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निशा की सोच से लाचार गौवंश को मिला आशियाना, धेनुवाड़ी को सरकार से मदद की दरकार

मंडला जिले के सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला को गांव की कुछ महिलाएं अपने खर्च पर संचालित कर रही हैं. गौशाला में 50 से अधिक गाय हैं. आज ये गौशाला आर्थिक संकट से जूझ रही है और उसे मदद की दरकार है.

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धेनुवाड़ी को सरकार से मदद की दरकार
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Published : Dec 6, 2019, 10:35 PM IST

मंडला। आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला लाचार और आवारा गायों का आशियाना बन चुकी है. ये सब कुछ निशा की सोच की बदौलत ही संभव हो पाया. सेमरखापा गांव में रहने वाली निशा ने धेनुवाड़ी का जिम्मा अपने कंधों पर लिया और उनकी मेहनत भी रंग लाई. आज इस धेनुवाड़ी में आधा सैकड़ा गौवंश को एक तरह से नया जीवन दिया जा रहा है.

धेनुवाड़ी को सरकार से मदद की दरकार

सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला की नींव 8 साल पहले गांव की महिलाओं ने रखी. तब से लेकर अब तक धेनुवाड़ी में लाचार, बीमार, बुजुर्ग और विकलांग गौवंश की सेवा की जा रही है. धेनुवाड़ी की नींव कैसे रखी गई इसके पीछे की कहानी निशा सिंह ने ईटीवी भारत से साझा की है.

story on dhenewadi gaushala of mandla
गायों की सेवा करती गांव की महिलाएं
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धेनुवाड़ी में मौजूद गाय

इतना सब होने के बाद भी सरकार की तरफ से धेनुवाड़ी को कोई सहायता नहीं मिल रही है. धेनुवाड़ी को संचालित करने वाली महिलाएं इसके लिए कई बार सरकारी ऑफिसों के चक्कर काट चुकी हैं. बावजूद हालत जस के तस हैं. यही वजह है कि धेनुवाड़ी को आज आर्थिक मदद की दरकार है. हालांकि जब ईटीवी भारत ने इस मुद्दे को उठाया तो जिम्मेदारों ने सरकारी मदद नहीं मिलने की वजह बताई और इसका हल भी बताया.

story on dhenewadi gaushala of mandla
धेनुवाड़ी में काम करने वाली महिलाएं

सेमरखापा गांव की 10 महिलाओं का समूह दिन-रात इन गायों की सेवा कर रहा है. लेकिन उन्हें अब तक सरकारी मदद नहीं मिली. यही वजह है कि धेनुवाड़ी गौशाला आज भारी आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे में समाज के अलावा शासन, प्रशासन को धेनुवाड़ी की मदद के लिए आगे आना चाहिए.

मंडला। आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला लाचार और आवारा गायों का आशियाना बन चुकी है. ये सब कुछ निशा की सोच की बदौलत ही संभव हो पाया. सेमरखापा गांव में रहने वाली निशा ने धेनुवाड़ी का जिम्मा अपने कंधों पर लिया और उनकी मेहनत भी रंग लाई. आज इस धेनुवाड़ी में आधा सैकड़ा गौवंश को एक तरह से नया जीवन दिया जा रहा है.

धेनुवाड़ी को सरकार से मदद की दरकार

सेमरखापा गांव में मौजूद धेनुवाड़ी गौशाला की नींव 8 साल पहले गांव की महिलाओं ने रखी. तब से लेकर अब तक धेनुवाड़ी में लाचार, बीमार, बुजुर्ग और विकलांग गौवंश की सेवा की जा रही है. धेनुवाड़ी की नींव कैसे रखी गई इसके पीछे की कहानी निशा सिंह ने ईटीवी भारत से साझा की है.

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गायों की सेवा करती गांव की महिलाएं
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धेनुवाड़ी में मौजूद गाय

इतना सब होने के बाद भी सरकार की तरफ से धेनुवाड़ी को कोई सहायता नहीं मिल रही है. धेनुवाड़ी को संचालित करने वाली महिलाएं इसके लिए कई बार सरकारी ऑफिसों के चक्कर काट चुकी हैं. बावजूद हालत जस के तस हैं. यही वजह है कि धेनुवाड़ी को आज आर्थिक मदद की दरकार है. हालांकि जब ईटीवी भारत ने इस मुद्दे को उठाया तो जिम्मेदारों ने सरकारी मदद नहीं मिलने की वजह बताई और इसका हल भी बताया.

