मंडला। आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला लाचार और आवारा गायों का आशियाना बन चुकी है. ये सब कुछ निशा की सोच की बदौलत ही संभव हो पाया. सेमरखापा गांव में रहने वाली निशा ने धेनुवाड़ी का जिम्मा अपने कंधों पर लिया और उनकी मेहनत भी रंग लाई. आज इस धेनुवाड़ी में आधा सैकड़ा गौवंश को एक तरह से नया जीवन दिया जा रहा है.
सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला की नींव 8 साल पहले गांव की महिलाओं ने रखी. तब से लेकर अब तक धेनुवाड़ी में लाचार, बीमार, बुजुर्ग और विकलांग गौवंश की सेवा की जा रही है. धेनुवाड़ी की नींव कैसे रखी गई इसके पीछे की कहानी निशा सिंह ने ईटीवी भारत से साझा की है.
इतना सब होने के बाद भी सरकार की तरफ से धेनुवाड़ी को कोई सहायता नहीं मिल रही है. धेनुवाड़ी को संचालित करने वाली महिलाएं इसके लिए कई बार सरकारी ऑफिसों के चक्कर काट चुकी हैं. बावजूद हालत जस के तस हैं. यही वजह है कि धेनुवाड़ी को आज आर्थिक मदद की दरकार है. हालांकि जब ईटीवी भारत ने इस मुद्दे को उठाया तो जिम्मेदारों ने सरकारी मदद नहीं मिलने की वजह बताई और इसका हल भी बताया.
सेमरखापा गांव की 10 महिलाओं का समूह दिन-रात इन गायों की सेवा कर रहा है. लेकिन उन्हें अब तक सरकारी मदद नहीं मिली. यही वजह है कि धेनुवाड़ी गौशाला आज भारी आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे में समाज के अलावा शासन, प्रशासन को धेनुवाड़ी की मदद के लिए आगे आना चाहिए.