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मकर संक्रांति के मौके पर विशाल मेले का आयोजन, दूर-दूर से श्रद्धालुओं का आना शुरू

मंडला के उपनगरीय क्षेत्र में त्रिवेणी संगम धार्मिक महत्व का स्थान माना जाता है. यहां हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिन का विशाल मेला लगता है.

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Published : Jan 14, 2020, 11:58 AM IST

Updated : Jan 14, 2020, 3:12 PM IST

Triveni Sangam, madala
त्रिवेणी संगम

मंडला। जिले के उपनगरीय क्षेत्र स्थित नर्मदा, बंजर और धृत गंगा सुर्पन नदी के संगम पर मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. माना जाता है कि यहां शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था. साथ ही व्यास ऋषि ने इसी स्थान पर अपने पुत्र का उपनयन संस्कार किया था. धार्मिक महत्व के इस स्थान पर हर साल कई लोग यहां पहुंचते हैं और स्नान करते हैं.

मकर संक्रांति के मौके पर विशाल मेले का आयोजन

मंडला के इस तट पर मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिन का विशाल मेला लगता है और आसपास के जिले में एकमात्र तीन नदियों के संगम होने के चलते दूर-दूर से यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है. बाहर से आने वाले लोग यहां तट पर आस्था की डुबकी लगाकर पूजन-पाठ करते हैं और फिर दान-दक्षिणा के साथ ही भंडारे का आयोजन कर प्रसाद वितरण करते हैं. तीन नदियों के संगम और धार्मिक महत्व के चलते इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है.

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक नर्मदा के दक्षिण तट पर पितृ कर्म और उत्तर तट पर देव कर्म किए जाएंगे, ऐसा आशीर्वाद भगवान शंकर ने अपनी पुत्री नर्मदा को दिया था. मंडला पुराने समय मे महिष्मती नगरी के नाम से प्रसिद्ध रहा है, जहां हमेशा ऋषियों और महात्माओं के द्वारा पूजा और ध्यान कर्म किए जाते थे.

कहा जाता है कि इस संगम पर वेद व्यास ने अपने पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार किया, जिसके बाद दिए जाने वाले दान को दक्षिण तट पर होने के चलते आचार्यों ने अस्वीकार कर दिया था. तब व्यास जी ने नर्मदा जी से आराधना कर मार्ग बदलने की प्रार्थना की, जिससे प्रसन्न होकर मां नर्मदा ने मार्ग बदल लिया और व्यास जी की दंडी से बचते हुए बहने लगीं, तब से इस संगम स्थल पर नर्मदा जी दंडी के आकार में बहती नजर आती हैं.

दूसरी मान्यता के मुताबिक तीन नदियों के संगम स्थल पर नर्मदा के किनारे शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, अपने पति को हारता देख मंडन मिश्र की पत्नी ने कहा कि आप ब्रह्मचारी हैं और मंडन मिश्र गृहस्थ हैं, जिसके चलते वे मेरे बिना अधूरे हैं, इसलिए आपको मुझ से भी शास्त्रार्थ करना होगा. मंडन मिश्र की पत्नी के गृहस्थ के प्रश्नों का जवाब शंकराचार्य नहीं दे पाए और पराजित हो गए.

यह भी माना जाता है कि मंडन मिश्र के द्वारा शास्त्रार्थ में विजयी होने के चलते इसका नाम मण्डला पड़ा, हालांकि मंडलेश्वर और मंडला को लेकर ये भ्रम है कि शास्त्रार्थ कहां हुआ था, दूसरी तरफ मंडला के नाम को लेकर भी कहा जाता है कि संग्राम सिंह मंडावी ने यहां राज्य किया, जिसके कारण इसका नाम मंडला पड़ा.

मंडला। जिले के उपनगरीय क्षेत्र स्थित नर्मदा, बंजर और धृत गंगा सुर्पन नदी के संगम पर मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. माना जाता है कि यहां शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था. साथ ही व्यास ऋषि ने इसी स्थान पर अपने पुत्र का उपनयन संस्कार किया था. धार्मिक महत्व के इस स्थान पर हर साल कई लोग यहां पहुंचते हैं और स्नान करते हैं.

मकर संक्रांति के मौके पर विशाल मेले का आयोजन

मंडला के इस तट पर मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिन का विशाल मेला लगता है और आसपास के जिले में एकमात्र तीन नदियों के संगम होने के चलते दूर-दूर से यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है. बाहर से आने वाले लोग यहां तट पर आस्था की डुबकी लगाकर पूजन-पाठ करते हैं और फिर दान-दक्षिणा के साथ ही भंडारे का आयोजन कर प्रसाद वितरण करते हैं. तीन नदियों के संगम और धार्मिक महत्व के चलते इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है.

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक नर्मदा के दक्षिण तट पर पितृ कर्म और उत्तर तट पर देव कर्म किए जाएंगे, ऐसा आशीर्वाद भगवान शंकर ने अपनी पुत्री नर्मदा को दिया था. मंडला पुराने समय मे महिष्मती नगरी के नाम से प्रसिद्ध रहा है, जहां हमेशा ऋषियों और महात्माओं के द्वारा पूजा और ध्यान कर्म किए जाते थे.

