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गोंड राजाओं की समृद्धशाली विरासत पड़ी सूनी, देखें सन्नाटे में कैसा दिखता है रामनगर - Gond Carpet Manufacturing

मंडला जिले में कभी गोंड राजाओं की राजधानी रहा रामनगर इन दिनों सूना पड़ा है, लॉकडाउन के कारण यहां पर्यटकों की आवाजाही पूरी तरह से बंद है, ऐसे में ईटीवी भारत ने दिखा रहा कि बिना पर्यटकों के प्रदेश की धरोहर कैसी नजर आ रही हैं.

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सूनी पड़ी महल अटारी
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Published : May 26, 2020, 5:44 PM IST

मंडला। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर 1651 में राजा हृदय शाह ने आलीशान महल बनवाया था, जिसका नाम 'मोती महल' रखा गया. वहीं अपने मंत्री के लिए एक खूबसूरत कोठी भी बनवाई, जिसे 'राय भगत की कोठी' कहा जाता है. बमुश्किल एक किलोमीटर के फासले में बने ये महल गोंड कालीन निर्माण का वह नमूना है, जो गढ़ा मंडला के समृद्धशाली इतिहास का गवाह है. रामनगर गोंड राजाओं की राजधानी थी और नर्मदा नदी के तट पर बसाई गई थी यहां इस इतिहास के साथ ही निर्माण कला से रूबरू होने बड़ी संख्या में सैलानियों के आना होता था, लेकिन अब ये महल एक बार फिर सूने हैं, क्योंकि लॉकडाउन के चलते अब यहां कोई नहीं आ रह.

सन्नाटे में कैसा दिखता है रामनगर
16वीं शताब्दी में गोंड राजाओं की बनी राजधानी

16वीं शताब्दी में धीरे-धीरे मुगलों के बढ़ते आतंक के चलते गोंड राजाओं का राज्य सीमित होता जा रहा था और जबलपुर में राजा अपने राज्य के विस्तार को कम करते जा रहे थे, ऐसे में नरसिंहपुर चौरागढ़ से गोंड राजाओं ने अपनी राजधानी को मंडला के पास रामनगर में नर्मदा के किनारे बसाने का सोचा और सारा राजपाट लेकर रामनगर आ गए. इस दौरान रामनगर में राजाओं के द्वारा कई आलीशान निर्माण कराए गए, इनमें महल, बावड़ी और मंदिर शामिल थे. जब रामनगर को राजधानी बनाया गया उस समय राजा हृदयशाह का शासन था, जिन्होंने से रामनगर में अपने रहने के लिए मोती महल का निर्माण कराया जो कि बेहद आकर्षक है. इसके अलावा राय भगत की कोठी और दल बादल या आलीशान रानी महल समृद्धशाली गोंड राजाओं की गौरव गाथा कहते हैं.

रामनगर में सैलानी गर्मियों के मौसम में इन महलों, कोठियों को निहारने आते हैं, इतिहास प्रेमियों का भी इन शानदार इमारतों को देखने के लए बड़ी संख्या में यहां आना जाना रहता है, इसका मुख्य कारण कान्हा राष्ट्रीय उद्यान पीक टाइम भी है और गर्मियों की छुट्टियों में लोग अक्सर ऐसी ही जगह घूमने के लिए जाते हैं.

मोती महल


मोती महल के उत्तर में नर्मदा नदी बहती है तो दक्षिण में घने जंगल हैं एक तरफ कालापहाड़ है तो दूसरी तरफ चौगान जैसा आदिवासियों का तीर्थ स्थान मौजूद है. मोती महल को रानी महल भी कहा जाता है जो आयताकार है और इसमें 40 मीटर एक चौड़ा आंगन भी है, जिसके बीच में बना सरोवर मोती महल की खूबसूरती में चार चांद लगाता है. पूरा महल अंदर पत्थरों से बना हुआ है, जिन्हें चूने, रेत, गुड़, चकेडे के बीज,उड़द की दाल के विशेष गारे की मदद से जोड़ा गया है. ये महल तीन स्तरों में बनाया गया था, जिसमें सबसे नीचे पत्थरों की जुड़ाई है तो ऊपर ईंट की जुड़ाई भी मिलती है. इस भवन के अंदर 1000 सैनिकों के ठहरने की व्यवस्था थी. प्रथम मंजिल पर महिलाओं का निवास स्थल था. इस महल को पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लिया है और कुछ मरम्मत कराने के बाद के और भी आकर्षक हो गया है.

मजबूती और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना


दूसरे अन्य महलों की तरह इसमें ज्यादा नक्काशी तो नहीं की गई है लेकिन जितनी भी है, उसमें मुगल के साथ ही गोंड कालीन कलाकारी की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. इसके मुंडेर जहां चौकोर आकृतियों के प्रयोग कर बनाए गए, वहीं इसकी सीढ़ियों को काफी संकरा रखा गया था लेकिन महल की मजबूती इतनी है कि यह आज भी अच्छी हालत में शान से खड़ा है.

आदिवासी समाज के लिए रामनगर का बड़ा महत्व है, इसके करीब ही चौगान की मढ़िया (आदिवासियों का तीर्थ) के साथ ही गौंड राजाओं के द्वारा कराए गए आधा दर्जन आलीशान निर्माण और कुछ किलोमीटर दूर कालापहाड़ नामक पत्थरों का पहाड़ मंडला आने वालों को खासा आकर्षित करता है. लेकिन राजपाट जाने के बाद जिस तरह इन महलों में खामोशी का आलम पसर गया था वो एक बार फिर देखा जा रहा है. महल के गेट और मुख्य दरवाजों पर ताले लटके हुए हैं और अब न इतिहास के चाहने वाले, ईमारतों की खूबसूरती निहारने वाले और न ही खुद को गौंड राजाओं का वंशज मान कर गौरान्वित होने वाले लोग यहां आ पा रहे हैं. कोरोना के चलते लॉकडाउन ने यहां सब कुछ शांत सा कर दिया है.

