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बेजान होकर भी खाली लकीरों में भर दी जान, फिर रंगीन हो गयी बेरंग दुनिया

मण्डला जिले के नैनपुर विकासखण्ड की अमझर प्राथमिक शाला के शिक्षक निर्मल हरदहा जिनकी उंगलियाँ अर्थराइटिस की बीमारी के बाद 18 साल की आयु में विकृत हो गई. जिससे वे पैंसिल तक नहीं पकड़ पाते थे. लेकिन उन्होंने अपनी इसी कमजोरी को अपनी ताकत में बदल दिया.

मंडला के शिक्षक निर्मल हरदहा
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Published : Jul 19, 2019, 6:34 PM IST

मंडला। नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है. मन का विश्वास रगों में साहस भरता है. गिर कर चढ़ना ही इंसान को मजबूत बनाता है. ऐसी ही दास्तां है मंडला जिले के शिक्षक निर्मल हरदहा की. जिनके साथ किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि एक पल के लिए लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन निर्मल ने हार नहीं मानी और कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर आवाम की आंखों का तारा बन गये.

बेजान होकर भी खाली लकीरों में भर दी जान, मंडला के शिक्षक निर्मला हरदहा

अर्थराइटिस की बीमारी ने निर्मल के हाथों की उंगलियों को बेजान कर दिया था, फिर निर्मल ने इन्हीं बेजान उंगलियों से जो रंग भरा, उससे उनकी बेरंग दुनिया फिर से रंगीन हो गयी. जिन उंगलियों से निर्मल को कुछ पकड़ पाना संभव नहीं था. उन्हीं से वो चित्रकारी करना शुरु कर दिये. धीरे-धीरे निर्मल की मेहनत रंग लाई और चित्रकारी के सहारे ही उन्होंने एक बार फिर बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया.

निर्मल चित्रकारी के जरिए ही छात्रों को तालीम देते हैं और बड़ी आसानी से हर कठिन विषय को सरलता से बच्चों को समझा देते हैं. निर्मल बताते हैं कि उन्हें एक वक्त लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन अपनी हिम्मत के दम पर वह फिर से उठ खड़े हुए. निर्मल की दृढ़ इच्छा शक्ति की लोग मिसाल देते हैं, जो दिव्यांग होकर भी अपनी कला साधना को जीवित रख पाने में सफल हुए हैं. स्कूल की दीवारों पर बनाए गए चित्र हों या फिर महापुरुषों से लेकर पाठ्यक्रम की तस्वीरें. सब इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत.

मंडला। नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है. मन का विश्वास रगों में साहस भरता है. गिर कर चढ़ना ही इंसान को मजबूत बनाता है. ऐसी ही दास्तां है मंडला जिले के शिक्षक निर्मल हरदहा की. जिनके साथ किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि एक पल के लिए लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन निर्मल ने हार नहीं मानी और कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर आवाम की आंखों का तारा बन गये.

बेजान होकर भी खाली लकीरों में भर दी जान, मंडला के शिक्षक निर्मला हरदहा

अर्थराइटिस की बीमारी ने निर्मल के हाथों की उंगलियों को बेजान कर दिया था, फिर निर्मल ने इन्हीं बेजान उंगलियों से जो रंग भरा, उससे उनकी बेरंग दुनिया फिर से रंगीन हो गयी. जिन उंगलियों से निर्मल को कुछ पकड़ पाना संभव नहीं था. उन्हीं से वो चित्रकारी करना शुरु कर दिये. धीरे-धीरे निर्मल की मेहनत रंग लाई और चित्रकारी के सहारे ही उन्होंने एक बार फिर बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया.

