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जिसे जीते जी छू न पाए अंग्रेज, ऐसी थीं वीरांगना अवंति बाई लोधी

20 मार्च 1858 को वीरांगना रानी आवन्ति बाई लोधी, युध्द लड़ते हुए अपने आप को चारों तरफ से घिरता देख स्वयं तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया लेकिन इससे पहले उन्होंने अंग्रेजों के दांत ऐसे खट्टे किए की पूरे मुल्क में मंडला सबसे पहले आजाद हो चुका था.

वीरांगना अवंति बाई लोधी
वीरांगना अवंति बाई लोधी
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Published : Mar 21, 2021, 10:56 PM IST

मंडला। साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी नेता अवंतीबाई लोधी का जन्म लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी, जिला सिवनी के जमींदार राव जुझार सिंह के यहाँ हुआ था. जिसके बाद वीरांगना अवंतीबाई लोधी की शिक्षा दीक्षा मनकेहणी ग्राम में ही हुई. बचपन में ही इन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीख लिए थे. बाल्यकाल से ही वीरांगना अवंतीबाई बड़ी वीर और साहसी थीं. और जैसे-जैसे वीरांगना अवंतीबाई बड़ी होती गयीं वैसे-वैसे उनकी वीरता के किस्से आसपास के क्षेत्र में फैलने लगे.

वीरांगना अवंति बाई लोधी का गाथा
  • इनसे हुआ विवाह

पिता जुझार सिंह ने अपनी कन्या अवंतीबाई लोधी का विवाह सजातीय लोधी राजपूतों की रामगढ़ रियासत, जिला मंडला (अब डिंडौरी) के राजकुमार से करने का निश्चय किया. जुझार सिंह की इस साहसी बेटी का रिश्ता रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के लिए स्वीकार किया. इसके बाद जुझार सिंह की ये साहसी कन्या रामगढ़ रियासत की कुलवधु बनी. साल 1850 में रामगढ़ रियासत के राजा और वीरांगना अवंतीबाई लोधी के ससुर लक्ष्मण सिंह की मृत्यु हो गई और राजकुमार विक्रमादित्य सिंह का रामगढ़ रियासत के राजा के रूप में राजतिलक किया गया, लेकिन कुछ सालों बाद राजा विक्रमादित्य सिंह अस्वस्थ्य रहने लगे.

उनके दोनों पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह अभी छोटे थे, जिससे राज्य का सारा भार रानी अवंतीबाई लोधी के कन्धों पर आ गया. वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने वीरांगना झाँसी की रानी की तरह ही अपने पति विक्रमादित्य के अस्वस्थ होने पर ऐसी दशा में राज्य कार्य संभालकर अपनी सुयोग्यता का परिचय दिया और अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दिए.

  • अंग्रेजों की बुरी नजर में आया रामगढ़

लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत जिस रियासत का कोई स्वाभाविक बालिग उत्तराधिकारी नहीं होता था, ब्रिटिश सरकार उसे अपने अधीन कर रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में उसका विलय कर लेती थी. इसके अलावा इस हड़प नीति के अंतर्गत डलहौजी ने यह निर्णय लिया कि जिन भारतीय शासकों ने कंपनी के साथ मित्रता की है अथवा जिन शासकों के राज्य ब्रिटिश सरकार के अधीन है और उन शासकों के यदि कोई पुत्र नहीं है, तो वह राज्य बिना अंग्रेजी हुकूमत कि अनुमति के किसी को गोद नहीं ले सकता. रामगढ़ की इस राजनैतिक स्थिति का जब अंग्रेजी सरकार को पता लगा तो उन्होंने रामगढ़ रियासत को 'कोर्ट ऑफ वार्डस' के अधीन कर लिया और शासन प्रबन्ध के लिए एक तहसीलदार नियुक्त कर दिया. इसके बदले रामगढ़ के राज परिवार को पेन्शन दे दी गई. इस घटना से रानी वीरांगना अवंतीबाई लोधी काफी दुखी हुईं, लेकिन वह अपमान का घूंट पीकर रह गईं. परेशान रानी उचित अवसर की तलाश करने लगी.

  • आसपास के राजाओं में जलाई क्रांति की ज्वाला

मई 1857 में अस्वस्थता के कारण राजा विक्रमादित्य सिंह का स्वर्गवास हो गया. सन 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो क्रांतिकारियों का सन्देश रामगढ़ भी पहुंचा. रानी तो अंग्रेजों से पहले से ही जली भुनी बैठी थीं, क्योंकि उनका राज्य भी झांसी और अन्य राज्यों की तरह कोर्ट के अधीन कर लिया गया था और अंग्रेज रेजिमेंट उनके समस्त कार्यों पर निगाह रखे हुई थी. रानी ने अपनी ओर से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमींदारों को चिट्ठी के साथ कांच की चूड़ियां भिजवाईं, उस चिट्ठी में लिखा था- "देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बैठो, तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दो." सभी देशभक्त राजाओं और जमींदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बड़ी सराहना की और उनकी योजनानुसार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ाकर दिया. जगह-जगह गुप्त सभाएं कर देश में क्रान्ति की ज्वाला फैला दी.

