मंडला। शादी का नाम सुनते लोगों के चेहरे पर एक अलग ही भाव आ जाता है, लेकिन शादी की सही उम्र क्या होनी चाहिए, इसको लेकर अब भी कई सवाल खड़े होते हैं. शादी सिर्फ दो लोगों के बीच का संबंध नहीं बल्कि दो परिवार का मिलन होता है. देश में आज भी एक सवाल है कि आखिर लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए. 2006 के बाद एक बार फिर यह देश का अहम मुद्दा बन गया है और संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा होने की पूरी उम्मीद है. जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों की शादी 21 साल के बाद होनी चाहिए, ना कि 18 के बाद. ऐसे में ईटीवी भारत ने समाज के उन लोगों से चर्चा की जो समाज को बारीकी से समझते हैं.
लड़की के हाथ कब हो पीले, 18 के बाद या 21 साल के बाद ? ये सवाल जितना पेचीदा है उसके जबाब भी दोनों उम्र को लेकर तथ्य परख है. ऐसे में मंडला जिले में ईटीवी भारत ने कुछ आंकड़ों को खंगालने की कोशिश की है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य और बच्चों की सेहत से जुड़े है. इन आंकड़ों के साथ ही आदिवासी बाहुल जिले की परिस्थितियों पर एक्सपर्ट्स की राय भी जानी है.
तन और मन से मजबूत हों लड़कियां
ये तो तय है कि जब तक लकड़ी तन और मन से पूरी तरह परिवार का दायित्व संभालने के लिए तैयार न हो, तब तक उसकी शादी नहीं करनी चाहिए. इससे एक तरफ जहां लड़की में सामाजिक बदलाव आता है, वहीं शारीरिक बदलाव भी बहुत तेजी से देखे जाते हैं. एक लड़की, किसी दूसरे के घर की बहू बन कर जहां परिवार की नई जिम्मेदारी संभालती है, वहीं परिवार को आगे बढ़ाने के लिए मातृत्व की तरफ भी बढ़ती है. ऐसे अगर वह पूरी तरह से तैयार ना हो, तो कमजोरी जहां रिश्तों की डोर में आती है, वहीं शारीरिक कमजोरी का भी उसे सामना करना पड़ता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
महिला चिकित्सक और विशेषज्ञ की राय
महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रुबीना भिंगारदबे, जो मंडला जिले में काफी लंबे समय से रह रही हैं और उनके पास जो महिलाएं आती हैं, उनमें ग्रामीण क्षेत्रों की ऐसी महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा है, जो शादी के बाद आए बदलाव के हिसाब से ढल नहीं पाती. वहीं बहुत जल्द ही गर्भ धारण कर लेती हैं बिना यह जाने की उनका शरीर इस जिम्मेदारी के लिए तैयार है भी या नहीं. ऐसे में बच्चे 7 से 8 महीने के बीच ही पैदा हो जाते हैं. जिससे जच्चा-बच्चा दोनों ही कमजोर होते हैं. ऐसे में दोनों की जान को खतरा भी होता है.
डॉक्टर रुबीना ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई लिखाई या महिलाओं के रोजगार के साधन बिलकुल भी नहीं है, साथ ही सुदूर वनांचल में स्थानीय पढ़ाई के बाद कम ही लोग लड़कियों को बाहर पढ़ने भेजते हैं. ऐसे में माता-पिता बस इस बात का इंतजार करते हैं कि बिटियां जितनी जल्दी 18 साल की हो उसके हाथ पीले कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए. दूसरी तरफ ससुराल वाले चाहते कि बहु जल्द से जल्द पोते का सुख दे. यही कारण है कि शादी के तुरंत बाद बच्चे की चाह में नवविवाहिता के स्वास्थ्य को भुला दिया जाता है और बहुत सी बीमारियों के साथ ही महिलाओं की कमजोरी कई बार उसकी जान तक पहुंच जाती है.
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डॉक्टर रुबीना का कहना है कि महिलाओं की शादी 21 साल में ही होनी चाहिए. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में इसके लिए खास जागरूकता के साथ ही लड़कियों की शिक्षा, उनको रोजगार से जोड़ने, उन्हें नौकरी के लिए अवसर उपलब्ध कराए जाने पर जोर देती हैं. जिससे कि लड़कियों की जल्द शादी करने के बजाय परिवार और समाज उन्हें पैरों में खड़े करने के बारे में ज्यादा सोचे.