निर्मल चित्रकारी के जरिए ही छात्रों को तालीम देते हैं और बड़ी आसानी से हर कठिन विषय को सरलता से बच्चों को समझा देते हैं. निर्मल बताते हैं कि उन्हें एक वक्त लगा कि सब कुछ हाथ से निकल गया, लेकिन अपनी हिम्मत के दम पर वह फिर से उठ खड़े हुए. निर्मल की दृढ़ इच्छा शक्ति की लोग मिसाल देते हैं, जो दिव्यांग होकर भी अपनी कला साधना को जीवित रख पाने में सफल हुए हैं. स्कूल की दीवारों पर बनाए गए चित्र हों या फिर महापुरुषों से लेकर पाठ्यक्रम की तस्वीरें. सब इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत.

Intro:बीमारी की मार ने इनके हाथों की उँगलियों को तो विकृत कर दिया लेकिन इस रोग ने भी नहीं छीन पाई वो ईक्षा शक्ति जो आज इस शिक्षक की ताकत बन गयी और ये अपने पढाने के अलग अंदाज और चित्रकारी के लिए चर्चित हैं


Body:जिन उंगलियों से कुछ पकड़ पाना सम्भव नहीं उन्ही उंगलियों में बमुश्किल पेंशील और कूचीं को थाम कर वो ऐसे रंग भरते हैं कि बस देखने वाला देखते रह जाए,साथ ही बच्चों को खेल खेल में पढ़ाने का अंदाज ऐसा की अब यह उनकी आदत में शुमार हो चुका है,फिर चाहे हिंदी हो या गणित हर विषयों के लिए कुछ ऐसा बनाते हैं कि बड़ी आसानी से हर एक कठिन विषय को सरलता के साथ बच्चों को समझा देते हैं,ये हैं मण्डला जिले के नैनपुर विकासखण्ड की अमझर प्राथमिक शाला के शिक्षक निर्मल हरदहा जिनकी उंगलियाँ अर्थराइटिस की बीमारी के बाद 18 साल की आयु में ऐसी विकृत हो गईं की इनमें न पकड़ने की शक्ति रही न ही कोई हरकत करने की छमता इसके बाद भी इन्होंने हार नहीं मानी और पीछे की ओर मुड़ चुकी उंगलियों से ही कूचीं थाम कर कैनवास पर तरह तरह के रंग भरने चालू कर दिए की इनकी ईक्षा शक्ति के आगे विकृति को भी हार माननी पड़ी निर्मल का कहना है कि चित्रकारी में उनकी बचपन से ही रुचि रही है लेकिन बीमारी के बाद उन्हें ऐसा लगा था कि अब इस से नाता टूट जाएगा परन्तु मन कल्पना और कला की छटपटाहट ने उन्हें प्रेरित किया और कुछ मुसीबतों के बाद उनकी मेहनत और लगन जीत गयी और वे फिर से कैनवास को रंगों से सजाने लगे,इसके बाद जब से निर्मल शिक्षक बने तो उन्हें पढ़ाई के साथ चित्रकला को जोड़ने का मौका मिल गया और अपनी कल्पना से उन्होंने गणित जैसे विषय को भी नए तरीकों से पढ़ाने के उपाय खोजे,अनिल हर विषय के और हर एक इकाई के कार्ड घर पर हर दिन करीब दो घण्टे मेहनत कर बनाते हैं फिर उसके माध्यम से बच्चों को बड़ी आसानी से कठिन विषय समझा देते हैं


Conclusion:कहते हैं दृढ़ ईक्षा शक्ति से हर वधाओं को पार किया जा सकता है जिसका जीता जागता उदाहरण हैं निर्मल हरदहा जो दिव्यांग होकर भी अपनी कला की साधना को जीवित रख पाने में सफल हुए,कलर पेंट की डिबिया खोलने के लिए इन्हें किसी सहयोगी की जरूरत पड़ती है लेकिन इसके बाद स्कूल की दीवारों पर बनाए गए चित्र हों या फिर देश के देश के नेताओं से लेकर पाठ्यक्रम की तस्वीरें इस बात को साबित करतीं हैं कि मन से न हारने वाले के सर पर हमेसा जीत का सेहरा सजता है।

बाईट--निर्मल हरदहा,शिक्षक, अमझर
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