महिला दिवस विशेषः रानी अवंतीबाई ने 1857 में मंडला को करवाया था आजाद

  • विद्रोह का बिगुल फूंका

इस बीच कुछ विश्वासघाती लोगों की वजह से रानी के प्रमुख सहयोगी नेताओं को अंग्रेजों की ओर मत्यु-दंड दे दिया गया. रानी इससे काफी आहत हुईं. रानी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और रानी ने अपने राज्य से कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारियों को भगा दिया और राज्य एवं क्रान्ति की बागडोर अपने हाथों में ले ली. ऐसे में वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी मध्य भारत की क्रान्ति की प्रमुख नेता के रूप में उभरी. रानी के विद्रोह की खबर जबलपुर के कमिश्नर वाडिंग्टन को दी गई तो वह आगबबूला हो उठा. उसने रानी को आदेश दिया कि वह मंडला के डिप्टी कलेक्टर से भेंट कर लें. अंग्रेज पदाधिकारियों से मिलने की बजाय रानी ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी.

  • रामगढ़ की गुप्त सभा, खैरी का युद्ध

रानी ने रामगढ़ के किले की मरम्मत करा कर उसे और मजबूत एवं सुदृढ़ बनवाया. मध्य भारत के विद्रोही नेता रानी के नेतृत्व में एकजुट होने लगे. अंग्रेज रानी और मध्य भारत के इस विद्रोह से चिंतित हो उठे. वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपने साथियों के सहयोग से हमला बोल कर घुघरी, रामनगर, बिछिया इत्यादि क्षेत्रों से अंग्रेजी राज का सफाया कर दिया. इसके बाद रानी ने मंडला पर आक्रमण करने का निर्णय लिया. इस युध्द में वारांगना अवंतीबाई लोधी की मजबूत क्रान्तिकारी सेना और अंग्रेजी सेना में जोरदार मुठभेड़ें हुई. इस युद्ध में अंग्रेजों को धूल चटा दी गई.

  • फिर हुआ युद्ध

मंडला का डिप्टी कमिशनर वाडिंगटन लम्बे समय से रानी से अपने अपमान का बदला लेने को आतुर था और वह हर हाल में अपनी हार का बदला लेना चाहता था. इसके बाद वाडिंगटन ने अपनी सेना को पुनर्गठित कर रामगढ़ के किले पर हमला बोल दिया. जिसमे रीवा नरेश की सेना भी अंग्रेजों का साथ दे रही थी. रानी अवंतीबाई की सेना अंग्रेजों की सेना के मुकाबले कमजोर थी, लेकिन फिर भी वीर सैनिकों ने साहसी वीरांगना अवंतीबाई लोधी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया. लेकिन ब्रिटिश सेना संख्या बल एवं युद्ध सामग्री की तुलना में रानी की सेना से कई गुना बलशाली थी.

आखिरकार स्थिति को भांपते हुए रानी ने किले के बाहर निकलकर देवहारगढ़ की पहाड़ियों की तरफ प्रस्थान किया. रानी के रामगढ़ छोड़ देने के बाद अंग्रेजी सेना ने रामगढ़ के किले को बुरी तरह छती पहुंचातक ध्वस्त कर दिया और खूब लूटपाट की. इसके बाद अंग्रेजी सेना रानी का पता लगाती हुई देवहार गढ़ की पहाड़ियों के निकट पहुंची, यहाँ पर रानी ने अपने सैनिकों के साथ पहले से ही मोर्चा जमा रखा था. अंग्रेजों ने रानी के पास आत्मसमर्पण का सन्देश भिजवाया, लेकिन रानी ने सन्देश को अस्वीकार करते हुए सन्देश भिजवाया कि लड़ते-लड़ते बेशक मरना पड़े लेकिन अंग्रेजों के भार से नहीं दबूंगी.

  • खुद ही किया बलिदान

वाडिंगटन ने चारों तरफ से रानी की सेना पर धावा बोला. कई दिनों तक रानी की सेना और अंग्रेजी सेना में युध्द चलता रहा, जिसमें रीवा नरेश की सेना अंग्रेजों का पहले से ही साथ दे रही थी. रानी की सेना संख्या बल में बेशक थोड़ी सी थी लेकिन युध्द में उन्होंने अंग्रेजी सेना की चूलें हिला के रख दिए थे. इस युध्द में रानी की सेना के कई सैनिक धायल हुए और रानी को खुद बाएं हाथ में गोली लगी जिससे उनकी बन्दूक छूटकर गिर गई. अपने आप को चारों ओर से घिरता देख वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए अपने अंगरक्षक से तलवार छीनकर स्वयं 20 अप्रैल 1858 को तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया.

