मंडला। कुपोषण का कलंक दूर करने के लिए सरकारों ने विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनका बजट भी किसी छोटे-मोटे देश के सम्पूर्ण बजट से कम नहीं. बावजूद इसके मंडला जिले में 2 बच्चों का कुपोषण बैगी पेंट स्तर पर पहुंच गया है. बैगी पेंट कुपोषण का सबसे खतरनाक स्तर है, दो मासूमों का मामला सामने आते ही, जिला प्रसासन, महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ महकमें में हड़कंप मच गया है.
मंडला जिले में ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है. जहां शिक्षा और जागरूकता का आभाव देखा जाता है, ऐसे में शासन, प्रशासन ने जनता को जागरुक करने में लाखों खर्च कर दिए लेकिन इसका कोई असर नजर नहीं आ रहा. इसे सीधे तौर पर महिला एवं बाल विकास विभाग की लापरवाही के सिवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता.
बैगी पेंट स्टेज में दो बच्चे
- पहला मामला
मंडला के एनआरसी में एक साल की मोनिका कुपोषण के सबसे खतरनाक स्तर बैगी पेंट पर पहुंच गई है. 13 माह की इस बच्ची का वजन सिर्फ 4 किलो है, जबकि इसका बजन 12 किलो के आसपास होना. कुपोषण से पीड़ित यह बच्ची अतिकुपोषण के कारण ब्रेन से सम्बंधित बीमारी का भी शिकार हो गयी. इसकी जीभ तालू से जुड़ी हुई है, जिसके चलते यह ठोस आहार नहीं ले पाती और न ही भूख लगने पर रो पाती.
- दूसरा मामला
17 महीने के ज्ञानचंद का वजन 4 किलो है, जबकि इसका बजन इसकी उम्र के लिहाज से 14 किलोग्राम होना था. यह बच्चा जन्म के समय सामान्य से ज्यादा वजन का था, लेकिन महीनों देखभाल के आभाव में इसके ये हालात हो गए.
जिम्मदार कौन ?
कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे आंगनबाड़ी से महिलाओं और बच्चों को जोड़े, और उन्हें जन्म, आयु और जरूरत के मुताबिक टीके लगवाएं, लेकिन मंडला में ये सब कागज़ों पर हो रहा है. यही वजह है कि बच्चे इस कदर कुपोषण का शिकार हो रहे और विभाग को खबर नहीं लग रही. इससे पहले करीब 6 माह पूर्व कृष्णा नाम का बच्चा भी विभाग की लापरवाही के चलते इस स्टेज तक पहुंच गया था.
क्या करता है महिला एवं बाल विकास विभाग ?
महिला एवं बाल विकास विभाग गांव-गांव में आंगनबाड़ी केंद्र खोलकर कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के माध्यम से 0 से 5 साल के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं को पूरक पोषण आहार देने का काम करता है. इसके साथ ही हर एक बच्चे और माताओं के पूरा डाटा सर्वे कर रखा जाता है.
लगातार लापरवाही का नतीजा
इन दो बच्चों के केस सामने आने के बाद जब ईटीवी भारत ने एनआरसी केंद्र मंडला में प्रभारी रश्मि वर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि यह कुछ दिन नहीं बल्कि लंबे लापरवाही का नतीजा है. अगर बच्चे को पहले उनके पास लाया गया होता तो वो ये हालात में नहीं पहुंचते.
क्या कहते हैं जिम्मदार ?
दो मासून के हाल भले ही बद से बदतर हो गए हो, लेकिन प्राशसन अपने कामों को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहा है. जिले की महिला एवं बाल विकास अधिकारी श्वेता तावड़े ने सीधे तौर पर माता-पिता को जिम्मेदार ठहराते हुए, विभाग की सबसे छोटी कर्मचारी आगनबाड़ी कार्यकार्ता से जवाब मांगा है.
क्या कहते हैं कुपोषण के आंकड़े ?
अगस्त 2020 में जारी आंकड़ों के अनुसार जिले में 0 से 5 साल के बच्चों की जांच और उनके कुपोषण निर्धारण के अलावा उनके उपचार की बात करें तो, जिलें में 0 से 5 साल तक के कुल 86 हजार 66 बच्चे हैं, इनमें से 85 हजार 466 बच्चों की स्क्रीनिंग की गई है. स्क्रीनिंग के बाद सामने आया कि जिले में कुल 12 हजार 556 बच्चें कुपोषण के शिकार हैं, इनमें से 1 हजार 73 बच्चे अतिकुपोषित हैं.
मंडला के कुल बच्चों में 15 प्रतिसत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. जबकि 1.2 प्रतिशत बच्चे अति कुपोषित हैं. ऐसे में समझा जा सकता है, कि सरकारों की योजनाओं का जमीनी स्तर पर कितना असर हुआ है. सरकार के जागरूकता अभियान मात्र कागजों में सिमट कर रह गए हैं, जिस कारण आदिवासी अंचल के लोग इलाज कराने की बजाय झाड़ फूंक पर ज्यादा विश्वास करते है.