मंडला। कान्हा नेशनल पार्क जहां कभी कोयल की मधुर आवाज सुनने के लिए हजारों पर्यटक आते थे. बाघ की दहाड़ सुनने और जंगली जानवरों के दीदार कर लोग रोमांच से भर जाते थे, आज इस पार्क में प्रकृति की खुबसूरती तो चरम पर है, लेकिन उसे निहारने वाले घरों में कैद हैं. लॉकडाउन के चलते कई लोग बेरोजगारी की भेंट चढ़ गए. लॉकडाउन का असर पर्यटक स्थलों पर भी हुआ है. कान्हा पार्क में पर्यटकों को अपनी जिप्सी में घुमा कर रोजी-रोटी चलाने वाले भी बेरोजगारी के शिकार होने से बच नहीं पाए.
कभी इन जिप्सी में जानवरों को देखकर शैलानियों की आवाज गूंज उठती थी. आज ये जिप्सी इस तरह खड़ी हैं जैसे किसी ने इनके पैरों में जंजीर डाल दी हो. नेशनल पार्क का दीदार कराने वाले जिप्सी चालकों पर बेरोजगारी का आलम छाया हुआ है. इन जिप्सी चालकों का कहना है कि कान्हा नेशनल पार्क इस साल ज्यादा बारिश के चलते 15 दिन बाद खुला था. जिससे शुरुआती कमाई तो मारी ही गई, वहीं लॉकडाउन ने जिप्सी चालकों की जैसे कमर ही तोड़ दी है.
जीवन यापन में परेशानी
इन चिप्सी चालकों का कहना है कि पार्क में आठ जोन और करीब 250 वाहन हैं. पार्क में नए वाहन को दस साल चलाने की इजाजत होती है. लोन से खरीदी गई जिप्सी की किश्तों को भी उन्हें समय पर भरना पड़ता है. इनका कहना है कि अभी वो समय है, जब देश और विदेश के सैलानियों का यहां सबसे ज्यादा आना-जाना रहता है और इस पीक टाइम की कमाई से ही करीब चार महीने बंद रहने वाले कान्हा सीजन की कमाई भी होती है. जिप्सी चालक ने कहा कि इस साल का सीजन तो चला गया और बरसात भी आने वाली है. घर का खर्च चलाने के साथ बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा. वहीं जिप्सी मालिक होने की वजह से ये गरीबी रेखा के दायरे में भी नहीं आते, ऐसे में उन्हें किसी तरह की सरकारी मदद भी नहीं मिलती है.
आर्थिक तंगी से परेशान
वाहन चालकों ने बताया कि पेट्रोल, मेंटेनेंस खर्च और जिप्सी की किस्त भरने के बाद महीने का करीब 10 हजार की बचत होती थी. इस साल कोई कमाई नहीं होने से इन्हें पैसों की तंगी से जूझना पड़ रहा है. लॉकडाउन ने ज्यादा कमाई वाले इस सीजन में उनकी जिप्सियों के पहिए थमा दिए हैं. ऐसे में करीब ढाई सौ लोग बेरोजगार घर बैठे हैं, सोच रहे हैं कि इस सीजन में पार्क खुलेगा या नहीं.