मण्डला। जिले में रहने वाले आदिवासी किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि वे जरूरतों का विकल्प भी खोज लेते हैं. ये लोग अपने आसपास की चीजों से ही अपनी जरूरतें पूरी कर लेते हैं.घर की दीवारों की पुताई के लिए यहां के आदिवासी चूने के बदले जंगल के भीतर छोटी बड़ी खदानों से निकली सफेद चूने के जैसी मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए मिट्टी और जंगल का बड़ा महत्व है. रोजी रोटी से लेकर इनकी हर जरूरत यहीं से पूरी होती है, कृषि के उपकरण बनाना या फिर रहने के लिए घरों का निर्माण और उस घर की देख- रेख सभी मिट्टी और जंगल से ही पूरी होती है.
पुताई के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी को बरसात के पहले गर्मी के मौसम में खोद कर लाते हैं और साल भर के लिए इसे सुखा कर रख लेते हैं. इसे स्थानीय भाषा मे छूही कहा जाता है, छुई की पुताई से दीवारें ठंडी रहती हैं.
वहीं यह मिट्टी मुफ्त में उपलब्घ है जिससे आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ता. इस मिट्टी का महत्व इस बात से भी जाना जा सकता है कि बच्चे के जन्म के समय चौक बारसे में इस मिट्टी को रखा जाता है और शादी में भी इसके बिना पूजा संभव नहीं है.