मण्डला। लॉकडाउन का असर देशभर में देखने को मिल रहा है. इस बीच हर वर्ग के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है. मण्डला जिले में भी सुबह से परिवार घास की तलाश में निकलता है, तब जा कर मवेशी पालने वालों के घरों में जाकर या फिर बाजार में जाकर बेचा जाता है, लेकिन कोरोना वायरस के चलते जीवन यापन का कोई भी चारा अब नजर नहीं आ रहा है.
शशि बाई का कहना है कि उनके माता-पिता घास काटकर बेचने का काम करते थे, जो अब वो कर रही हैं. मंजुबाई और उनका परिवार भी 30 से 35 सालों से इसी को रोजगार बना चुकी हैं. जिले में ऐसे कई परिवार है, जिनका जीवन यापन घास कटाई कर बेचने से मिलता है. ये रोज कमाते हैं और इन्ही पैसों से खर्चा चलाते है, लेकिन कोरोना वायरस के चलते बीते 40 दिनों के लॉकडाउन ने इनके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है.
जहां घास बेचने से परिवार का पालन-पोषण आसानी से होता था, अब उस पर विराम लग गया है. क्योंकि जब से लॉकडाउन जारी है, तब से लोग घास खरीदने ही नहीं आ रहे है. सभी ऑटो पर रोक लग जाने के चलते जिन गौशालाओं या डेयरी मालिकों को मवेशियों के लिए चारे की सप्लाई करते थे, अब वह भी बंद हो गया है. ऐसे में बाजार में घास बेचने तो जाते है, लेकिन खरीददारों के नाम पर बस वे ही लोग आते हैं जो आवारा मवेशियों को थोड़ा चारा खरीद कर खिलाना चाहते हैं.
यह लोग जहां दिनभर में 500 से ज्यादा का चारा बेच लेते थे, अब वह सिर्फ 100 या उससे भी कम रुपये में बिक रहे हैं. ऐसे में इस धंधे को करने वाले सिर्फ मजबूरी के चलते घास काट रहे हैं. क्योंकि इसके अलावा इनके पास और कोई रोजगार का साधन नहीं है.
कोरोना का एक भी संक्रमित नहीं मिलने से मण्डला ग्रीन जोन में है. यहां सभी तरह की दुकानें सुबह 7 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक खोली जा सकती हैं, लेकिन सुबह जब तक यह चारा काट कर बाजार पहुंचते हैं, तब तक समय अवधि ही समाप्त हो जाती है. वहीं लॉकडाउन के चलते मवेशी मालिक का शाम को बाहर निकलकर घास लेना असंभव हो जाता है. घास बेचने वालों के पास ग्राहकों का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.