मंडला। साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी नेता अवंतीबाई लोधी का जन्म लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी, जिला सिवनी के जमींदार राव जुझार सिंह के यहाँ हुआ था. जिसके बाद वीरांगना अवंतीबाई लोधी की शिक्षा दीक्षा मनकेहणी ग्राम में ही हुई. बचपन में ही इन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीख लिए थे. बाल्यकाल से ही वीरांगना अवंतीबाई बड़ी वीर और साहसी थीं. और जैसे-जैसे वीरांगना अवंतीबाई बड़ी होती गयीं वैसे-वैसे उनकी वीरता के किस्से आसपास के क्षेत्र में फैलने लगे.

वीरांगना अवंति बाई लोधी का गाथा
  • इनसे हुआ विवाह

पिता जुझार सिंह ने अपनी कन्या अवंतीबाई लोधी का विवाह सजातीय लोधी राजपूतों की रामगढ़ रियासत, जिला मंडला (अब डिंडौरी) के राजकुमार से करने का निश्चय किया. जुझार सिंह की इस साहसी बेटी का रिश्ता रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के लिए स्वीकार किया. इसके बाद जुझार सिंह की ये साहसी कन्या रामगढ़ रियासत की कुलवधु बनी. साल 1850 में रामगढ़ रियासत के राजा और वीरांगना अवंतीबाई लोधी के ससुर लक्ष्मण सिंह की मृत्यु हो गई और राजकुमार विक्रमादित्य सिंह का रामगढ़ रियासत के राजा के रूप में राजतिलक किया गया, लेकिन कुछ सालों बाद राजा विक्रमादित्य सिंह अस्वस्थ्य रहने लगे.

उनके दोनों पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह अभी छोटे थे, जिससे राज्य का सारा भार रानी अवंतीबाई लोधी के कन्धों पर आ गया. वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने वीरांगना झाँसी की रानी की तरह ही अपने पति विक्रमादित्य के अस्वस्थ होने पर ऐसी दशा में राज्य कार्य संभालकर अपनी सुयोग्यता का परिचय दिया और अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दिए.

  • अंग्रेजों की बुरी नजर में आया रामगढ़

लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत जिस रियासत का कोई स्वाभाविक बालिग उत्तराधिकारी नहीं होता था, ब्रिटिश सरकार उसे अपने अधीन कर रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में उसका विलय कर लेती थी. इसके अलावा इस हड़प नीति के अंतर्गत डलहौजी ने यह निर्णय लिया कि जिन भारतीय शासकों ने कंपनी के साथ मित्रता की है अथवा जिन शासकों के राज्य ब्रिटिश सरकार के अधीन है और उन शासकों के यदि कोई पुत्र नहीं है, तो वह राज्य बिना अंग्रेजी हुकूमत कि अनुमति के किसी को गोद नहीं ले सकता. रामगढ़ की इस राजनैतिक स्थिति का जब अंग्रेजी सरकार को पता लगा तो उन्होंने रामगढ़ रियासत को 'कोर्ट ऑफ वार्डस' के अधीन कर लिया और शासन प्रबन्ध के लिए एक तहसीलदार नियुक्त कर दिया. इसके बदले रामगढ़ के राज परिवार को पेन्शन दे दी गई. इस घटना से रानी वीरांगना अवंतीबाई लोधी काफी दुखी हुईं, लेकिन वह अपमान का घूंट पीकर रह गईं. परेशान रानी उचित अवसर की तलाश करने लगी.

  • आसपास के राजाओं में जलाई क्रांति की ज्वाला

मई 1857 में अस्वस्थता के कारण राजा विक्रमादित्य सिंह का स्वर्गवास हो गया. सन 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो क्रांतिकारियों का सन्देश रामगढ़ भी पहुंचा. रानी तो अंग्रेजों से पहले से ही जली भुनी बैठी थीं, क्योंकि उनका राज्य भी झांसी और अन्य राज्यों की तरह कोर्ट के अधीन कर लिया गया था और अंग्रेज रेजिमेंट उनके समस्त कार्यों पर निगाह रखे हुई थी. रानी ने अपनी ओर से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमींदारों को चिट्ठी के साथ कांच की चूड़ियां भिजवाईं, उस चिट्ठी में लिखा था- "देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बैठो, तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दो." सभी देशभक्त राजाओं और जमींदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बड़ी सराहना की और उनकी योजनानुसार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ाकर दिया. जगह-जगह गुप्त सभाएं कर देश में क्रान्ति की ज्वाला फैला दी.

