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मंडला: जानिए जिले की पीटी ऊषा की कहानी...

मंडला जिले की मैराथन गर्ल मिनी सिंह ने अपनी अगल पहचान बनाकर प्रदेश और जिले का नाम रोशन किया है. मिनी सिंह ने नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर भी खासा मुकाम हासिल किया है. मिनी 20 गोल्ड, 20 ब्रांन्ज और 35 सिल्वर मेडल भी जीत चुकी हैं. पढ़िए मिनी सिंह की कहानी .....

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जानिए मंडला की पीटी ऊषा की कहानी
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Published : Apr 21, 2021, 10:56 PM IST

मण्डला। कहते हैं कि खेल लोगों को एकता के सूत्र में पिरोता है और खेल भावना सारे भेद मिटा कर शांति का संदेश देने का वो माध्यम है जो किसी भी समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी है. मिनी सिंह भी एक ऐसा ही नाम है जिसने न केवल प्रदेश बल्कि देश की सीमा को लांघ कर ऐसा मुकाम पाया की आज उन्हें हर कोई सम्मान देता है.मंडला में रहने वाली मैराथन गर्ल मिनी सिंह किसी पहचान की मोहताज नहीं. वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन रेस में भारत के लिए कई मेडल जीत चुकी है. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी मैराथन गर्ल मिनी सिंह ने मुफलिसी के दौर में अपनी मेहनत से वो मुकाम पाया, जिसका सपना कभी उनके पिता ने देखा था.

mini singh with medal
मैराथन गर्ल मिनी सिंह मैडल के साथ
ऐसे हुई शुरुआत

मिनी बताती हैं कि उनके पिता मदन सिंह हॉकी के राष्ट्रीय स्तर के कोच थे. उनका सपना था कि उनकी बेटी भी अच्छी खिलाड़ी बने. अपने पिता के इस सपने को पूरा करने मिनी सिंह ने हॉकी से इतर मिनी मैराथन को चुना. आर्थिक तंगी के बीच भी मिनी ने मेहनत जारी रखी और धीरे-धीरे मैराथन रेस में अपना अलग मुकाम बनाया.

मैडल का जीतने का सिलसिला

मिनी सिंह अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग ले चुकी है. मिनी सिंह 20 गोल्ड, 20 ब्रांन्ज और 35 सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं, तो 2018 में सम्पन्न हुए मलेशिया के एशियाई पैसिफिक स्पोर्ट्स इवेंट्स में तो 64 देशों के बीच अपना डंका बजा दिया था. 5 हजार मीटर रन एंड वॉक में गोल्ड मेडल, फोर इन टू फोर रन में ब्रॉन्ज मेडल और 15 सौ मीटर दौड़ में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी मिनी सिंह कहती हैं कि, एथलीट में वे विदेशी धरती पर होने वाली हर एक प्रतियोगिता में भाग लेकर देश के लिए ज्यादा से ज्यादा गोल्ड मेडल लाना चाहती हैं. इसके लिए लगातार मेहनत भी करती हैं. इसलिए वे किसी से उम्मीद भी नहीं करती खुद कमाती हैं और खेल पर ही खर्च करती हैं.

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खिलाड़ियों को संवार रही मिनी

मिनी सिंह अपने जैसे कई और खिलाड़ियों को तैयार करने में भी जुटी है. वे मंडला जिले की लड़कियों को दौड़ और योगा की ट्रेनिंग दे रही हैं. उनकी इस मेहनत का परिणाम भी सामने आने लगा है. उनकी सिखाई हुई लड़कियों हर जगह से मेडल या कप लेकर ही लौटी रही हैं.


बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का रखती हैं ख्याल

एक तरफ मिनी सिंह जहां बच्चों को योगा सिखाती हैं तो वहीं दूसरी तरफ फरवरी महीन में बुजुर्गों के राज्यस्तरीय खेल प्रतियोगिता का सफल आयोजन कराया गया. जिसमें प्रदेश भर के बुजुर्ग खिलाड़ियों ने काफी संख्या में पहुंचे. 35 साल से 100 साल तक के बुजुर्गों ने गोला फेंक,भाला फेंक,रेस,रिले रेस जैसे खेल में अपने जौहर दिखाया. मिनी सिंह कहती हैं, महिलाएं किसी से कम नहीं होती बस हौसला बड़ा होना चाहिए, रास्ते अपने आप बन जाते हैं.

