मंडला। कोरोना वायरस के इस दौर में दुनियाभर की शिक्षा प्रणाली पर काफी असर हुआ है. कोरोना ने बच्चों को डिजिटल शिक्षा प्रणाली से जोड़ा तो है, लेकिन तब भी सवाल यह खड़ा होता है कि बच्चे कुछ सीख भी रहे या नहीं, डिजिटल शिक्षा ग्रहण करने के लिए उनके पास उपकरण है भी या नहीं. भारत जैसे देश में जहां 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और कई लोगों को बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाती ऐसे में 'हमारा घर हमारा विद्यालय' 'डीजी लैब' और 'मोहल्ला पाठशाला' जैसे तमाम कॉनसेप्ट का क्या अर्थ निकलता है. जब रेमोट एरिया के बच्चों के पास मोबाइल टीवी और रेडियो जैसी सुविधाएं हैं ही नहीं...
कहां से जुटाएं मोबाइल और टीवी
बारिश में स्कूल जा रहे इस बच्चे ने जो छाता लगाया है उससे आसमान साफ देखा जा सकता है, इसकी टूट चुकी डंडी की जगह जुगाड़ से एक लकड़ी लगा दी गयी है, जो यह बताने के लिए काफी है कि यहां के लोगों के लिए मोबाइल किसी सपने से कम नहीं.
सर्रा के नवीन माध्यमिक शाला में करीब 75 बच्चे पढ़ाई करते हैं. लेकिन मोबाइल सिर्फ 8 से 10 बच्चों के घर में ही हैं. वो भी भाई या पिताजी रखते हैं ऐसे में बच्चों और अभिभावकों को पता ही नहीं कि कोई व्हाट्सएप का ग्रुप बना है या फिर उसमें पढ़ाई लिखाई के वीडियो या पाठ्य सामग्री भेजी जा रही. इस कारण कई अभिभावक स्कूल में ही बच्चों का पढ़ने को व्यवहारिक मानते हैं.
केरोसीन के भभके में पढ़ाई
गांव के ग्रामीण इतने सम्पन्न तो नहीं कि बच्चों की पढ़ाई के लिए अलग से कमरा बना सकें, ऐसे में किसी धार्मिक मंच या ग्रामीण के घर को ही बच्चों को पढ़ाई के लिए चुना जाता है, वो भी जो इतने छोटे हैं कि बामुश्किल 5-6 बच्चे बैठ पाते हैं. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग की कल्पना करना बेमानी होगा.
वहीं इन अंधियारे कमरों में शिक्षा की रोशनी खोजना भी मजाक जैसा लगता है क्योंकि बिजली ऐसी गुल रहती की जैसे इस गांव का पता ही भूल गई हो और फिर शुरू होती है कम्प्यूटर युग में चिमनी के उंजियारे में पढ़ाई. ऐसे में ऑनलाइन या टीवी चैनल और रेडियो से कराई जा रही पढ़ाई के रोज प्रसारित होने वाले पाठ यहां किस काम के जहां आज भी बिना बिजली चिमनी से पढ़ाई हो रही है.
ग्रामीण इलाकों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई अव्यहारिक
'हमारा घर हमारा विद्यालय' 'डीजी लैब' 'मोहल्ला पाठशाला' ये सभी माध्यम शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल न खुल पाने के कारण बच्चों की पढ़ाई के वैकल्पिक माध्यम हैं, जिन्हें शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना रहे हैं.
लेकिन मंडला जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में इसकी हकीकत कुछ और ही है. यहां की ज्यादातर आबादी दूर वनांचल में बसती है, जहां कई दिनों तक बिजली नहीं आती. ऐसे में दिन में भी चिमनी जला के बच्चों को पढ़ाई करानी पड़ती है. ग्रामीण इलाकों में लोगों के पास इतने बड़े मकान नहीं हैं, जहां मोहल्ले भर के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जा सके. इन हालातों में कई शिक्षक इस पद्धति को इन ग्रामीण इलाकों के लिए अव्यवहारिक मानते हैं.
कीचड़ पानी भरे रास्ते और दूसरी समस्याएं
शिक्षक या बच्चे जिन घरों पर पढ़ाने-पढ़ने जाते हैं, वे रास्ते कीचड़ के चलते फिसलन भरे हो जाते हैं. इसके अलावा छोटे सीलन भरे मकान, आसपास मवेशी और किसानों के घर का माहौल होता है. वह स्कूलों से बिल्कुल अलग होता है. पढ़ाई के लिए अनुकूल नहीं है. साथ ही आदिवासी बहुल इलाकों में दिन में ही शराबियों से सामना होना अलग बात है, ऐसे में पढ़ाई कैसे होगी.
क्या कहते हैं शिक्षक और अधिकारी
जिले के नैनपुर विकास खण्ड में प्राथमिक से हायर सेकेंडरी तक के 382 सरकारी स्कूल हैं जहां 800 के करीब शिक्षक पढ़ाते हैं और करीब 24 हजार बच्चे इन स्कूलों में रजिस्टर्ड हैं. इन 382 सरकारी स्कूलों में ज्यादातर ऐसे इलाकों में हैं, जहां न तो नेटवर्क की सही से कनेक्टिविटी है और न ही यहां रोड जाल बिछ पाया है. ऐसे में नैनपुर विकास खण्ड के खंड शिक्षा अधिकारी सीएल पटेल भी मानते हैं की यह पद्धति थोड़ा अव्यवहारिक है और इससे ग्रामीण इलाकों में बच्चों का काफी नुकसान हो रहा है.
दुनिया भर में बाधित हुई शिक्षा
दुनियाभर में बच्चों के कल्याण के लिए कार्यरत यूके स्थित सेव द चिल्ड्रन चेरिटी ने कोरोना काल के बाद पढ़ाई में आने वाली परेशानियों को लेकर चेतावनी दी है. इस चेरिटी की रिपोर्ट सेव ऑवर एजुकेशन का कहना है कि कोरोना ने दुनिया के 1.6 अरब छात्रों की शिक्षा को बाधित किया है, जो कुल छात्रों का 91% है. ऐसे में भारत में भले ही सरकारी टीवी चैनल और रेडियो पर भी पढ़ाई के रोज पाठ प्रसारित होते हैं, लेकिन जहां आज भी बिना बिजली केरोसीन का भभका बना कर पढ़ाई हो रही वहां इन चीजों की कल्पना भी बेमानी है.
ऑनलाइन क्लास को लेकर सरकार की नई गाइडलाइन आई है, जिसके तहत बच्चों को लंबे-लंबे सेशन की बजाय 30 मिनट की ही पढ़ाई कराई जाएगी. लेकिन उस गाइडलाइन में यह कोई नहीं बता रहा कि ऑनलाइन क्लास ऐसे बच्चे आखिर कहां देखेंगे, जिनके पास इस डिजिटल युग में भी मोबाइल आदि पहुंच ही नहीं पाया है.