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स्कूल में झाड़ू लगाने को मजबूर नौनिहाल, लेटलतीफी शिक्षक दे रहे नैतिक शिक्षा का ज्ञान

मंडला जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर मारार टोला प्राथमिक शाला के बच्चे यहां रोज कक्षाओं में झाड़ू लगाते हैं और मध्यान भोजन करने के बाद थालियां भी खुद साफ करते हैं. वहीं स्कूल हमेशा देर से पहुंचने वाले शिक्षक बेशर्म हो कर इसे नैतिक शिक्षा बता रहे हैं.

स्कूल में झाड़ू लगाने को मजबूर छात्र
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Published : Sep 19, 2019, 6:35 PM IST

मंडला। जहां राज्य और केंद्र सरकार शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई अभियान चला रही और लाखों रुपये खर्च कर रही लेकिन सरकारी स्कूल में शिक्षा का बंटाधार हो रहा है. मंडला जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर मारार टोला स्कूल के बच्चे यहां रोज कक्षाओं में झाड़ू लगाते हैं और मध्यान भोजन करने के बाद थालियां भी खुद साफ करते हैं. वहीं स्कूल हमेशा देर से पहुंचने वाले शिक्षक बेशर्म हो कर इसे नैतिक शिक्षा बता रहे हैं.

स्कूल में झाड़ू लगाने को मजबूर छात्र

माधोपुर पंचायत के मारार टोला गांव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक हमेशा साढ़े दस बजे के बाद स्कूल आते हैं और समय से पहले ही चले जाते है तब तक नौनिहाल ताला लगे स्कूल के बाहर यहां- वहां घूमते रहते हैं. स्कूल का ताला खुलते ही नौनिहाल सबसे पहले तीनों कमरों में झाड़ू लगाते हैं और फिर कचरे को बाहर फेंक कर फर्स में फट्टी बिछा कर बैठते है. इतनी जद्दोजहद के बाद बच्चों को तालीम मिलती है.

स्कूल में बच्चों से झाड़ू लगवाने के बारे में जब शिक्षकों से बात की गई तो उनका कहना है यह नैतिक शिक्षा का हिस्सा है. जिसमें झाड़ू के साथ ही स्कूल की साफ सफाई बच्चों से रोज पूरे सत्र में कराई जाती है. वहीं बताया कि मध्यान्ह भोजन करने के बाद हैंडपंप पर बच्चे थाली भी खुद साफ करते है और रसोईया सिर्फ खाना बनाने वाले बर्तन साफ करते हैं.

वहीं अभिभावकों का कहना है कि यह हमेशा का ही रवैया है और इस स्कूल में पढ़ाई भी ऐसी होती है कि यहां के बच्चों को दूसरे स्कूल में मुश्किल से दाखिला मिल पाता है. बता दें कि पहली से पांचवीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में कुल 4 शिक्षक है जबकि कोई भी प्यून नहीं है. सवाल उठता है कि ऐसे में बच्चों के द्वारा नैतिक शिक्षा के नाम पर झाड़ू लगवाना और बर्तन साफ करवाना कितना जायज है. क्या देश का नौनिहाल स्कूल में शिक्षा लेने नहीं बल्कि मजदूरी करने आता है.

मंडला। जहां राज्य और केंद्र सरकार शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई अभियान चला रही और लाखों रुपये खर्च कर रही लेकिन सरकारी स्कूल में शिक्षा का बंटाधार हो रहा है. मंडला जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर मारार टोला स्कूल के बच्चे यहां रोज कक्षाओं में झाड़ू लगाते हैं और मध्यान भोजन करने के बाद थालियां भी खुद साफ करते हैं. वहीं स्कूल हमेशा देर से पहुंचने वाले शिक्षक बेशर्म हो कर इसे नैतिक शिक्षा बता रहे हैं.

स्कूल में झाड़ू लगाने को मजबूर छात्र

माधोपुर पंचायत के मारार टोला गांव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक हमेशा साढ़े दस बजे के बाद स्कूल आते हैं और समय से पहले ही चले जाते है तब तक नौनिहाल ताला लगे स्कूल के बाहर यहां- वहां घूमते रहते हैं. स्कूल का ताला खुलते ही नौनिहाल सबसे पहले तीनों कमरों में झाड़ू लगाते हैं और फिर कचरे को बाहर फेंक कर फर्स में फट्टी बिछा कर बैठते है. इतनी जद्दोजहद के बाद बच्चों को तालीम मिलती है.

