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फिट ही नहीं पुराने नुस्खे बीमारियों से भी रखते हैं दूर, घर बैठे आजमा सकते हैं ये नुस्खा - नुस्खा

शारीरिक और मानसिक रुप से फिट रहने के लिए लोग अब जिम के अलावा पुराने पारंपरिक नुस्खे अपनाने लगे हैं.

फिट रहने के लिए पुराने पारंपरिक नुस्खे अपनी रहे लोग
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Published : Aug 28, 2019, 10:27 PM IST

मंडला। शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ्य रहने के लिए लोग इन दिनों पुराने नुस्खों का सहारा ले रहे हैं. आदिवासी सालों से तीज-त्योहारों पर वाद्ययंत्र तुरही का उपयोग करते हैं. जिसे बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं और हृदय रोग की समस्या से आराम मिलता है.

फिट रहने के लिए पुराने पारंपरिक नुस्खे अपनी रहे लोग
फिट रहने के लिए आजकल जिम का चलन काफी बढ़ गया है, लेकिन इतिहास में ऐसे घरेलु नुस्खे भी हैं, जिसका इस्तेमाल कर घर बैठे कम खर्चों में स्वस्थ रहा जा सकता है. आदिवासी सालों से तुरही जैसे वाद्य यंत्र का प्रयोग हर मांगलिक काम के वक्त करते हैं. इस वाद्य यंत्र को अगर रोजाना सुबह-शाम बजाया जाये तो इससे फेफड़े मजबूत होते हैं, साथ ही दिल सहित अन्य बीमारियों में भी आराम मिलता है. इस बात को वैज्ञानिकों ने भी माना है.तुरही के आलावा एक और पारम्परिक साधन है, जिसका आविष्कार भगवान बुद्ध ने किया था. जिसे मेडिटेशन बाउल या ध्यान कटोरा कहते हैं. ये कांसे का कटोरा होता है, जिसे हथेली के बीचो-बीच रखा जाता है और एक छोटे से डंडे को इसके चारों ओर घुमाते हैं, इससे ओम की ध्वनि निकलती है. जिससे तनाव दूर करने में काफी मदद मिलती है. साथ ही हथेली में एक वाइब्रेशन होता है, जो रक्त संचार को ठीक करने का काम करता है.

मंडला। शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ्य रहने के लिए लोग इन दिनों पुराने नुस्खों का सहारा ले रहे हैं. आदिवासी सालों से तीज-त्योहारों पर वाद्ययंत्र तुरही का उपयोग करते हैं. जिसे बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं और हृदय रोग की समस्या से आराम मिलता है.

फिट रहने के लिए पुराने पारंपरिक नुस्खे अपनी रहे लोग
फिट रहने के लिए आजकल जिम का चलन काफी बढ़ गया है, लेकिन इतिहास में ऐसे घरेलु नुस्खे भी हैं, जिसका इस्तेमाल कर घर बैठे कम खर्चों में स्वस्थ रहा जा सकता है. आदिवासी सालों से तुरही जैसे वाद्य यंत्र का प्रयोग हर मांगलिक काम के वक्त करते हैं. इस वाद्य यंत्र को अगर रोजाना सुबह-शाम बजाया जाये तो इससे फेफड़े मजबूत होते हैं, साथ ही दिल सहित अन्य बीमारियों में भी आराम मिलता है. इस बात को वैज्ञानिकों ने भी माना है.तुरही के आलावा एक और पारम्परिक साधन है, जिसका आविष्कार भगवान बुद्ध ने किया था. जिसे मेडिटेशन बाउल या ध्यान कटोरा कहते हैं. ये कांसे का कटोरा होता है, जिसे हथेली के बीचो-बीच रखा जाता है और एक छोटे से डंडे को इसके चारों ओर घुमाते हैं, इससे ओम की ध्वनि निकलती है. जिससे तनाव दूर करने में काफी मदद मिलती है. साथ ही हथेली में एक वाइब्रेशन होता है, जो रक्त संचार को ठीक करने का काम करता है.
Intro:भगवान बुद्ध ने ध्यान कटोरे के माध्यम से मन को स्वस्थ्य रखने के तरीके बताए थे तो आदिवासी अंचल के सबसे पुराना वाद्य यंत्र तुरही रक्त संचार को नियंत्रित करने के साथ ही फेंफड़ों को मजबूत करता है और इन दोनों का यदि कोई रोज उपयोग करे तो तन के साथ मन को फिट रखा जा सकता है वो भी बिना वर्कआउट किये या जिम में पसीना भाई