मण्डला। कहते हैं कि खेल लोगों को एकता के सूत्र में पिरोता है और खेल भावना सारे भेद मिटा कर शांति का संदेश देने का वो माध्यम है जो किसी भी समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी है. मिनी सिंह भी एक ऐसा ही नाम है जिसने न केवल प्रदेश बल्कि देश की सीमा को लांघ कर ऐसा मुकाम पाया की आज उन्हें हर कोई सम्मान देता है.मंडला में रहने वाली मैराथन गर्ल मिनी सिंह किसी पहचान की मोहताज नहीं. वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन रेस में भारत के लिए कई मेडल जीत चुकी है. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी मैराथन गर्ल मिनी सिंह ने मुफलिसी के दौर में अपनी मेहनत से वो मुकाम पाया, जिसका सपना कभी उनके पिता ने देखा था.

mini singh with medal
मैराथन गर्ल मिनी सिंह मैडल के साथ
ऐसे हुई शुरुआत

मिनी बताती हैं कि उनके पिता मदन सिंह हॉकी के राष्ट्रीय स्तर के कोच थे. उनका सपना था कि उनकी बेटी भी अच्छी खिलाड़ी बने. अपने पिता के इस सपने को पूरा करने मिनी सिंह ने हॉकी से इतर मिनी मैराथन को चुना. आर्थिक तंगी के बीच भी मिनी ने मेहनत जारी रखी और धीरे-धीरे मैराथन रेस में अपना अलग मुकाम बनाया.

मैडल का जीतने का सिलसिला

मिनी सिंह अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग ले चुकी है. मिनी सिंह 20 गोल्ड, 20 ब्रांन्ज और 35 सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं, तो 2018 में सम्पन्न हुए मलेशिया के एशियाई पैसिफिक स्पोर्ट्स इवेंट्स में तो 64 देशों के बीच अपना डंका बजा दिया था. 5 हजार मीटर रन एंड वॉक में गोल्ड मेडल, फोर इन टू फोर रन में ब्रॉन्ज मेडल और 15 सौ मीटर दौड़ में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी मिनी सिंह कहती हैं कि, एथलीट में वे विदेशी धरती पर होने वाली हर एक प्रतियोगिता में भाग लेकर देश के लिए ज्यादा से ज्यादा गोल्ड मेडल लाना चाहती हैं. इसके लिए लगातार मेहनत भी करती हैं. इसलिए वे किसी से उम्मीद भी नहीं करती खुद कमाती हैं और खेल पर ही खर्च करती हैं.

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खिलाड़ियों को संवार रही मिनी

मिनी सिंह अपने जैसे कई और खिलाड़ियों को तैयार करने में भी जुटी है. वे मंडला जिले की लड़कियों को दौड़ और योगा की ट्रेनिंग दे रही हैं. उनकी इस मेहनत का परिणाम भी सामने आने लगा है. उनकी सिखाई हुई लड़कियों हर जगह से मेडल या कप लेकर ही लौटी रही हैं.


बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का रखती हैं ख्याल

एक तरफ मिनी सिंह जहां बच्चों को योगा सिखाती हैं तो वहीं दूसरी तरफ फरवरी महीन में बुजुर्गों के राज्यस्तरीय खेल प्रतियोगिता का सफल आयोजन कराया गया. जिसमें प्रदेश भर के बुजुर्ग खिलाड़ियों ने काफी संख्या में पहुंचे. 35 साल से 100 साल तक के बुजुर्गों ने गोला फेंक,भाला फेंक,रेस,रिले रेस जैसे खेल में अपने जौहर दिखाया. मिनी सिंह कहती हैं, महिलाएं किसी से कम नहीं होती बस हौसला बड़ा होना चाहिए, रास्ते अपने आप बन जाते हैं.

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