मंडला। कहते हैं कि अगर इंसान सोच ले तो ऐसा कोई काम नहीं है, जो नामुमकिन हो. मंडला जिले की द्रौपती उन दिव्यांग बच्चों के लिए मिसाल है, जो नियति के आगे हार मान लेते हैं. द्रौपती के हाथ नहीं हैं, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी और पैरों में कलम थाम जिंदगी के कैनवास पर लिखने लगी.
पढ़ाई में अव्वल है द्रौपती
द्रौपती के हौसले की उड़ान के आगे नियति भी उसके आगे नतमस्तक है और आज ये बेटी अपने भविष्य में रंग भर रही है. ये दास्तां जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर भीमडोंगरी की है. जहां जन्म से ही दिव्यांगता की शिकार द्रौपती आज माध्यमिक शाला में कक्षा छठवीं की छात्रा है और सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग है और बाकी बच्चों के लिए भी द्रौपती एक मिसाल है.
शिक्षक बताते हैं कि दिव्यांग होने के बाद भी इसने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी और बाकी बच्चों के मुकाबले पढ़ाई-लिखाई में भी आगे है. ग्रामीण परिवेश में रहने वाली द्रौपती के माता-पिता बहेद गरीब हैं, लेकिन अपनी बेटी को पढ़ानें में उसका साथ देने में उसके कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं. द्रौपती की कुछ कर गुजरने की लगन और जज्बे को आज हर कोई सलाम कर रहा है. ऐसे में सरकार को भी दिव्यांग बच्चों की आर्थिक मदद करने के लिए आगे आना चाहिए.