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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रख ठूंस-ठूंसकर वाहनों में भरे जा रहे स्कूली बच्चे

तीन सवारी वाले ऑटो में 20 बच्चे और उनके स्कूल बैग भरे होते हैं, जिनमें न तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन होता है और न ही कभी इन ऑटो की तरफ पालकों और प्रशासन का ध्यान जाता है.

वाहनों में भरे जा रहे स्कूली बच्चे
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Published : Oct 19, 2019, 10:44 AM IST

मण्डला। जिले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए स्कूल के वाहनों में बच्चों को ठूंस कर लाया और ले जाया जाता है. तहसील या ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अपनी जान हथेली पर रख इन वाहन चालकों के भरोसे स्कूल आते-जाते हैं, लेकिन कोई रोक-टोक करने वाला नहीं है.

तीन सवारी वाले ऑटो में 20 बच्चे और उनके स्कूल बैग भरे होते हैं, जिनमें न तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन होता है और न ही कभी इन ऑटो की तरफ पालकों और प्रशासन का ध्यान जाता है. इनमें सुरक्षा तो छोड़िए, वाहन चालकों के लाइसेंस बने ही नहीं हैं और वो सड़क पर मासूमों की जान से खिलवाड़ कर हाइवे पर वाहन दौड़ा रहे हैं.

वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चे

इस पड़ताल में ईटीवी भारत ने ये समझने का प्रयास किया कि क्या जो नियम और कानून बनाए जाते हैं वो सिर्फ कागजों तक ही सीमित होते हैं. आखिर उनका पालन जमीनी हकीकत पर क्यों नहीं होता.

मण्डला। जिले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए स्कूल के वाहनों में बच्चों को ठूंस कर लाया और ले जाया जाता है. तहसील या ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अपनी जान हथेली पर रख इन वाहन चालकों के भरोसे स्कूल आते-जाते हैं, लेकिन कोई रोक-टोक करने वाला नहीं है.

तीन सवारी वाले ऑटो में 20 बच्चे और उनके स्कूल बैग भरे होते हैं, जिनमें न तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन होता है और न ही कभी इन ऑटो की तरफ पालकों और प्रशासन का ध्यान जाता है. इनमें सुरक्षा तो छोड़िए, वाहन चालकों के लाइसेंस बने ही नहीं हैं और वो सड़क पर मासूमों की जान से खिलवाड़ कर हाइवे पर वाहन दौड़ा रहे हैं.

वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चे

इस पड़ताल में ईटीवी भारत ने ये समझने का प्रयास किया कि क्या जो नियम और कानून बनाए जाते हैं वो सिर्फ कागजों तक ही सीमित होते हैं. आखिर उनका पालन जमीनी हकीकत पर क्यों नहीं होता.

Intro:शाजापुर के रिछोदा जैसी घटनाएं लगातार समाचारों की सुर्खियां बनती हैं मासूमो को अपनी जान गवानी पड़ती है रोते बिलखते माता पिता के साथ संवेदनाएं व्यक्त कर उन्हें ढांढस बधाने की नाकाम कोसिस की जाती है फिर इसकी जाँच के ढकोसले भी होते है लेकिन कभी वो सच सामने नहीं आ पाता कि इसके लिए वो जिम्मेदार थे जिन पर जबाबदारी थी ऐसे हादसों को रोकने की,बात मण्डला की करें तो ईटीवी भारत ने जब पड़ताल की तो सोते हुए प्रशासन के अलावा और कुछ सामने नहीं आया


Body:मण्डला जिले के किसी भी कोने में किसी भी तहसील या ग्रामीण क्षेत्र में चले जाइये यहाँ आपको स्कूल वाहन में भेड़ बकरियों की तरह ठूँसे हुए बच्चे आसानी से मिल जाएंगे जो जान हथेली पर इन वाहन चालकों के भरोसे स्कूल आते जाते हैं लेकिन इन्हें कोई रोक टोक करने वाले नहीं है,आलम तो ये है कि तीन सवारी वाले ऑटो में 20 बच्चे और उनके स्कूल बैग भरे होते हैं जिनमें न तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन होता न ही कभी इन ऑटो की तरफ पालकों और प्रशासन का ध्यान जाता,ईटीवी भारत की टीम ने इसे बहुत से ऑटो की रियल्टी चैक करना चाहा तो हमने पाया कि इनमें सुरक्षा के मानदंड तो छोड़िए वाहन चालकों के लाइसेंस बने ही नहीं है और वे सड़क पर मासूमों की जान से खिलवाड़ कर हाइवे पर वाहन दौड़ा रहे हैं जिनमें सवार हैं दर्जनों नोनीहाल, वहीं ये वाहन चालक अपने ऑटो का इंश्योरेंस भी कराना जरूरी नहीं समझते।


Conclusion:ईटीवी भारत ने यह समझने का प्रयास इस पड़ताल में किया कि क्या जो नियम और कानून बनाए जाते हैं वे सिर्फ कागजों तक ही सीमित होते है आखिर उनका पालन जमीनी हकीकत क्यों नहीं बन पाता,अगर आरटीओ,पुलिस प्रशासन के साथ ही हर स्कूल प्रबंधन चाह ले तो किसी घर का चिराग कम से कम इस तरह की लापरवाही से न बुझे और न ही उस परिवार को संतावना देने की जरूरत पड़े,इन दुर्घटनाओं को रोकना है तो हर किसी को जिम्मेदारी जरूर लेनी पड़ेगी वरना फिर मंत्री शांतरी को करने पड़ेंगे संवेदनाओं से भरे ट्वीट


बाईट---3 ऑटो चालक की बाईट हैं
बाईट--आर आर एस परिहार,मण्डला पुलिस अधीक्षक
पीटूसी--मयंक तिवारी मण्डला
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