स्कूल में बच्चों से झाड़ू लगवाने के बारे में जब शिक्षकों से बात की गई तो उनका कहना है यह नैतिक शिक्षा का हिस्सा है. जिसमें झाड़ू के साथ ही स्कूल की साफ सफाई बच्चों से रोज पूरे सत्र में कराई जाती है. वहीं बताया कि मध्यान्ह भोजन करने के बाद हैंडपंप पर बच्चे थाली भी खुद साफ करते है और रसोईया सिर्फ खाना बनाने वाले बर्तन साफ करते हैं.

वहीं अभिभावकों का कहना है कि यह हमेशा का ही रवैया है और इस स्कूल में पढ़ाई भी ऐसी होती है कि यहां के बच्चों को दूसरे स्कूल में मुश्किल से दाखिला मिल पाता है. बता दें कि पहली से पांचवीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में कुल 4 शिक्षक है जबकि कोई भी प्यून नहीं है. सवाल उठता है कि ऐसे में बच्चों के द्वारा नैतिक शिक्षा के नाम पर झाड़ू लगवाना और बर्तन साफ करवाना कितना जायज है. क्या देश का नौनिहाल स्कूल में शिक्षा लेने नहीं बल्कि मजदूरी करने आता है.

Intro:मण्डला जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर मारार टोला प्राथमिक शाला के बच्चे यहाँ रोज कक्षाओं में झाड़ू लगाते है और मध्यान भोजन करने के बाद थालियां भी खुद साफ करते हैं वहीं स्कूल टाइम से हमेसा देर से पहुँचने वाले शिक्षक इसे नैतिक शिक्षा बता रहे हैं


Body:माधोपुर पंचायत के मारार टोला गाँव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक हमेसा साढ़े दस बजे के बाद स्कूल आते हैं और समय से पहले ही चले जाते है तब तक स्कूली नंन्हे मुन्ने बच्चे ताला लगे स्कूल के बाहर यहाँ वहाँ घूमते रहते हैं इसके बाद सिलसिला शुरू होता है शिक्षकों के आने का जिन्होंने अपने स्कूल की घड़ी को पीछे कर रखा है और सवाल पूछने पर उस घड़ी का समय दिखा देते हैं स्कूल का ताला खुलते ही जबाबदारी शुरू होती है नौनिहालों की जो सबसे पहले तीनों कमरों में झाड़ू लगाते हैं और फिर कचरे को बाहर फेंक कर फर्स में फट्टी बिछाई भी उन्हीं के द्वारा बिछाई जाती है इसके बाद प्रार्थना होती है और फिर पढाई के साथ ही शिक्षकों के आने का सिलसिला चलता रहता है,स्कूल में बच्चों से झाड़ू लगवाने के बारे में जब शिक्षकों से बात की गई तो उनका कहना है यह नैतिक शिक्षा का हिस्सा है जिसमें झाड़ू के साथ ही स्कूल की साफ सफाई बच्चों से रोज पूरे सत्र में कराई जाती है वहीं उन्होंने खुद ही बताया कि मध्यान्ह भोजन करने के बाद हैंडपंप लेजाकर बच्चे थाली भी खुद साफ करते है और रसोईया सिर्फ खाना बनाने वाले बर्तन साफ करते हैं,वहीं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के पालकों का कहना है की यह हमेसा का ही रवैया है और इस स्कूल में पढ़ाई भी ऐसी होती है कि यहाँ के बच्चों को दूसरे स्कूल में मुश्किल से दाखिला मिल पाता है


Conclusion:पहली से पाँचवी तक इस स्कूल में कुल 4 शिक्षक है जबकि कोई भी प्यून नहीं है ऐसे में बच्चों के द्वारा नैतिक शिक्षा के नाम पर झाड़ू लगवाना और बर्तन साफ करवाना कितना जायज है यह तो सरकारी तंत्र ही जाने लेकिन इन पालकों का गुस्सा जरूर बिना कारण नहीं,बाहर घूमते फिरते मासाब का इंतजार करते बच्चे स्कूल समय पर खुले तब ही सुरक्षित समझे जाएँगे।

बाईट--कमलेश भाँवरें,पालक
बाईट--रज्जू लाल,पालक
बाईट--कन्हैया पटेल,शिक्षक,प्रा शा मरारटोला
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