो ऐसी चीजें बनाती हैं कि इनकी कला को प्रदेश की राजधानी से लेकर देश के दिल तक तक हर जगह सराहना मिल चुकी है.

बांस के गुलदस्ते हों या फिर जहाज से लेकर दूसरी सजावटी चीजें बनाने में कविता विश्वकर्मा को महारत हासिल है. ताज्जुब की बात ये कि कविता ने इन सबकी कहीं ना तो ट्रेनिंग ली ना ही कभी किसी कलाकार से सीखा है. कविता के पति जब लकड़ी और बांस पर कलाकारी करते थे तो उन्हें देखकर कविता ने बांस को आकार देना शुरू कर दिया.

बांस की बेहतरीन कलाकारी

कविता इतनी बारीकी के काम करती हैं कि जो भी देखे बस देखता रह जाए. इस काम में उनका बेटा भी उनकी मदद करता है.वहीं उनके पति लकड़ी से दूसरी तरह के सजावटी सामान बनाते हैं. कविता का कहना है कि दोनों के काम मे कोई दखल नहीं देता. दोनों अपनी रुचि और सोच को अलग-अलग तरह से आकार देते हैं, कविता दिल्ली, जयपुर, भोपाल जैसी जगहों पर लगने वाले आर्ट एंड क्राफ्ट मेलों में भी हिस्सा लेती हैं और उन्हें भोपाल में सम्मान भी मिल चुका है.

उनका कहना है कि सरकारी मदद नहीं मिल पाने के चलते की परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि कच्चा माल समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता. वहीं मेहनत की लिहाज से लोग मेहनताना भी नहीं देना चाहते.

Intro:मण्डला जिले के बम्हनी में रहने वाली कविता विश्वकर्मा ने कभी आर्ट की ट्रेनिंग नहीं ली लेकिन बांस से ये ऐसे उत्पाद बनाती हैं कि इनकी कला को प्रदेश की राजधानी से लेकर देश के दिल तक तक मे सराहना मिल चुकी है


Body:बाँस के गुलदस्ते हो या फिर जहाज से लेकर दूसरी सजावटी चीजें बनाने में कविता विश्वकर्मा को महारत हाशिल है और ताज्जुब की बात यह कि कविता ने यह सबकी कहीं न तो ट्रेनिग ली न ही कभी किसी कलाकार से इन्हें बनाना सीखा बलिक उनके पति जब लकड़ी और बाँस पर कलाकारी करते थे तो इन्होंने भी देख देख कर बाँस को आकार देना शुरू कर दिया और आज इतनी बारीकी के काम करती हैं कि जो भी देखे बस देखता रह जाए इस काम मे कविता की मदद उनका बेटा भी करता है वहीं कविता के पति लकड़ी के दूसरी तरह के सजावटी सामान बनाते हैं,कविता का कहना है कि दोनों के काम मे कोई दखल देता अपनी रुचि और सोच को अलग अलग तरह से आकार देते हैं,कविता दिल्ली जयपुर भोपाल जैसी जगहों पर लगने वाले आर्ट एंड क्राफ्ट मेलों में शिरकत करती हैं और उन्हें भोपाल में सम्मान भी मिल चुका है।


Conclusion:कविता का कहना है कि सरकारी मदद न मिल पाने के चलते इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि कच्चा माल समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता वहीं मेहनत की लिहाज से लोग मेहनताना भी नहीं देना चाहते।

बाईट--कविता विश्वकर्मा, बाँस कलाकार
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