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बीतता साल किसान आज भी बेहाल, सिर्फ वादों में रह गई कर्जमाफी - बीजेपी

बीतता साल 2019 किसानों के लिए बदहाली का साल रहा. चाहे वह प्रकृति की मार हो या फिर शासन प्रशासन का किसानों के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया.

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बीतता साल किसान आज भी बेहाल
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Published : Dec 27, 2019, 12:52 PM IST

मंडला। 2019 का साल बीत रहा है, लेकिन इस साल की बात करें तो किसानों के लिए यह साल कुछ खास अच्छा नहीं रहा. पहले मानसून में देरी फिर बोआई के बाद सावन में सूखा और फिर अतिवृष्टि के बाद खड़ी फसलों का नुकसान. इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच दलों की नूरा कुश्ती, सोसायटी पर खाद बीज की लाइन, धान खरीदी में देरी, समय पर भुगतान का न होना. इन सभी समस्याओं ने किसानों पर खूब सितम ढ़ाया है.

बीतता साल किसान आज भी बेहाल

पहले विधानसभा और फिर साल के शुरुआत में लोकसभा के चुनाव किसानों से लोकलुभावन वादे, किसी ने कहा कि कर्जा माफ होगा तो किसी ने किसानों के द्वारा खरीदी केन्द्रों में बेची जाने वाली उपज के मूल्य बढ़ाने से लेकर बोनस तक की बात कही, किसी ने बिजली मुफ्त में देने का वादा किया तो कोई दल किसानों को मिलने वाले फसल नुकसान की राहत राशि प्रति हैक्टेयर बढ़ाने की बात कर सत्ता में काबिज हो गए, लेकिन किसानों को मिला आश्वासन. नेताओं द्वारा किए वादों ने उन्हे सत्ता पर तो बैठा दिया, लेकिन किसानों की हालत बद से बदतर हो गई. चाहे वह केंद्र पर बैठी बीजेपी हो या फिर प्रदेश की कमलनाथ सरकार.

प्रकृति के कहर से तो किसान फिर भी उभर गया लेकिन शासन और प्रशासन ने जो किसानों पर जो कहर बरसाया है वह जख्म भरने का नाम नहीं ले रहा है. 2019 ने किसानों को वो रंग भी दिखाए की जिनकी भूमि सिंचित है उसे असिंचित घोषित कर किसानों से प्रति एकड़ 5 क्विंटल कम धान खरीदी जा रही और धान के परिवहन में भी देरी ने बेची हुई फसल के भुगतान के इंतजार को और बढ़ा दिया, लेकिन केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार दोनों ही अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे. लगातार एक दूसरे के खिलाफ धरने प्रदर्शन और आंदोलन कर यह जताते रहे और अपने आप किसानों के बड़े हिमायती बताने का प्रयास करते रहे. पार्टियों और नेताओं की नूराकुश्ती और बयान बाजी से किसानों को कितना लाभ मिला यह तो नहीं पता, लेकिन अन्नदाताओं के माथे पे खीचीं हुई चिंता की लकीर साफ देखी जा सकती है.

प्रदेश की सरकार का कहना है कि केन्द्र की सरकार भेदभाव कर रही है और प्रदेश को पैसे ही नहीं दे रही. वहीं केंद्र सरकार की दलील है कि पहले आप हिसाब तो दो की आखिर पैसा चाहिए किस लिए. ऐसे में परेशान है तो बस किसान जिसे है इस बात का इंतजार है की शायद नया साल उनके लिए खुशहाली का सबेरा लेकर आए.

मंडला। 2019 का साल बीत रहा है, लेकिन इस साल की बात करें तो किसानों के लिए यह साल कुछ खास अच्छा नहीं रहा. पहले मानसून में देरी फिर बोआई के बाद सावन में सूखा और फिर अतिवृष्टि के बाद खड़ी फसलों का नुकसान. इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच दलों की नूरा कुश्ती, सोसायटी पर खाद बीज की लाइन, धान खरीदी में देरी, समय पर भुगतान का न होना. इन सभी समस्याओं ने किसानों पर खूब सितम ढ़ाया है.

बीतता साल किसान आज भी बेहाल

पहले विधानसभा और फिर साल के शुरुआत में लोकसभा के चुनाव किसानों से लोकलुभावन वादे, किसी ने कहा कि कर्जा माफ होगा तो किसी ने किसानों के द्वारा खरीदी केन्द्रों में बेची जाने वाली उपज के मूल्य बढ़ाने से लेकर बोनस तक की बात कही, किसी ने बिजली मुफ्त में देने का वादा किया तो कोई दल किसानों को मिलने वाले फसल नुकसान की राहत राशि प्रति हैक्टेयर बढ़ाने की बात कर सत्ता में काबिज हो गए, लेकिन किसानों को मिला आश्वासन. नेताओं द्वारा किए वादों ने उन्हे सत्ता पर तो बैठा दिया, लेकिन किसानों की हालत बद से बदतर हो गई. चाहे वह केंद्र पर बैठी बीजेपी हो या फिर प्रदेश की कमलनाथ सरकार.

