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कोरोना कहर के बीच किसानों पर दोहरी मार, मानसून की नाराजगी बनी अन्नदाता की मुसीबत - Shortage of manure in Mandla

पहले से ही ओलावृष्टि फिर कोरोना और अब बारिश का कम होना किसान के लिए तिहरी मार साबित हो रहा है, लिहाजा पहले से घाटा सह रहे किसान के माथे कि सिकन बढ़ने लगी है.

hope of Farmer
अन्नदाता की आस
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Published : Aug 12, 2020, 1:07 AM IST

मंडला। पहले से ओलावृष्टि और कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण किसान रवि की फसलों में दोहरी मार झेल चुका है, वहीं अब पूरा सावन बीतने के बाद बी बादलों का खफा होना किसानों के लिए तिहरी मार साबित हो रहा हैं. मानसून के महीना बीतने के बाद समय से बारिश के न होने से अब फसलों को लेकर भी किसान की चिंता बढ़ने लगी है. ऐसा ही हाल है मध्यप्रदेश के मंडला जिले में जहां किसान ने बोवनी तो कर दी पर अब बारिश नहीं होने से चिंता में डूब गए है.

खाद की किल्लत से किसान परेशान

बिन पानी आई खेत में दरार
आकड़ों की माने तो बीते 10 सालों में इस साल सबसे कम वर्षा हुई है, और ऐसे में किसानों को इस बात का डर सता रहा कि अगर ऐसा ही मौसम रहा तो उनकी फसलों का क्या होगा. बीते करीब दो पखवाड़े से मानसून ऐसा रूठा की अन्नदाता पानी की एक एक बूंद को तरस गए. बिना बरसात के लगाए गए धान के रोपे जहां पीले पड़ने लगे, वहीं पानी न होने के कारण जमीन पर दरारें आने लगीं है,

सावन सूखा, अब मानसून भी रूठा
सावन के पहले हफ्ते में जहां महज 2 दिन ही बारिश हुई, और इसके बाद पूरा महीना सूखा रहा, इसी समय किसान धान के रोपे लगाता है, जो बिना पानी के लगाना सम्भव नहीं है, वहीं दूसरी तरफ रोपे लगाने के हफ्ते बाद फसल खाद दी जाती हैं जो बिना पानी के पौधों को जला देती हैं. हालांकि मंडला में दो दिन बारिश हुई तो किसानों ने कुछ राहत की सांस ली, लेकिन फिर मौसम साफ हो गया है. ऐसे में किसानों का मानना है कि जो बरसात हुई है वो पर्याप्त नहीं है. अगर जल्द ही पानी न गिरा तो खेत फिर सूख जाएंगे और फसलों को नुकसान होगा.

पौधे हो रहे कमजोर
पानी ना मिलने के चलते लगातार बढ़ रहे मक्के और सोयाबीन के पौधे कमजोर हो रहे हैं. जिसके चलते आने वाले समय पैदावार बड़ी मात्रा में प्रभावित होगी. ऐसे में किसानों ने जो लागत इन फसलों को लगाने में खर्च की है वो निकल पाना मुश्किल हो जाएगा.

खाद की भी किल्लत
एक तरफ रूठा हुआ मानसून तो दूसरी तरफ खाद की किल्लत भी अन्नदाताओं की मुसीबत को बढ़ा रहा है. किसानों का कहना है कि बरसात होते ही वे खेतों में खाद डालते हैं, लेकिन कभी समय पर किसानों को कभी खाद मिलती ही नहीं, अभी भी किसानों को खाद के लिए बार-बार चक्कर काटना पड़ रहा हैं.

लिहाजा पहले से ही ओलावृष्टि की मार झेल चुके किसानों पर कोरोना वायरस की वजह से दोहरी मार पड़ी है. पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन बारिश ना होने से किसान के हाल बेहाल हो रहे हैं. मानसून के शुरुआत में ऐसी बारिश हुई कि किसानों को बोवनी करने का भी समय नहीं मिल रहा है, और जब पौधे उग गए तो पानी की कमी के कारण फसल गलने लगी है.

मंडला। पहले से ओलावृष्टि और कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण किसान रवि की फसलों में दोहरी मार झेल चुका है, वहीं अब पूरा सावन बीतने के बाद बी बादलों का खफा होना किसानों के लिए तिहरी मार साबित हो रहा हैं. मानसून के महीना बीतने के बाद समय से बारिश के न होने से अब फसलों को लेकर भी किसान की चिंता बढ़ने लगी है. ऐसा ही हाल है मध्यप्रदेश के मंडला जिले में जहां किसान ने बोवनी तो कर दी पर अब बारिश नहीं होने से चिंता में डूब गए है.

खाद की किल्लत से किसान परेशान

बिन पानी आई खेत में दरार
आकड़ों की माने तो बीते 10 सालों में इस साल सबसे कम वर्षा हुई है, और ऐसे में किसानों को इस बात का डर सता रहा कि अगर ऐसा ही मौसम रहा तो उनकी फसलों का क्या होगा. बीते करीब दो पखवाड़े से मानसून ऐसा रूठा की अन्नदाता पानी की एक एक बूंद को तरस गए. बिना बरसात के लगाए गए धान के रोपे जहां पीले पड़ने लगे, वहीं पानी न होने के कारण जमीन पर दरारें आने लगीं है,

सावन सूखा, अब मानसून भी रूठा
सावन के पहले हफ्ते में जहां महज 2 दिन ही बारिश हुई, और इसके बाद पूरा महीना सूखा रहा, इसी समय किसान धान के रोपे लगाता है, जो बिना पानी के लगाना सम्भव नहीं है, वहीं दूसरी तरफ रोपे लगाने के हफ्ते बाद फसल खाद दी जाती हैं जो बिना पानी के पौधों को जला देती हैं. हालांकि मंडला में दो दिन बारिश हुई तो किसानों ने कुछ राहत की सांस ली, लेकिन फिर मौसम साफ हो गया है. ऐसे में किसानों का मानना है कि जो बरसात हुई है वो पर्याप्त नहीं है. अगर जल्द ही पानी न गिरा तो खेत फिर सूख जाएंगे और फसलों को नुकसान होगा.

पौधे हो रहे कमजोर
पानी ना मिलने के चलते लगातार बढ़ रहे मक्के और सोयाबीन के पौधे कमजोर हो रहे हैं. जिसके चलते आने वाले समय पैदावार बड़ी मात्रा में प्रभावित होगी. ऐसे में किसानों ने जो लागत इन फसलों को लगाने में खर्च की है वो निकल पाना मुश्किल हो जाएगा.

खाद की भी किल्लत
एक तरफ रूठा हुआ मानसून तो दूसरी तरफ खाद की किल्लत भी अन्नदाताओं की मुसीबत को बढ़ा रहा है. किसानों का कहना है कि बरसात होते ही वे खेतों में खाद डालते हैं, लेकिन कभी समय पर किसानों को कभी खाद मिलती ही नहीं, अभी भी किसानों को खाद के लिए बार-बार चक्कर काटना पड़ रहा हैं.

लिहाजा पहले से ही ओलावृष्टि की मार झेल चुके किसानों पर कोरोना वायरस की वजह से दोहरी मार पड़ी है. पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन बारिश ना होने से किसान के हाल बेहाल हो रहे हैं. मानसून के शुरुआत में ऐसी बारिश हुई कि किसानों को बोवनी करने का भी समय नहीं मिल रहा है, और जब पौधे उग गए तो पानी की कमी के कारण फसल गलने लगी है.

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