मंडला। लॉकडाउन के चलते शादियों में बैंड बजाने वाली पार्टियों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. लॉकडाउन उन परिवारों पर कहर बन कर टूटा है जो मार्च-अप्रैल के महीने की कमाई से सारे साल गुजारा करते थे. इस बार ना बारात है ना बाजा और ना ही शहनाई ऐसे में इन बैंड बाजा वालों पर लॉकडाउन के चलते जीवन यापन का खतरा मंडरा रहा है, कभी एक सीजन में लाखों कमाने वाले आज बोहनी को तरस रहे हैं.
एक बैंड पार्टी से चलते हैं 25 से 30 परिवार
जिले में रहने वाले संजय वंशकार का परिवार पीढ़ियों से बैंड बाजे का ही काम करता है और इनकी महेश बैंड पार्टी में 30 सदस्य हैं, जिनका परिवार अप्रैल और मई माह में हुई कमाई से पूरे साल भर का खर्चा जुटाता था लेकिन एक शादी में 25 हज़ार रुपए तक कमा वाले इस सीजन में करीब 50 शादियों की बुकिंग कैंसिल हो गयी और बैंड पार्टी के सदस्य एक-एक पैसे के लिए मोहताज हैं.
बैंड-बाजे पर निर्भर, कैसे भरें पेट
बैंड पार्टी में बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ती है. उन्हें बैंड बजाना सिखाने से लेकर बीन पर नई-नई धुन निकालने के अभ्यास के बाद ब्रास बैंड के लिए मेंम्बर तैयार होते हैं जो कोई और रोजगार नहीं करते और पूरी तरह से बैंड बाजा की कमाई पर ही निर्भर रहते हैं और ऐसे सभी सदस्यों के पास आज कमाई का कोई और जरिया नहीं इसलिए बैंड पार्टी के मुखिया की मुसीबत बढ़ गयी कि वे खुद का पेट पालें या सदस्यों की मदद करें.
कभी गूंजती थी नई धुन आज पसरा सन्नाटा
हर शहर या गांव मे बैंड वालों का एक अलग ही मोहल्ला होता है और इनके मोहल्ले में इस सीजन नए गानों की नई-नई धुन छेड़ते अक्सर दिखाई देते थे. लेकिन आज उन सभी दुकानों में लॉकडाउन के चलते ताले लटके हैं और गानों से गूंजने वाली गलियां सूनी पड़ी हैं.
फिर भी दे रहे देश का साथ
भले ही इन दिनों बैंड-बाजा वालों के घरों में चूल्हा जलाना भी मुश्किल हो रहा हो लेकिन देश की आपदा की इस घड़ी में साथ देने के लिए यह भी तत्पर हैं. इन लोगों का कहना है कि भले पेट में पत्थर बांधना पड़े लेकिन जब देश पर आपदा आई है तो उसका मुकाबला हम सबको मिलकर करना पड़ेगा. इस सीजन ना सही अगले सीजन ही सही फिर गूंजेगी शहनाई, बजेंगे बैंड और निकलेगी बारात.