प्रकृति के कहर से तो किसान फिर भी उभर गया लेकिन शासन और प्रशासन ने जो किसानों पर जो कहर बरसाया है वह जख्म भरने का नाम नहीं ले रहा है. 2019 ने किसानों को वो रंग भी दिखाए की जिनकी भूमि सिंचित है उसे असिंचित घोषित कर किसानों से प्रति एकड़ 5 क्विंटल कम धान खरीदी जा रही और धान के परिवहन में भी देरी ने बेची हुई फसल के भुगतान के इंतजार को और बढ़ा दिया, लेकिन केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार दोनों ही अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे. लगातार एक दूसरे के खिलाफ धरने प्रदर्शन और आंदोलन कर यह जताते रहे और अपने आप किसानों के बड़े हिमायती बताने का प्रयास करते रहे. पार्टियों और नेताओं की नूराकुश्ती और बयान बाजी से किसानों को कितना लाभ मिला यह तो नहीं पता, लेकिन अन्नदाताओं के माथे पे खीचीं हुई चिंता की लकीर साफ देखी जा सकती है.

प्रदेश की सरकार का कहना है कि केन्द्र की सरकार भेदभाव कर रही है और प्रदेश को पैसे ही नहीं दे रही. वहीं केंद्र सरकार की दलील है कि पहले आप हिसाब तो दो की आखिर पैसा चाहिए किस लिए. ऐसे में परेशान है तो बस किसान जिसे है इस बात का इंतजार है की शायद नया साल उनके लिए खुशहाली का सबेरा लेकर आए.

Intro:2019 का साल बीत रहा है लेकिन शुरुआत से लेकर जाते हुए भी यह साल किसानों के लिए जरा सी भी राहत लेकर नहीं आया,पहले मानसून में देरी फिर बोआई के बाद सावन में सूखा और फिर अतिवृष्टि के बाद खड़ी फसलों का नुकसान ऊपर से केंद्र और राज्य सरकार के बीच दलों की नूराकुश्ती, सोसायटी पर खाद बीज की लाइन,धान खरीदी में देरी,समय पर भुगतान का न होना ये सब समस्याएं जहाँ किसानों को रहीं वहीं पार्टियों ने भी जम कर इन्हें मुद्दा बना कर आरोप प्रत्यारोप में शह और मात का खेल खेला


Body:पहले विधानसभा और फिर साल के शुरुआत में लोकसभा के चुनाव किसानों से लोकलुभावन वादे,किसी ने कहा कि कर्जा माफ होगा तो किसी ने किसानों के द्वारा खरीदी केन्द्रों में बेची जाने वाली उपज के संररहन मूल्य बढाने से लेकर बोनस तक कि बात कही कोई बिजली मुफ्त में देने का वादा किया तो कोई दल किसानों को मिलने वाले फसल नुकसान की राहत राशि प्रति हैक्टेयर बढाने की बात कर सत्ता में काबिज हो गए लेकिन किसानों को जो मिला वह अन्नदाता ही जानता है,पहले तो मानसून देर से आया और बोई गई फसल ही न उगी तो दोबारा बोआई की मार फिर फसल ऊगी तो बीच सावन में वरुण देवता रूठ गए जिससे धान और मक्का के साथ ही खरीफ की दलहन सूख गई,करीब महीने भर बूंद बूंद को तरसाने वाले मेघा फिर ऐसे बरसे की पानी खेतों में न समाया और खड़ी फसल को बहा ले गया नदियों तक जो बची तो ज्यादा पानी मे गल गयी और यहीं से शुरू हुई राजनैतिक दलों की वो शियासत जिसमें बस यही बताने की कोशिश की हम किसानों के ज्यादा हिमायती हैं,फसल में हुई नुकासनी का जैसे तैसे सर्वे हुआ लेकिन रबी की फसल बुआई तक भुगतान नहीं हुआ और पहले ही नुकसान झेल रहे किसानों के पास कर्ज लेकर दूसरी फसल बोने के अलावा कोई चारा न रहा,लेकिन मुसीबत कम न हुई और पहली बार किसान सोसाइटियों में खाद के लिए लाइन में लगा दिखाई देने लगा,दूसरी तरफ खरीफ की फसल धान मक्के की खरीदी भी इतनी देर से चालू हुई कि तब तक मजबूरी में ओने पौने दाम पर किसान अपनी फसल व्यापारियों को बेच चुका था,2019 ने किसानों को वो रंग भी दिखाए की जिनकी भूमि सिंचित है उसे असिंचित घोषित कर किसानों से प्रति एकड़ 5 किवंटल कम धान खरीदी जा रही और धान के परिवहन में भी देरी ने बेची हुई फसल के भुगतान के इंतजार को और बढ़ा दिया,लेकिन केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार दोनों ही अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे और लगातार एक दूसरे के खिलाफ धरने प्रदर्शन और आंदोलन कर यह जताते रहे कि हम किसानों के बड़े हिमायती हैं पार्टियों और नेताओं की नूराकुश्ती और बयान बाजी से किसानों को कितना लाभ मिला यह तो नहीं पता लेकिन अन्नदाताओं के माथे पे खींची हुई चिंता की लकीर आज भी साफ देखी जा सकती है और वह अब भी बस गुहार ही लगा रहा है


Conclusion:प्रदेश की सरकार का कहना है कि केन्द्र की सरकार भेदभाव कर रही और प्रदेश को पैसे ही नहीं दे रही वहीं केंद्र सरकार की दलील है कि पहले आप हिसाब तो दो की आखिर पैसा चाहिए किस लिए और कितना,ऐसे में परेशान है तो बस किसान जिसे है इस बात का इंतजार की शायद नया साल उनके लिए खुशहाली का सबेरा लेकर आए।

बाईट--किसान
बाईट--राकेश खम्परिया,प्रभरी भूअधिलेख अधिकारी
बाईट--अशोक मर्सकोले,सत्ताधारी विधयक
बाईट--फग्गनसिंह कुलस्ते केंद्रीय मंत्री
पीटूसी--मयंक तिवारी संवददाता मण्डला
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