मंडला। नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है. मन का विश्वास रगों में साहस भरता है. गिर कर चढ़ना ही इंसान को मजबूत बनाता है. ऐसी ही दास्तां है मंडला जिले के शिक्षक निर्मल हरदहा की. जिनके साथ किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि एक पल के लिए लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन निर्मल ने हार नहीं मानी और कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर आवाम की आंखों का तारा बन गये.
अर्थराइटिस की बीमारी ने निर्मल के हाथों की उंगलियों को बेजान कर दिया था, फिर निर्मल ने इन्हीं बेजान उंगलियों से जो रंग भरा, उससे उनकी बेरंग दुनिया फिर से रंगीन हो गयी. जिन उंगलियों से निर्मल को कुछ पकड़ पाना संभव नहीं था. उन्हीं से वो चित्रकारी करना शुरु कर दिये. धीरे-धीरे निर्मल की मेहनत रंग लाई और चित्रकारी के सहारे ही उन्होंने एक बार फिर बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया.
निर्मल चित्रकारी के जरिए ही छात्रों को तालीम देते हैं और बड़ी आसानी से हर कठिन विषय को सरलता से बच्चों को समझा देते हैं. निर्मल बताते हैं कि उन्हें एक वक्त लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन अपनी हिम्मत के दम पर वह फिर से उठ खड़े हुए. निर्मल की दृढ़ इच्छा शक्ति की लोग मिसाल देते हैं, जो दिव्यांग होकर भी अपनी कला साधना को जीवित रख पाने में सफल हुए हैं. स्कूल की दीवारों पर बनाए गए चित्र हों या फिर महापुरुषों से लेकर पाठ्यक्रम की तस्वीरें. सब इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत.