मंडला। जिले के उपनगरीय क्षेत्र स्थित नर्मदा, बंजर और धृत गंगा सुर्पन नदी के संगम पर मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. माना जाता है कि यहां शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था. साथ ही व्यास ऋषि ने इसी स्थान पर अपने पुत्र का उपनयन संस्कार किया था. धार्मिक महत्व के इस स्थान पर हर साल कई लोग यहां पहुंचते हैं और स्नान करते हैं.
मंडला के इस तट पर मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिन का विशाल मेला लगता है और आसपास के जिले में एकमात्र तीन नदियों के संगम होने के चलते दूर-दूर से यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है. बाहर से आने वाले लोग यहां तट पर आस्था की डुबकी लगाकर पूजन-पाठ करते हैं और फिर दान-दक्षिणा के साथ ही भंडारे का आयोजन कर प्रसाद वितरण करते हैं. तीन नदियों के संगम और धार्मिक महत्व के चलते इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक नर्मदा के दक्षिण तट पर पितृ कर्म और उत्तर तट पर देव कर्म किए जाएंगे, ऐसा आशीर्वाद भगवान शंकर ने अपनी पुत्री नर्मदा को दिया था. मंडला पुराने समय मे महिष्मती नगरी के नाम से प्रसिद्ध रहा है, जहां हमेशा ऋषियों और महात्माओं के द्वारा पूजा और ध्यान कर्म किए जाते थे.
कहा जाता है कि इस संगम पर वेद व्यास ने अपने पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार किया, जिसके बाद दिए जाने वाले दान को दक्षिण तट पर होने के चलते आचार्यों ने अस्वीकार कर दिया था. तब व्यास जी ने नर्मदा जी से आराधना कर मार्ग बदलने की प्रार्थना की, जिससे प्रसन्न होकर मां नर्मदा ने मार्ग बदल लिया और व्यास जी की दंडी से बचते हुए बहने लगीं, तब से इस संगम स्थल पर नर्मदा जी दंडी के आकार में बहती नजर आती हैं.
दूसरी मान्यता के मुताबिक तीन नदियों के संगम स्थल पर नर्मदा के किनारे शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, अपने पति को हारता देख मंडन मिश्र की पत्नी ने कहा कि आप ब्रह्मचारी हैं और मंडन मिश्र गृहस्थ हैं, जिसके चलते वे मेरे बिना अधूरे हैं, इसलिए आपको मुझ से भी शास्त्रार्थ करना होगा. मंडन मिश्र की पत्नी के गृहस्थ के प्रश्नों का जवाब शंकराचार्य नहीं दे पाए और पराजित हो गए.
यह भी माना जाता है कि मंडन मिश्र के द्वारा शास्त्रार्थ में विजयी होने के चलते इसका नाम मण्डला पड़ा, हालांकि मंडलेश्वर और मंडला को लेकर ये भ्रम है कि शास्त्रार्थ कहां हुआ था, दूसरी तरफ मंडला के नाम को लेकर भी कहा जाता है कि संग्राम सिंह मंडावी ने यहां राज्य किया, जिसके कारण इसका नाम मंडला पड़ा.