मंडला। मंडला जिले के नैनपुर तहसील के वार्ड नम्बर 6 में रहने वाले हाशिफ एक ऐसे इंसान हैं, जो दूसरों के लिए किसी नजीर से कम नहीं हैं. हाशिफ एक पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन किसी सही सलामत व्यक्ति से कम नहीं हैं. हाशिफ अपने एक पैर के सहारे रिक्शा चलाते हैं. जिसे लेकर ईटीवी भारत ने नैनपुर नगर पालिका के अध्यक्ष नरेश चंद्रोल से बात की.अब ईटीवी भारत की मुहिम का असर दिखने लगा है और कलेक्टर ने दिव्यांग हाशिफ को चार दिन के अंदर ट्राई साइकिल देने की बात कही है.
जन्म के 16 दिन बाद ही पैर को बीमारी ने ऐसा घेरा की उसका एक पैर पूरी तरह से गल गया. दिव्यांग बच्चे का लालन पालन करते हुए माता पिता ने स्कूल भेजा और पांचवी कक्षा में बोर्ड परीक्षा के समय पिता का साया सर से उठ गया और वो परीक्षा नहीं दे पाए. दूसरे साल फिर मेहनत की, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था और मां की भी मृत्यु हो गई. जिसके बाद 11 साल के हाशिफ ने खुद ही अपने पेट की ज्वाला शांत करने के लिए काम शुरू कर दिया.
बचपन से किया संघर्ष
माता-पिता का सर से साया उठने के बाद हाशिफ ने पैसा जोड़कर मनिहारी का सामान खरीदा, लेकिन मुसीबत ये रही कि इतने कम सामान से दुकान लगाए भी तो कहां. ऐसे में हाशिफ ने अपनी ट्राई साइकिल को ही अपनी दुकान चलाने का साधन बनाया और हाथों से पैडल चला कर गांव-गांव फेरी लगाने का सिलसिला शुरू हुआ, जो अब तक जारी है. बदलाव बस इतना रहा कि हाशिफ के दो बच्चे हैं, जिनके पेट भरने का इंतजाम करते हुए उसके बाल सफेद हो चुके हैं, लेकिन हाशिफ ने कभी हार नहीं मानी न कभी हाथों ने धोखा दिया, कहीं चढ़ाई आई तो कांधे के नीचे बैसाखी दबा कर यही हाथ साइकिल घसीट लेते, वहीं ट्राई साइकिल के साथ नहीं देने पर मनिहारी का बोझ भी ढो लेते हैं.
गरीबी रेखा में नाम, लेकिन अब तक नहीं मिली मदद
हाशिफ का कहना है कि उनके पास पूंजी के नाम पर बस एक झोपड़ी है, जमीन के नाम पर कुछ नहीं है. गरीबी रेखा में नाम भी है, लेकिन कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली. प्रधानमंत्री आवास का लाभ कब मिलेगा, ये भी पता नहीं है. यही वजह है कि गरीबी से लड़ने और विकलांगता की मजबूरी के बाद भी सुबह जल्दी घर से निकल जाते हैं और हर दिन कम से कम दो गांव की फेरी लगाकर महिलाओं के कुछ कपड़े और सजने संवारने के सामान को बेचते हैं. कोई दिन ऐसा भी आता है जब कुछ नहीं बिकता और दिन भर की मेहनत के बाद खाली हाथ लौटना होता है. हाशिफ ने बताया कि इस तैयारी और उम्मीद के साथ कि कल फिर सुबह होगी और सफर की शुरुआत भी.
सरकारी मदद की है दरकार
हाशिफ का कहना है कि उनकी दिव्यांगता, गरीबी और मजबूरी के साथ ही आत्मनिर्भरता को देखते हुए उन्हें सरकारी मदद दी जानी चाहिए. पैडल वाली ट्राई साइकिल की बजाय कोई ऐसा वाहन मिले, जिससे कि वे एक दिन में ज्यादा सफर कर सकें और ज्यादा गांव जाकर दिन भर में इतना तो कमा सकें कि बेटे और बेटी को बेहतर तालीम दिला सके. साथ ही तंगहाली की वजह से उनके बच्चों का सुनहरा भविष्य दांव पर न लगे.
रंग लाई ईटीवी भारत की मुहिम
ईटीवी भारत ने जब हाशिफ के बारे में नैनपुर नगर पालिका के अध्यक्ष नरेश चंद्रोल से बात की, तो उन्होंने पूरी संवेदनशीलता का परिचित देते हुए यह मामला कलेक्टर हर्षिका सिंह के संज्ञान में लाया और कलेक्टर ने आश्वासन दिया कि इसी हफ्ते हाशिफ के घर जाकर प्रशासन उन्हें बैटरी से चलने वाली ट्राई साइकिल भेंट करेगा. जिससे कि हाशिफ आसानी से अपना फेरी लगाकर रोजी-रोटी का बेहतर ढंग से इंतजाम कर सकेगा, साथ ही उसकी जो भी मदद बन पड़ेगी जरूर की जाएगी.
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इंसान के हौसले में यदि ताकत हो तो वह सब कुछ कर सकता है, हाशिफ का संघर्ष देखकर सामान्य आदमी भले ही हारकर बैठ जाए, लेकिन हर मुसीबत ने हाशिफ के आत्मविश्वास को और बढ़ाने के साथ ही उसे किस्मत की बजाय मेहनत करने को प्रेरित किया. क्या हुआ जो हाशिफ गरीब है, लेकिन उसके हौसले की दौलत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि विकलांगता और गरीबी को भीख मांगने का औजार न बनाकर हाशिफ ने पसीना बहाकर पेट की आग शांत करना चुना. प्रशासन की मिलने वाली मदद से उसके आत्मविश्वास में और इजाफा होगा, ईटीवी भारत भी हाशिफ के हौसले को सलाम करता है.