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जानिए 100 साल पुराने पशु मेले के मॉडर्न बनने की कहानी

त्रिवेणी संगम पर 100 साल से लगने वाला मेला आधुनिक हो गया है. देश के कई प्रदेशों में इस ऐतिहासिक पशु मेले की ख्याति फैली है.

पशु मेला
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Published : Mar 20, 2019, 12:06 PM IST

मंडला। कभी सिर्फ पशुओं की खरीदी बिक्री के लिए त्रिवेणी संगम पर एक सदी से लगने वाला मेला आधुनिक हो गया है. इस ऐतिहासिक पशु मेले की ख्याति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान तक फैली है. मेले को प्रदेश के सबसे बड़े पशु मेले का दर्जा हासिल है.

पशु मेला

शिवरात्रि से लेकर होलिका दहन तक यह मेला लगता है. महादेव शंकर के नाम पर भी इसका नाम मचलेश्वर रखा गया है. इस मेले की शुरुआत नदी के किनारे रेत के मैदान से हुई थी जो आज पूरे हिरदेनगर तक फैल चुका है. इस मेले के बारे में बताया जाता है कि तकरीबन सौ साल पहले इस मेले की शुरुआत हुई थी जो वाली प्राकृतिक आपदाओं के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया था. जिसके बाद मचल प्रसाद मिश्र ने अंग्रेजों के सामने अपनी निजी भूमि पर 15 दिनों तक मेला लगाने की बात रखी और मेले को जीवित रखा.

1970 तक इसका नाम मचलेश्वर मेला था, जो 2003 तक बदल कर हिरदेनगर मेला कहलाने लगा, लेकिन अपने परिवार का गौरव और बुजुर्गों की निशानी को बचाए रखने के लिए उस समय के जनपद पंचायत उपाध्यक्ष प्रफुल्ल मिश्र जो कि मचल मिश्र के पोते हैं के द्वारा कोशिश की गई और मेले को पुराना नाम दिलाने में कामयाब रहे. मेले को गजेटियर में भी स्थान मिल चुका है. मेले में पशुओं के अलावा, मशाले, कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आलमारी जैसी हर एक चीज मिलती है.

मंडला। कभी सिर्फ पशुओं की खरीदी बिक्री के लिए त्रिवेणी संगम पर एक सदी से लगने वाला मेला आधुनिक हो गया है. इस ऐतिहासिक पशु मेले की ख्याति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान तक फैली है. मेले को प्रदेश के सबसे बड़े पशु मेले का दर्जा हासिल है.

पशु मेला

शिवरात्रि से लेकर होलिका दहन तक यह मेला लगता है. महादेव शंकर के नाम पर भी इसका नाम मचलेश्वर रखा गया है. इस मेले की शुरुआत नदी के किनारे रेत के मैदान से हुई थी जो आज पूरे हिरदेनगर तक फैल चुका है. इस मेले के बारे में बताया जाता है कि तकरीबन सौ साल पहले इस मेले की शुरुआत हुई थी जो वाली प्राकृतिक आपदाओं के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच गया था. जिसके बाद मचल प्रसाद मिश्र ने अंग्रेजों के सामने अपनी निजी भूमि पर 15 दिनों तक मेला लगाने की बात रखी और मेले को जीवित रखा.

1970 तक इसका नाम मचलेश्वर मेला था, जो 2003 तक बदल कर हिरदेनगर मेला कहलाने लगा, लेकिन अपने परिवार का गौरव और बुजुर्गों की निशानी को बचाए रखने के लिए उस समय के जनपद पंचायत उपाध्यक्ष प्रफुल्ल मिश्र जो कि मचल मिश्र के पोते हैं के द्वारा कोशिश की गई और मेले को पुराना नाम दिलाने में कामयाब रहे. मेले को गजेटियर में भी स्थान मिल चुका है. मेले में पशुओं के अलावा, मशाले, कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आलमारी जैसी हर एक चीज मिलती है.

Intro:मण्डला जिले के हिरदेनगर में लगने वाले मशहूर मचलेश्वर मेले का स्वरूप समय के साथ बदल रहा है कभी सिर्फ पशुओं की खरीदी बिक्री के लिए लगने वाला यह मेला आज आधुनिक हो गया है और यहाँ अब जरूरत की हर चीजें मिलने लगी है 100 साल पहले शुरू हुए इस मेले में कई प्रदेशों से लोग आते है लेकिन उन्हें भी शायद यह नहीं पता होगा कि यह मेला कितना पुराना है और क्या है इसका इतिहास


Body:मटियारी,बंजर और सुरपन नदी के त्रिवेणी संगम पर एक सदी से लगने वाले ऐतिहासिक पशु मेले की ख्याति मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र राजिस्थान तक फैली हुई है और इस मेले को प्रदेश के सबसे बड़े पशु मेले का दर्जा प्राप्त है मेले की शुरुआत नदी के किनारे रेत के मैदान से हुई थी जो आज पूरे हिरदेनगर तक फैल चुका है इस मेले के बारे में बताया जाता है कि भूतपूर्व मालगुजार मचल प्रशाद के द्वारा मेले को बचाया गया कहा जाता है कि लगभग सौ साल पहले इस मेले की शुरुआत हुई थी जो आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के चलते बंद होने की कगार पर पहुँच गया जिसके बाद मचल प्रशाद मिश्र ने अंग्रेजों से अपनी निजी भूमि पर 15 दिनों तक मेला लगाने को देने का करार किया और मेले को जीवित रखा 1970 तक इसका नाम मचलेश्वर मेला था जो 1071 से 2003 तक बदल कर हिरदेनगर मेला कहलाने लगा लेकिन अपने परिवार का गौरव और बुजुर्गों की निशानी को बचाए रखने के लिए उस समय के जनपद पंचायत उपाध्यक्ष प्रफुल्ल मिश्र जो कि मचल मिश्र के पोते है के द्वारा कोसिस की गई और मेले को पुराना नाम दिलाने में कामयाब रहे मेले के नाम गजेटियर में भी स्थान मिल चुका है यह मेला शिवरात्रि से लेकर होलिका दहन तक लगता है महादेव शंकर के नाम पर भी इसका नाम मचलेश्वर रखा गया है


Conclusion:मेले में पशुओं के अलावा पत्थर के सिलबट्टे जो मशाले पीसने के काम आते है बड़ी मात्रा में बिकने आते है,मशाले,कपड़े बर्तन,फर्नीचर,आलमारी जैसी हर एक चीज यहाँ मिल जाएगी वहीं अपने पशुओं को सजाने सवारने वाले लोगों के लिए यह मेला खास होता है क्योंकि उनके लिए यहाँ हर तरह की चीजें मिल जाया करती हैं,पुराने समय मे होलिका दहन की रात 12 बजे मेला पूरी तरह बंद हो जाता था लेकिन समय के साथ आए बदलाव में अब यह मेला होली के बाद तक लगा होता है

बाईट-प्रफुल मिश्रा मचल मिश्र के पोते
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