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धेनुवाड़ी में काम करने वाली महिलाएं

सेमरखापा गांव की 10 महिलाओं का समूह दिन-रात इन गायों की सेवा कर रहा है. लेकिन उन्हें अब तक सरकारी मदद नहीं मिली. यही वजह है कि धेनुवाड़ी गौशाला आज भारी आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे में समाज के अलावा शासन, प्रशासन को धेनुवाड़ी की मदद के लिए आगे आना चाहिए.

Intro:करीब 8 साल पहले मण्डला जिला मुख्यालय के करीबी ग्राम सेमरखापा में गौवंश को होने वाली परेशानियों से स्थानीय महिलाओं को निशा सिंह ने अवगत कराया और फिर इन महिलाओं ने उठाया लाचार,बीमार,दुर्घटना ग्रस्त,बुजुर्ग और विकलांग गायों और मवेशियों को आशियाना देने जिसके बाद ' धेनुवाड़ी ' गौशाला की स्थापना भी हो गयी जहाँ आज आधा सैकड़ा ऐसी मवेशी हैं जिन्हें कोई पालना नहीं चाहता।


Body:धेनुवाड़ी आशियाना है उन गौवंस का जो विकलांग, दुर्घटनाओं की शिकार, बीमार ,लाचार, अंधी,लँगड़ी या फिर बुजुर्ग हो गयी हैं या यों कहें कि सभ्य समाज के किसी भी स्वार्थ को पूरा करने में असमर्थ है और इसकी स्थापना का उद्देश्य भी यही है। करीब आठ साल पहले सेमरखापा की चारागाह भूमि पर अनाज खरीदी केंद्र बनाए जाने की स्वीकृति सरकार से मिली तो निशा सिंह को लगा कि अब गाँव के गौवंस को हर तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा ऐसे में गाँव की महिलाओं से उन्होंने चर्चा की तो 10 महिलाओं का एक समूह तैयार हो गया जिन्होंने दिन रात एक कर तन मन धन देकर टूटा फूटा ही सही लेकिन मवेशियों के लिए आशियाना तैयार कर ही दिया तब से लगातार ये महिलाएं उन गायों की सेवा कर रही हैं जो किसी के काम की नहीं होती।इन महिलाओं का कहना है कि समाज से इन्हें न के बराबर ही मदद मिलती है उल्टे बुजुर्ग लाचार गायों या फिर बैलों और नाटों को लोग यहाँ जबरन छोड़ कर चले जाते हैं इस समय यहाँ 50 के करीब गौवंश रह रही हैं जिनमे से सिर्फ दो ही दूध देने वाली हैं वो भी नाममात्र का ऐसे में इन महिलाओं को खुद अपना तन,मन और धन लगा कर गायों की सेवा और उपचार की व्यवस्था करनी पड़ती हैं प्रत्येक महिला सदस्य हर माह 100 रुपये जरूर देती है इसके अलावा यहाँ वहाँ से मदद के इंतजाम और चारा भूसा के लिए सहायता में लगी रहती है,लेकिन कोई भी सदस्य इतनी परेशानी के बाद भी गौ सेवा से पीछे नहीं हटना चाहती क्योंकि उनका मानना है कि इन मूक जानवरों में भी जान है और इनके बारे में सोचना समाज ने बंद कर दिया है ऐसे में किसी को तो यह बीड़ा उठाना ही होगा।


Conclusion:धेनुवाड़ी की यह गौशाला आज भारी आर्थिक संकट से जूझ रही है ऐसे में समाज के साथ ही शासन,प्रशासन से इन महिलाओं को गौशाला चलाने के लिए मदद की दरकार है,वहीं उपसंचालक पशु विभाग मण्डला कार्यालय में पदस्त डॉ सरोज बरकड़े से जब इनकी मदद की बात की गई तो उनका कहना है कि पशु संवर्धन विभाग की तरफ से रजिस्ट्रेशन के बाद प्रति मवेसी के हिसाब से 20 रुपये रोजाना दिए जाते हैं और धेनुवाड़ी के लिए भी जल्द प्रयास किये जाएंगे।

बाईट--निशा सिंह (धेनुवाड़ी प्रारम्भ करने वाली महिला )
बाईट--किरण ठाकुर सचिव,धेनुवाड़ी गौशाला
ओपनिग और एन्ड पीटूसी --मयंक तिवारी संवददाता मण्डला
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