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लॉकडाउन से महुआ भी हुआ डाउन, आदिवासियों की जमा पूंजी पर लगा ब्रेक

मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में होने वाला महुआ ग्रामीणों के लिए एक पूंजी की तरह होता है. जिसका इस्तेमाल कई कामों में किया जाता है. महुए का उपयोग दवा बनाने के काम भी आता है. जिससे ग्रामीओं का गुजर बसर भी चलता है.

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Published : Apr 30, 2020, 12:37 PM IST

mandla news
लॉकडाउन से महुआ डाउन

मंडला। महुआ एक ऐसा फूल है जो मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में लोगों की परंपराओं से जुड़ा है. गर्मी के मौसम में महुए का बंपर उत्पादन होता है. जो ग्रामीणों के लिए गुजर बसर का बड़ा सहारा रहता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से महुआ की खरीदी अब तक शुरु नहीं हो पाई है. जिससे ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

लॉकडाउन से महुआ डाउन

आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में भी महुआ बड़े पैमाने पर होता है. इस बार भी यहां महुआ की बंपर पैदावार हुई. लेकिन लॉकडाउन के चलते इसकी बिक्री नहीं हो पा रही. ऐसे में ग्रामीण अंचलों में महुआ उत्पादन से जुड़े ग्रामीणों की परेशानियां बढ़ गई हैं. क्योंकि गर्मी के सीजन में ग्रामीण महुआ बेचकर अपना खर्चा चलाते थे.

महुए के फूल
महुए के फूल

रीति रिवाजों और परम्पराओं से जुड़ा महुआ

महुआ ग्रामीणों की रीति-रिवाजों और पंरपराओं से भी जुड़ा है. बच्चे के जन्म से लेकर विवाह और फसल कटाई जैसे सभी शुभ कार्यों में महुआ का उपयोग किया जाता है. आदिवासी खासतौर पर सभी मांगलिक कार्यों में महुआ का उपयोग करते हैं. कई पीढ़ियों से महुआ ग्रामीणों के सुख-दुख का साथी रहा है, गांव मे जिसके जितने ज्यादा महुआ के पेड़ वह उतना ही बड़ा आदमी.

धूप में सूखता महुआ
धूप में सूखता महुआ

मुसीबत का साथी और जमा पूंजी है महुआ

महुआ ग्रामीणों की वो पूंजी है, जो इनके आड़े वक्त में बहुत काम आता है, महुआ बेचकर ग्रामीणों का घर-खर्च चलता है. तो अन्य कार्यों में भी महुआ का उपयोग किया जाता है. ठंड के मौसम में ग्रामीण इसे अपने मवेशियों को खिलाकर गर्माहट देने का काम करता है. जबकि महुए का तेल का उपयोग भी ग्रामीण बड़े पैमाने पर करते हैं, जिसे दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.

महुआ बीनती महिला
महुआ बीनती महिला

कोरोना के चलते नहीं हो रही खरीदी

बेमौसम बरसात के बाद भी इस बार महुआ की अच्छी पैदावार हुई है. लेकिन कोरोना के चलते अभी इसकी खरीदी शुरू नहीं हो सकी है. ऐसे में जिन लोगों को अभी पैसों की जरूरत है, उनकी परेशानियां बढ़ती जा रही है. दूसरी तरफ वन समितियों के द्वारा इसे खरीदा तो जा रहा, लेकिन व्यपारी जहां इसका दाम 40 रुपए प्रति किलो देते हैं, उसके मुकाबले समिति 35 रुपए में खरीद कर रही है.

मंडला। महुआ एक ऐसा फूल है जो मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में लोगों की परंपराओं से जुड़ा है. गर्मी के मौसम में महुए का बंपर उत्पादन होता है. जो ग्रामीणों के लिए गुजर बसर का बड़ा सहारा रहता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से महुआ की खरीदी अब तक शुरु नहीं हो पाई है. जिससे ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

लॉकडाउन से महुआ डाउन

आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में भी महुआ बड़े पैमाने पर होता है. इस बार भी यहां महुआ की बंपर पैदावार हुई. लेकिन लॉकडाउन के चलते इसकी बिक्री नहीं हो पा रही. ऐसे में ग्रामीण अंचलों में महुआ उत्पादन से जुड़े ग्रामीणों की परेशानियां बढ़ गई हैं. क्योंकि गर्मी के सीजन में ग्रामीण महुआ बेचकर अपना खर्चा चलाते थे.

महुए के फूल
महुए के फूल

रीति रिवाजों और परम्पराओं से जुड़ा महुआ

महुआ ग्रामीणों की रीति-रिवाजों और पंरपराओं से भी जुड़ा है. बच्चे के जन्म से लेकर विवाह और फसल कटाई जैसे सभी शुभ कार्यों में महुआ का उपयोग किया जाता है. आदिवासी खासतौर पर सभी मांगलिक कार्यों में महुआ का उपयोग करते हैं. कई पीढ़ियों से महुआ ग्रामीणों के सुख-दुख का साथी रहा है, गांव मे जिसके जितने ज्यादा महुआ के पेड़ वह उतना ही बड़ा आदमी.

धूप में सूखता महुआ
धूप में सूखता महुआ

मुसीबत का साथी और जमा पूंजी है महुआ

महुआ ग्रामीणों की वो पूंजी है, जो इनके आड़े वक्त में बहुत काम आता है, महुआ बेचकर ग्रामीणों का घर-खर्च चलता है. तो अन्य कार्यों में भी महुआ का उपयोग किया जाता है. ठंड के मौसम में ग्रामीण इसे अपने मवेशियों को खिलाकर गर्माहट देने का काम करता है. जबकि महुए का तेल का उपयोग भी ग्रामीण बड़े पैमाने पर करते हैं, जिसे दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.

महुआ बीनती महिला
महुआ बीनती महिला

कोरोना के चलते नहीं हो रही खरीदी

बेमौसम बरसात के बाद भी इस बार महुआ की अच्छी पैदावार हुई है. लेकिन कोरोना के चलते अभी इसकी खरीदी शुरू नहीं हो सकी है. ऐसे में जिन लोगों को अभी पैसों की जरूरत है, उनकी परेशानियां बढ़ती जा रही है. दूसरी तरफ वन समितियों के द्वारा इसे खरीदा तो जा रहा, लेकिन व्यपारी जहां इसका दाम 40 रुपए प्रति किलो देते हैं, उसके मुकाबले समिति 35 रुपए में खरीद कर रही है.

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