Body:आजकल लोगों को तन और मन की थकान को दूर करने के साथ हो अपने आप को फिट रखने के लिए जिम का चलन काफी बढ़ गया है लेकिन भरतीय इतिहास में ऐसी भी चीजें हैं जिनका उपयोग कर घर बैठे ही तन और मन को स्वास्थ्य रखा जा सकता है,मण्डला आदिवासी बहुल जिला है और यहाँ के आदिवासी सदियों से तुरही जैसे वाद्ययंत्र का प्रयोग तीज त्यौहार से लेकर हर माँगलिक कार्य के समय करते हैं जिसका वैज्ञानिक महत्व भी काफी है,जानकार बताते हैं कि तुरही सुबह शाम के समय यदि नियमित रूप से बजाई जाए तो फेंफड़े मजबूत और स्वास्थ्य रहते हैं साथ ही ह्रदय से संबंधित कोई बीमारी इन्शान को छू भी नहीं सकती वहीं इसकी ध्वनि से आसपास का वातावरण भी सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है यही कारण है कि आज तुरही का महत्व काफी बढ़ रहा है खाश कर ह्रदय रोगी तो इसे हांथो हाथ ले रहे हैं,तुरही के अलावा एक ऐसा ही पारम्परिक साधन है जिसका अविष्कार भगवान बुद्ध के द्वारा किया गया था ऐसा माना जाता है,जिसे मेडिटेशन बाउल या ध्यान कटोरा कहते हैं यह एक काँसा धातु का कटोरा होता है जिसे हथेली के बीचों बीच रखा जाता है और एक छोटे से डंडे को इसके चारों ओर घुमाते हैं और इससे ओम की मधुर ध्वनि निकलती है जो मन का तनाव या स्ट्रेश दूर करने में काफी मदद करती हैं साथ ही हथेली में एक बाइब्रेशन या तरंग उठती है जो रक्त संचार को भी ठीक करने का काम करती है कहा जाता है कि भगवान बुद्ध जब ध्यान करते थे तो इसी ध्यान कटोरे का उपयोग किया करते थे इसमें कितनी सच्चाई है यह शोध का विषय हो सकता है लेकिन मन की शांति के लिए यह एक अच्छा साधन कहा जा सकता है


Conclusion:जरूरी नहीं कि फिट रहने के लिए जिम में पसीना बहाया जाए या फिर दौड़ भाग की जाए यदी पारम्परिक साधनों को अपना कर स्वास्थ्य रहा जा सकता है तो निश्चित ही मेडिटेशन बाउल और तुरही जैसे प्राचीन साधनों का प्रचार प्रसार जरूरी है वहीं लोगों को यह समझाना आवश्यक है कि हमारा प्राचीन विज्ञान आज के विज्ञान जैसा उन्नत नहीं था लेकिन उस समय भी ऐसे साधनों का उपयोग हुआ जो इन्शान के तन और मन दोनों को फिट रखने में कारगर आज भी शिद्ध हो रहे हैं।

बाईट--लक्ष्मण ठाकुर,हार्टपेशेंट, तुरही उपयोग कर्ता
बाईट--शुधीर कांस्कार, पारम्परिक साधनों के जानकार, मैनेजर कला दीर्घा जिला पंचायत मण्डला
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