मंडला। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर 1651 में राजा हृदय शाह ने आलीशान महल बनवाया था, जिसका नाम 'मोती महल' रखा गया. वहीं अपने मंत्री के लिए एक खूबसूरत कोठी भी बनवाई, जिसे 'राय भगत की कोठी' कहा जाता है. बमुश्किल एक किलोमीटर के फासले में बने ये महल गोंड कालीन निर्माण का वह नमूना है, जो गढ़ा मंडला के समृद्धशाली इतिहास का गवाह है. रामनगर गोंड राजाओं की राजधानी थी और नर्मदा नदी के तट पर बसाई गई थी यहां इस इतिहास के साथ ही निर्माण कला से रूबरू होने बड़ी संख्या में सैलानियों के आना होता था, लेकिन अब ये महल एक बार फिर सूने हैं, क्योंकि लॉकडाउन के चलते अब यहां कोई नहीं आ रह.

सन्नाटे में कैसा दिखता है रामनगर
16वीं शताब्दी में गोंड राजाओं की बनी राजधानी

16वीं शताब्दी में धीरे-धीरे मुगलों के बढ़ते आतंक के चलते गोंड राजाओं का राज्य सीमित होता जा रहा था और जबलपुर में राजा अपने राज्य के विस्तार को कम करते जा रहे थे, ऐसे में नरसिंहपुर चौरागढ़ से गोंड राजाओं ने अपनी राजधानी को मंडला के पास रामनगर में नर्मदा के किनारे बसाने का सोचा और सारा राजपाट लेकर रामनगर आ गए. इस दौरान रामनगर में राजाओं के द्वारा कई आलीशान निर्माण कराए गए, इनमें महल, बावड़ी और मंदिर शामिल थे. जब रामनगर को राजधानी बनाया गया उस समय राजा हृदयशाह का शासन था, जिन्होंने से रामनगर में अपने रहने के लिए मोती महल का निर्माण कराया जो कि बेहद आकर्षक है. इसके अलावा राय भगत की कोठी और दल बादल या आलीशान रानी महल समृद्धशाली गोंड राजाओं की गौरव गाथा कहते हैं.

रामनगर में सैलानी गर्मियों के मौसम में इन महलों, कोठियों को निहारने आते हैं, इतिहास प्रेमियों का भी इन शानदार इमारतों को देखने के लए बड़ी संख्या में यहां आना जाना रहता है, इसका मुख्य कारण कान्हा राष्ट्रीय उद्यान पीक टाइम भी है और गर्मियों की छुट्टियों में लोग अक्सर ऐसी ही जगह घूमने के लिए जाते हैं.

मोती महल


मोती महल के उत्तर में नर्मदा नदी बहती है तो दक्षिण में घने जंगल हैं एक तरफ कालापहाड़ है तो दूसरी तरफ चौगान जैसा आदिवासियों का तीर्थ स्थान मौजूद है. मोती महल को रानी महल भी कहा जाता है जो आयताकार है और इसमें 40 मीटर एक चौड़ा आंगन भी है, जिसके बीच में बना सरोवर मोती महल की खूबसूरती में चार चांद लगाता है. पूरा महल अंदर पत्थरों से बना हुआ है, जिन्हें चूने, रेत, गुड़, चकेडे के बीज,उड़द की दाल के विशेष गारे की मदद से जोड़ा गया है. ये महल तीन स्तरों में बनाया गया था, जिसमें सबसे नीचे पत्थरों की जुड़ाई है तो ऊपर ईंट की जुड़ाई भी मिलती है. इस भवन के अंदर 1000 सैनिकों के ठहरने की व्यवस्था थी. प्रथम मंजिल पर महिलाओं का निवास स्थल था. इस महल को पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लिया है और कुछ मरम्मत कराने के बाद के और भी आकर्षक हो गया है.

मजबूती और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना


दूसरे अन्य महलों की तरह इसमें ज्यादा नक्काशी तो नहीं की गई है लेकिन जितनी भी है, उसमें मुगल के साथ ही गोंड कालीन कलाकारी की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. इसके मुंडेर जहां चौकोर आकृतियों के प्रयोग कर बनाए गए, वहीं इसकी सीढ़ियों को काफी संकरा रखा गया था लेकिन महल की मजबूती इतनी है कि यह आज भी अच्छी हालत में शान से खड़ा है.

आदिवासी समाज के लिए रामनगर का बड़ा महत्व है, इसके करीब ही चौगान की मढ़िया (आदिवासियों का तीर्थ) के साथ ही गौंड राजाओं के द्वारा कराए गए आधा दर्जन आलीशान निर्माण और कुछ किलोमीटर दूर कालापहाड़ नामक पत्थरों का पहाड़ मंडला आने वालों को खासा आकर्षित करता है. लेकिन राजपाट जाने के बाद जिस तरह इन महलों में खामोशी का आलम पसर गया था वो एक बार फिर देखा जा रहा है. महल के गेट और मुख्य दरवाजों पर ताले लटके हुए हैं और अब न इतिहास के चाहने वाले, ईमारतों की खूबसूरती निहारने वाले और न ही खुद को गौंड राजाओं का वंशज मान कर गौरान्वित होने वाले लोग यहां आ पा रहे हैं. कोरोना के चलते लॉकडाउन ने यहां सब कुछ शांत सा कर दिया है.

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