कहा जाता है कि इस संगम पर वेद व्यास ने अपने पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार किया, जिसके बाद दिए जाने वाले दान को दक्षिण तट पर होने के चलते आचार्यों ने अस्वीकार कर दिया था. तब व्यास जी ने नर्मदा जी से आराधना कर मार्ग बदलने की प्रार्थना की, जिससे प्रसन्न होकर मां नर्मदा ने मार्ग बदल लिया और व्यास जी की दंडी से बचते हुए बहने लगीं, तब से इस संगम स्थल पर नर्मदा जी दंडी के आकार में बहती नजर आती हैं.

दूसरी मान्यता के मुताबिक तीन नदियों के संगम स्थल पर नर्मदा के किनारे शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, अपने पति को हारता देख मंडन मिश्र की पत्नी ने कहा कि आप ब्रह्मचारी हैं और मंडन मिश्र गृहस्थ हैं, जिसके चलते वे मेरे बिना अधूरे हैं, इसलिए आपको मुझ से भी शास्त्रार्थ करना होगा. मंडन मिश्र की पत्नी के गृहस्थ के प्रश्नों का जवाब शंकराचार्य नहीं दे पाए और पराजित हो गए.

यह भी माना जाता है कि मंडन मिश्र के द्वारा शास्त्रार्थ में विजयी होने के चलते इसका नाम मण्डला पड़ा, हालांकि मंडलेश्वर और मंडला को लेकर ये भ्रम है कि शास्त्रार्थ कहां हुआ था, दूसरी तरफ मंडला के नाम को लेकर भी कहा जाता है कि संग्राम सिंह मंडावी ने यहां राज्य किया, जिसके कारण इसका नाम मंडला पड़ा.

Intro:मण्डला के उपनगरीय क्षेत्र इस्थित त्रिवेणी संगम जहाँ नर्मदा,बंजर और धृत गंगा सुर्पन नदी का संगम है मकरसंक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है माना जाता है कि यहाँ शंकराचार्य और मंडनमिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था वहीं व्यास ऋषि ने इसी स्थान पर अपने पुत्र का उपनयन संस्कार किया था


Body:नर्मदा के दक्षिण तट पर पित्र कर्म और उत्तर तट पर देव् कर्म किये जाएंगे ऐसा आशीर्वाद भगवान शंकर ने अपनी पुत्री नर्मदा जी को दिया था,मण्डला पुराने समय मे महिष्मति नगरी के नाम से प्रशिद्ध रही है जहाँ हमेसा ऋषियों और महात्माओं के द्वारा पूजा और ध्यान के कर्म किये जाते थे,कहा जाता है कि इस संगम स्थल पर वेद व्यास ने अपने पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार किया जिसके बाद दिए जाने वाले दान को दक्षिण तट पर होने के चलते आचार्यों ने अस्वीकार कर दिया तब व्यास जी ने नर्मदा जी से आराधना कर मार्ग बदलने की प्रार्थना की जिसे मान कर नर्मदा जी ने मार्ग बदल लिया और व्यास जी की दंडी से बचते हुए बहने लगीं मण्डला के इस संगम स्थल पर नर्मदा जी दंडी के आकार में बहती नज़र आतीं हैं,वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार तीन नदियों के संगम स्थल पर नर्मदा के किनारे शंकराचार्य जी और मंडनमिश्र के बीच शास्त्रर्थ हुआ था जिसमें मंडन मिश्र पराजित हो रहे थे जिसके बाद उनकी पत्नी ने कहा कि आप ब्रम्हचारी हो और मंडनमिश्र गृहस्त जिसके चलते वे मेरे बिना अधूरे हैं और आपको मुझ से भी शास्त्रार्थ करना होगा जिसके बाद मंडनमिश्र की पत्नी ने गृहस्त के प्रश्न किये और शंकराचार्य को गृहस्त का प्रायोगिक ज्ञान नहीं था और वे पराजित हो गए,लिखे गए धर्म शास्त्र और कथाओं में शास्त्रार्थ के स्थान में नदियों के किनारे,पेड़ पौधे, नर्मदा के तट और तीन नदियों के संगम की जो निशानियां बताई गई हैं वे इस स्थान पर देखी जा सकती है वहीं यह भी माना जाता है कि मंडनमिश्र के द्वारा शास्त्रार्थ में विजयी होने के चलते इसका नाम मण्डला पड़ा हालांकि मंडलेश्वर (खंडवा ) और मण्डला को लेकर यह भृम है कि शास्त्रार्थ कहाँ हुआ था,दूसरी तरफ मण्डला के नाम को लेकर भी कहा जाता है कि संग्राम सिंग मंडावी ने यहाँ राज्य किया और इस राज्य का नाम मण्डला पड़ा


Conclusion:मण्डला के इस तट पर मकरसंक्रांति के अवसर पर तीन दिन का विशाल मेला लगता है और आसपास के जिले में एक मात्र तीन नदियों के संगम होने के चलते दूर दूर से यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगता है वहीं बाहर से आने वाले लोग यहाँ इस तट पर आस्था की डुबकी लगाने के बाद पूजन पाठ करते हैं और फिर दान दक्षिणा के साथ ही भंडारे का आयोजन कर प्रसाद वितरण करते हैं तीन नदियों के संगम और धार्मिक महत्व के चलते इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है।

बाईट--पंडित चितरंजन प्रसाद तिवारी स्तम्भकार सर्वोत्तम हिंदी पञ्चाङ्ग

पीटूसी मयंक तिवारी संवददाता मण्डला
Last Updated : Jan 14, 2020, 3:12 PM IST
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