मंडला। 1651 में राजा हृदय शाह ने आलीशान महल बनवाया था. जिसे 'मोती महल' के नाम से जाना जाता था, जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित ये महल गोंड कालीन निर्माण कला का वह नमूना है, जो महिला के समृद्धशाली इतिहास का गवाह है, रामनगर गोंड राजाओं की राजधानी थी और नर्मदा नदी के तट पर बसाई गई थी.
16वीं शताब्दी में गोंड राजाओं की बनी राजधानी
16वीं शताब्दी में धीरे-धीरे मुगलों के बढ़ते आतंक के चलते गोंड राजाओं का राज्य सिमटता जा रहा था और जबलपुर के राजा अपने राज्य का विस्तार कम करते जा रहे थे. ऐसे में नरसिंहपुर चौरागढ़ से गोंड राजाओं ने अपनी राजधानी को मंडला के पास रामनगर में नर्मदा के किनारे बसाने का मन बनाया और रामनगर आ गए. जिसके बाद रामनगर में कई आलीशान निर्माण भी कराए, इनमें महल, बावड़ी, मंदिर शामिल थे. उस समय राजा हृदयशाह का शासन था. जिन्होंने रामनगर में अपने रहने के लिए मोती महल का निर्माण कराया ये महल अत्यंत आकर्षक है.
कैसा है मोती महल
मोती महल के उत्तर में नर्मदा नदी बहती है तो वहीं दक्षिण में घने जंगल हैं. एक तरफ कालापहाड़ है तो दूसरी तरफ चौगान जैसा आदिवासियों का तीर्थ स्थान मौजूद है. मोती महल को रानी महल भी कहा जाता है, जो आयताकार है. जिसमें 40 मीटर एक चौड़ा आंगन भी है और इसके बीच में मौजूद एक सरोवर मोती महल की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.
पूरा महल पत्थर से बना हुआ है. जिन्हें चूने, रेत, गुड़, चकेड़े के बीज, उड़द की दाल के विशेष गारे की मदद से जोड़ा गया है. ये महल तीन स्तरों में बनाया गया था. जिसमें सबसे नीचे पत्थरों की जुड़ाई है तो ऊपर ईंट की चिनाई भी मिलती है. इस भवन के भीतर एक हजार सैनिकों के ठहरने की व्यवस्था थी. पहली मंजिल पर महिलाओं का निवास स्थल था. इस महल को पुरातत्व विभाग संरक्षित कर रहा है और कुछ मरम्मत कराने के बाद और भी आकर्षक हो गया है.
मजबूती और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना
दूसरे अन्य महलों की तरह इसमें ज्यादा नक्काशी तो नहीं की गई है, लेकिन जितनी भी है, उसमें मुगल के साथ ही गोंड कालीन कलाकारी की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. इसके मुंडेर जहां चौकोर आकृतियों के प्रयोग कर बनाए गए हैं. वहीं इसकी सीढ़ियों को काफी संकरा रखा गया था, लेकिन महल की मजबूती इतनी है कि ये आज भी अच्छी हालत में शान से सीना ताने खड़ा है.
निर्माण को लेकर किवदंतियां
महल को लेकर कहा जाता है कि इसका निर्माण एक रात में हुआ है, राजा हृदयशाह तंत्रविद्या के बहुत बड़े साधक थे और उनके द्वारा इस महल का निर्माण एक रात में किया गया था. साथ ही इस महल को लेकर ये भी कहा जाता है कि जिन पत्थरों का उपयोग महल के निर्माण में हुआ है. वो काला पहाड़ से उड़ कर आते थे. हालांकि इतिहासकार हेमन्तिका शुक्ला इसे कपोल कल्पना मानती हैं, लेकिन यह भी सही है कि इस तरह की किवंदती के चलते यहां बड़ी संख्या में सैलानी इसे देखने आते हैं.
गोंड राजाओं द्वारा तामीर कराया गया ये महल आदिवासी महोत्सव के दौरान खासा आकर्षण का केंद्र रहता है, जिसे बाहर से आने वाले दर्शक के साथ ही मेहमान आसानी से देख पाएंगे और गोंड कालीन समृद्ध इतिहास को करीब से समझ पाने का मौका भी उन्हें मिलेगा, आदिवासी महोत्सव का शुभारंभ उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू 15 फरवरी को करेंगे.