सामाजिक तौर पर हो इसकी शुरूआत
डॉक्टर जेपी सिंह का कहना है कि लोगों को सबसे पहले ये समझाना होगा कि आखिर लड़कियों की शादी 21 साल में क्यों ? मंडला जिले में अलग-अलग समाज की मजबूरियां अलग-अलग हैं, जो उनके रीतिरिवाजों और संस्कृति से जुड़ी हैं. ऐसे में लड़की को घर पर बैठा कर रखना मुश्किल है. दूसरी तरफ आर्थिक मजबूरी भी एक कारण है कि लड़कियां कुछ कर नहीं रहीं और परिवार भी उतना सक्षम नहीं है. ऐसे में 18 की होते ही बेटियों को विदा करने की जल्दी होती है.
जेपी सिंह ने कहा कि मातृ मृत्युदर और बाल मृत्युदर ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होने का कारण भी यही हैं. इसलिए लड़कियों की शादी की उम्र जरूर बढ़ाया जाए, इससे दोनों ही आंकड़ों में कमी आएगी, लेकिन उससे पहले एक बार फिर समाज में जागरूकता को बढाने की पूरी कोशिश करनी होगी. जिससे माता-पिता और समाज बढ़ाई जा रही उम्र को स्वीकार कर सरकार का सहयोग करें.
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बता दें सन 1929 में शारदा कमेटी की सिफारिश पर लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल पर इसका कानून बना था. जिसमें 1978 में संशोधन किया गया और लड़िकयों की शादी की उम्र को बढ़ा कर 18 साल और लड़कों की उम्र 21 साल तय कर दी गई. बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए 2006 में सख्त कानून बना और इसके बाद अब फिर से लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल किए जाने की तैयारी है.
क्या कहते हैं आंकड़े
मंडला जिले में महिलाओं और बच्चों से जुड़े कुछ आंकड़े बताते है कि जिले के हालात उतने बेहतर नहीं है. ऐसे में इनमें सुधार किए जाने की बहुत ज्यादा गुंजाइश है.
शिशु मृत्यु दर- मंडला जिले में पैदा होने वाले एक हजार बच्चों में से 247 बच्चों की मौत कई कारणों से होती है. जिनमें से एक कारण लड़कियों की जल्दी शादी भी शामिल है.
मातृ मृत्यु दर- जिले की एक लाख महिलाओं में से 65 की मौत बच्चे के जन्म के समय या इससे उत्पन्न समस्याओं के कारण हो जाती है.
प्रजनन दर- एक औसत आयु 18 से 49 साल में जिले में प्रजनन की क्षमता 2.3 है, जबकि प्रदेश की 2.8 है.
जन्म के समय लिंगानुपात- मंडला जिले में 1 हजार लड़कों के मुकाबले एक हजार पांच लड़कियों का जन्म होता है.
बालक-बालिका अनुपात- जिले में जहां एक हजार लड़के हैं, तो लड़कियों की संख्या 970 है.
बेटों की चाह और रीति रिवाज
बेटों की चाह में बेटियों को पराया धन समझना, सामाजिक रीति रिवाज, आर्थिक कमजोरी, लड़कियों की शिक्षा पर लोगों का जागरूक ना होना, मरने के बाद बेटे के द्वारा ही अंतिम संस्कार करना जैसी मान्याताओं के चलते भी लड़कियों की शादी जल्द किए जाने का रिवाज है. ऐसे में 21 साल की बाध्यता के साथ ही उनकी पढ़ाई लिखाई और समाज को जागरूक करने के लिए सरकार को पूरी क्षमता के साथ प्रतिबद्ध होना पड़ेगा, तभी इस बदलाव की सोच का लाभ लड़कियों के हित में नया सवेरा ला पाएगा.
आखिर क्यों पड़ रही जरूरत
विभिन्न राज्यों की परम्पराएं अलग-अलग होती हैं. कुछ क्षेत्रों में लड़कियों की जल्द शादी की परम्परा हैं, जिन्हें यह समझाने की जरूरत है कि आज वक्त बदल रहा है और युवतियां किसी मामले में लड़कों से पीछे नही हैं. ऐसे में बहस इस बात पर होनी चाहिए कि लड़की जब अपना भविष्य संवार ले, अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, तभी उसकी शादी की जानी चाहिए. एक समझदार लड़की दो परिवार को संभालने के साथ मायके और ससुराल दोनों को शिक्षित कर सकती है. इस दिशा में सरकार को सभी को भरोसे में लेना होगा और जाति, धर्म, रीतिरिवाजों, परंपराओं से ऊपर उठकर यह समझाना होगा कि सही उम्र में लड़की की शादी उसकी सेहत, भविष्य और समाज को संवारने में सहायक होगा.