मंडला। कभी सिर्फ पशुओं की खरीदी बिक्री के लिए त्रिवेणी संगम पर एक सदी से लगने वाला मेला आधुनिक हो गया है. इस ऐतिहासिक पशु मेले की ख्याति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान तक फैली है. मेले को प्रदेश के सबसे बड़े पशु मेले का दर्जा हासिल है.
शिवरात्रि से लेकर होलिका दहन तक यह मेला लगता है. महादेव शंकर के नाम पर भी इसका नाम मचलेश्वर रखा गया है. इस मेले की शुरुआत नदी के किनारे रेत के मैदान से हुई थी जो आज पूरे हिरदेनगर तक फैल चुका है. इस मेले के बारे में बताया जाता है कि तकरीबन सौ साल पहले इस मेले की शुरुआत हुई थी जो वाली प्राकृतिक आपदाओं के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया था. जिसके बाद मचल प्रसाद मिश्र ने अंग्रेजों के सामने अपनी निजी भूमि पर 15 दिनों तक मेला लगाने की बात रखी और मेले को जीवित रखा.
1970 तक इसका नाम मचलेश्वर मेला था, जो 2003 तक बदल कर हिरदेनगर मेला कहलाने लगा, लेकिन अपने परिवार का गौरव और बुजुर्गों की निशानी को बचाए रखने के लिए उस समय के जनपद पंचायत उपाध्यक्ष प्रफुल्ल मिश्र जो कि मचल मिश्र के पोते हैं के द्वारा कोशिश की गई और मेले को पुराना नाम दिलाने में कामयाब रहे. मेले को गजेटियर में भी स्थान मिल चुका है. मेले में पशुओं के अलावा, मशाले, कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आलमारी जैसी हर एक चीज मिलती है.