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रावण को पूजते यहां के लोग, खुद को बताते है लंकेश का वंशज

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Published : Oct 8, 2019, 10:52 AM IST

Updated : Oct 8, 2019, 2:00 PM IST

मंडला जिले के डूंगरिया गांव को लोग रावण की पूजा करते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि वह रावण के वंशज है. दशहरे के दिन जहां पूरे देश रावण का दहन होता है. लेकिन यहां रावण की पूजा होती है.

रावण का गांव

मंडला। मंडला जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर ये डूंगरिया गांव है. जहां रावण की पूजा होती है. मान्यता है कि यह गांव रावण का है. दशहरे के दिन जहां पूरे देश रावण का दहन होता है. लेकिन यहां रावण की पूजा होती है. डूंगरिया के लोग रावण को अपना वंशज मानते हैं.

रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग

जी हां यह मंदिर महाराज रावण का और इसकी स्थापना की है अपने को प्रकृति पुत्र कहने वाले रावण के वंशजों ने. ग्रामीणों का कहना है कि हम 'कोया' वंश के हैं, जिसका मतलब होता है मूलनिवासी, प्रकृति से उत्पन्न हुए और पले बढ़े. उनका मानना है कि रावण ने भी प्रकृति में जन्म लिया था. इसलिए रावण उनके वशंज है.

रावण का गांव
रावण का गांव

लोग भले ही रावण को राक्षस का रुप और दशानन कहते हो. लेकिन डूंगरिया गांव के लोग रावण को एक अलग नजरिए से देखते हैं. गांव के निवासी हीरालाल पन्द्रो जो कि संरक्षक भी है उन्होंने बताया कि रावण महाराज महान गुणों से परिपूर्ण थे लेकिन समझने और समझाने के अंतर ने उन्हें दानव की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि रावण के कभी 10 सिर नहीं थे उनके 10 गुणों को लोगों ने अपनी कल्पना से उसे दशानन का रूप दे दिया. खास बात यह है कि ग्रामीण रावण द्वारा माता सीता के अपहरण की बात को भी नकारते हैं. वे कहते है कि रावण तो सीता को अपनी पुत्री मानते थे.

रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग

लोग भले ही दशहरे पर देशभर में रावण जलता हो. लेकिन डूंगरिया गांव में तो हर दिन रावण की पूजा होती है. यहां रावण के इस छोटे से मंदिर में पूरे गांव के लोग भक्ति भाव से रावण की पूजा करते हैं. भारत की विविधता का इससे अनूठा उदाहरण क्या होगा कि जिस के पुतले को विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में आग के हवाले कर खुशियां मनाई जाती हैं, ठीक उसी दिन डूंगरिया गांव में रावण के इस मंदिर की स्थापना हुई थी. हर रविवार को यहां विशेष पूजा अर्चना और सुमरनी याने की भजनों का आयोजन होता है. पूरे आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ कि रावण महाराज सबका कल्याण करेंगे.

रावण का मंदिर
रावण का मंदिर

मंडला। मंडला जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर ये डूंगरिया गांव है. जहां रावण की पूजा होती है. मान्यता है कि यह गांव रावण का है. दशहरे के दिन जहां पूरे देश रावण का दहन होता है. लेकिन यहां रावण की पूजा होती है. डूंगरिया के लोग रावण को अपना वंशज मानते हैं.

रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग

जी हां यह मंदिर महाराज रावण का और इसकी स्थापना की है अपने को प्रकृति पुत्र कहने वाले रावण के वंशजों ने. ग्रामीणों का कहना है कि हम 'कोया' वंश के हैं, जिसका मतलब होता है मूलनिवासी, प्रकृति से उत्पन्न हुए और पले बढ़े. उनका मानना है कि रावण ने भी प्रकृति में जन्म लिया था. इसलिए रावण उनके वशंज है.

रावण का गांव
रावण का गांव

लोग भले ही रावण को राक्षस का रुप और दशानन कहते हो. लेकिन डूंगरिया गांव के लोग रावण को एक अलग नजरिए से देखते हैं. गांव के निवासी हीरालाल पन्द्रो जो कि संरक्षक भी है उन्होंने बताया कि रावण महाराज महान गुणों से परिपूर्ण थे लेकिन समझने और समझाने के अंतर ने उन्हें दानव की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि रावण के कभी 10 सिर नहीं थे उनके 10 गुणों को लोगों ने अपनी कल्पना से उसे दशानन का रूप दे दिया. खास बात यह है कि ग्रामीण रावण द्वारा माता सीता के अपहरण की बात को भी नकारते हैं. वे कहते है कि रावण तो सीता को अपनी पुत्री मानते थे.

रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग

लोग भले ही दशहरे पर देशभर में रावण जलता हो. लेकिन डूंगरिया गांव में तो हर दिन रावण की पूजा होती है. यहां रावण के इस छोटे से मंदिर में पूरे गांव के लोग भक्ति भाव से रावण की पूजा करते हैं. भारत की विविधता का इससे अनूठा उदाहरण क्या होगा कि जिस के पुतले को विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में आग के हवाले कर खुशियां मनाई जाती हैं, ठीक उसी दिन डूंगरिया गांव में रावण के इस मंदिर की स्थापना हुई थी. हर रविवार को यहां विशेष पूजा अर्चना और सुमरनी याने की भजनों का आयोजन होता है. पूरे आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ कि रावण महाराज सबका कल्याण करेंगे.

रावण का मंदिर
रावण का मंदिर
Intro:(इस खबर में रावण के खिलाफ कुछ भी न जोड़ें न ही दस सिर वाला रावण का वीडियो लगाएं,आदिवासी समाज इस से नाराज़ होता है)

मंदिर तो आपने सैकड़ों हजारों देखे होंगे लेकिन यह श्रद्धा आस्था और विश्वास का ऐसा स्थान है जहां पूजा होती है एक ऐसे महाराज की जिसे दुनिया पापी दुराचारी अधर्मी और राक्षस कहती है, राक्षस भी ऐसा की जिसके संहार के लिए स्वयं भगवान को पृथ्वी लोक पर आना पड़ा और पूरे 14 साल तक वन वन भटकना पड़ा, जी हां यह मंदिर है महाराज रावण का और इसकी स्थापना की है अपने को प्रकृति पुत्र कहने वाले रावण के वंशजों ने जिनका कहना है कि हम 'कोया' वंश के हैं, जिसका मतलब होता है मूलनिवासी, प्रकृति से उत्पन्न हुए और पले बढ़े ठीक वैसे ही जैसे रावण महाराज ने प्रकृति में जन्म लिया था हजारों लाखों साल पहले, गुफाओं में


Body:मंडला जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर जंगल के भीतर बसा डूंगरिया गांव जिसकी आबादी तकरीबन 5 सैकड़ा होगी,जहां हमारी नजर रावण महाराज की मढ़िया पर पड़ी जिसके बाद जिज्ञासा और शंका के समाधान के लिए हमने रावण महाराज की पूजा-पाठ को लेकर यहां के बाशिंदों से बात की, तो उनकी नजर से रावण को समझने का एक नया ही नजरिया मिला, गांव के निवासी हीरालाल पन्द्रो जो कि संरक्षक भी है उन्होंने बताया कि रावण महाराज महान गुणों से परिपूर्ण थे लेकिन समझने और समझाने के अंतर ने उन्हें दानव की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया वहीं रावण के कभी 10 सिर नहीं थे उनके 10 गुणों को लोगों ने अपनी कल्पना से उसे दशानन का रूप दे दिया, जो ठीक नहीं है। सीता माता के हरण और दुराचारी के आरोप पर भी यहां के लोग वैज्ञानिक दृष्टि से बात करते हुए कहते हैं कि सीता माता के जन्म की कोई भी स्पष्ट व्याख्या आज तक नहीं दे पाया और इनके अनुसार मंदोदरी और रावण के स्वयंवर से पूर्व मिलन के परिणाम स्वरूप सीता का जन्म हुआ था जिसे जनक राजा ने पाला ,इस लिहाज से सीता रावण की बेटी हुई और अपनी बेटी को रावण खुद के पास रखना चाहते थे इसलिए हरण कर ले गए

बाइट--हीरालाल पन्द्रो, संरक्षक रावण मंदिर


Conclusion:भारत की विविधता का इससे अनूठा उदाहरण क्या होगा कि जिस के पुतले को विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में आग के हवाले कर खुशियां मनाई जाती हैं, ठीक उसी दिन इस मढ़िया की स्थापना हुई,और बीते साल भर से ठीक वैसे ही दीया बाती और पूजा पाठ होती है जैसे तमाम पूजा स्थलों में होती है,हर रविवार को यहां विशेष पूजा अर्चना और सुमरनी याने की भजनों का आयोजन होता है पूरे आस्था,श्रद्धा और विश्वास के साथ कि रावण महाराज सबका कल्याण करेंगे।यहां जल्द ही भव्य मंदिर का संकल्प भी डूंगरिया सहित आसपास के गाँव वालों ने लिया है,

बाइट --हीरालाल पन्द्रो,संरक्षक,रावण मंदिर
Last Updated : Oct 8, 2019, 2:00 PM IST
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