महिला दिवस विशेषः रानी अवंतीबाई ने 1857 में मंडला को करवाया था आजाद

  • विद्रोह का बिगुल फूंका

इस बीच कुछ विश्वासघाती लोगों की वजह से रानी के प्रमुख सहयोगी नेताओं को अंग्रेजों की ओर मत्यु-दंड दे दिया गया. रानी इससे काफी आहत हुईं. रानी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और रानी ने अपने राज्य से कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारियों को भगा दिया और राज्य एवं क्रान्ति की बागडोर अपने हाथों में ले ली. ऐसे में वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी मध्य भारत की क्रान्ति की प्रमुख नेता के रूप में उभरी. रानी के विद्रोह की खबर जबलपुर के कमिश्नर वाडिंग्टन को दी गई तो वह आगबबूला हो उठा. उसने रानी को आदेश दिया कि वह मंडला के डिप्टी कलेक्टर से भेंट कर लें. अंग्रेज पदाधिकारियों से मिलने की बजाय रानी ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी.

  • रामगढ़ की गुप्त सभा, खैरी का युद्ध

रानी ने रामगढ़ के किले की मरम्मत करा कर उसे और मजबूत एवं सुदृढ़ बनवाया. मध्य भारत के विद्रोही नेता रानी के नेतृत्व में एकजुट होने लगे. अंग्रेज रानी और मध्य भारत के इस विद्रोह से चिंतित हो उठे. वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपने साथियों के सहयोग से हमला बोल कर घुघरी, रामनगर, बिछिया इत्यादि क्षेत्रों से अंग्रेजी राज का सफाया कर दिया. इसके बाद रानी ने मंडला पर आक्रमण करने का निर्णय लिया. इस युध्द में वारांगना अवंतीबाई लोधी की मजबूत क्रान्तिकारी सेना और अंग्रेजी सेना में जोरदार मुठभेड़ें हुई. इस युद्ध में अंग्रेजों को धूल चटा दी गई.

  • फिर हुआ युद्ध

मंडला का डिप्टी कमिशनर वाडिंगटन लम्बे समय से रानी से अपने अपमान का बदला लेने को आतुर था और वह हर हाल में अपनी हार का बदला लेना चाहता था. इसके बाद वाडिंगटन ने अपनी सेना को पुनर्गठित कर रामगढ़ के किले पर हमला बोल दिया. जिसमे रीवा नरेश की सेना भी अंग्रेजों का साथ दे रही थी. रानी अवंतीबाई की सेना अंग्रेजों की सेना के मुकाबले कमजोर थी, लेकिन फिर भी वीर सैनिकों ने साहसी वीरांगना अवंतीबाई लोधी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया. लेकिन ब्रिटिश सेना संख्या बल एवं युद्ध सामग्री की तुलना में रानी की सेना से कई गुना बलशाली थी.

आखिरकार स्थिति को भांपते हुए रानी ने किले के बाहर निकलकर देवहारगढ़ की पहाड़ियों की तरफ प्रस्थान किया. रानी के रामगढ़ छोड़ देने के बाद अंग्रेजी सेना ने रामगढ़ के किले को बुरी तरह छती पहुंचातक ध्वस्त कर दिया और खूब लूटपाट की. इसके बाद अंग्रेजी सेना रानी का पता लगाती हुई देवहार गढ़ की पहाड़ियों के निकट पहुंची, यहाँ पर रानी ने अपने सैनिकों के साथ पहले से ही मोर्चा जमा रखा था. अंग्रेजों ने रानी के पास आत्मसमर्पण का सन्देश भिजवाया, लेकिन रानी ने सन्देश को अस्वीकार करते हुए सन्देश भिजवाया कि लड़ते-लड़ते बेशक मरना पड़े लेकिन अंग्रेजों के भार से नहीं दबूंगी.

  • खुद ही किया बलिदान

वाडिंगटन ने चारों तरफ से रानी की सेना पर धावा बोला. कई दिनों तक रानी की सेना और अंग्रेजी सेना में युध्द चलता रहा, जिसमें रीवा नरेश की सेना अंग्रेजों का पहले से ही साथ दे रही थी. रानी की सेना संख्या बल में बेशक थोड़ी सी थी लेकिन युध्द में उन्होंने अंग्रेजी सेना की चूलें हिला के रख दिए थे. इस युध्द में रानी की सेना के कई सैनिक धायल हुए और रानी को खुद बाएं हाथ में गोली लगी जिससे उनकी बन्दूक छूटकर गिर गई. अपने आप को चारों ओर से घिरता देख वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए अपने अंगरक्षक से तलवार छीनकर स्वयं 20 अप्रैल 1858 को तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया.

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