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'मियावाकी तकनीक' से ग्लोबल वार्मिंग को चुनौती देने की तैयारी, पौधरोपण शुरू - जापानी तकनीक

एक साल में तीन साल और तीन साल में दस साल की ग्रोथ वाली मियावाकी पद्धति से ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की तैयारी की जा रही है. इसी पद्धति के जरिए खरगोन में पौधरोपड़ शुरू किया गया है.

ग्लोबल वार्मिंग को चुनौती देने की तैयारी
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Published : Jul 23, 2019, 4:34 PM IST

खरगोन। ग्लोबल वार्मिंग से जूझती धरती को बचाने के लिए पेड़-पौधों और जंगल को सहेजना बहुत जरूरी है. जिस पर अमल करते हुए खरगोन जिले में जापानी तकनीक वाली मियावाकी पद्धति के जरिए पौधरोपण किया जा रहा है.
नगर पालिका के नव ग्रह मेला ग्राउंड पर जिले में वनों को बढ़ाने के लिए कलेक्टर गोपाल चन्द्र डाड़ ने त्रिवेणी रोपकर 'मियावाकी पद्धति' को हरी झंडी दिखाई. शुरूआत में 25 हजार पौधे लगाए जा रहे हैं. इस पद्धति में 100 वर्ग मीटर में 700 से 800 पौधे त्रिवेणी क्रम में लगाए जाते हैं. जिसमें सबसे पहले छोटा फिर मध्यम और फिर बड़ा पौधा रोपा जाता है, इस तकनीक से पौधे तीन गुना तेजी से वृद्धि करते हैं.

इस पद्धति के महंगे होने के चलते पहले एनवीडीए के इंजीनियरों ने इसका टेस्टिंग किया, जिसमें एक वर्ष में पौधों की 3 वर्ष की ग्रोथ मिली. एक साल में 3 साल और 3 साल में दस साल की ग्रोथ देने वाली इस पद्धति में गोमूत्र, गाय के गोबर और गुड़ के घोल का प्रयोग किया जाता है.

मियावाकी पद्धति के जरिए कम जगह में ज्यादा प्लांट लगा सकते हैं. ईटीवी भारत ने सबसे पहले इस पद्धति के बारे में खबर प्रकाशित की थी.

खरगोन। ग्लोबल वार्मिंग से जूझती धरती को बचाने के लिए पेड़-पौधों और जंगल को सहेजना बहुत जरूरी है. जिस पर अमल करते हुए खरगोन जिले में जापानी तकनीक वाली मियावाकी पद्धति के जरिए पौधरोपण किया जा रहा है.
नगर पालिका के नव ग्रह मेला ग्राउंड पर जिले में वनों को बढ़ाने के लिए कलेक्टर गोपाल चन्द्र डाड़ ने त्रिवेणी रोपकर 'मियावाकी पद्धति' को हरी झंडी दिखाई. शुरूआत में 25 हजार पौधे लगाए जा रहे हैं. इस पद्धति में 100 वर्ग मीटर में 700 से 800 पौधे त्रिवेणी क्रम में लगाए जाते हैं. जिसमें सबसे पहले छोटा फिर मध्यम और फिर बड़ा पौधा रोपा जाता है, इस तकनीक से पौधे तीन गुना तेजी से वृद्धि करते हैं.

इस पद्धति के महंगे होने के चलते पहले एनवीडीए के इंजीनियरों ने इसका टेस्टिंग किया, जिसमें एक वर्ष में पौधों की 3 वर्ष की ग्रोथ मिली. एक साल में 3 साल और 3 साल में दस साल की ग्रोथ देने वाली इस पद्धति में गोमूत्र, गाय के गोबर और गुड़ के घोल का प्रयोग किया जाता है.

मियावाकी पद्धति के जरिए कम जगह में ज्यादा प्लांट लगा सकते हैं. ईटीवी भारत ने सबसे पहले इस पद्धति के बारे में खबर प्रकाशित की थी.

Intro:एंकर
जापानी तकनीक मीकावाकी पद्धति को अपना कर जिले में वनों को बढाया जाएगा। जिसकी शुरुआत नगरपालिका के नवग्रह मेलाग्राउंड पर कलेक्टर गोपालचन्द्र डाड़ ने त्रिवेणी रोपकर की। उल्लेखनीय है कि ईटीवी भारत ने सबसे पहले इस पद्धति के बारे में खबर दिखाई थी।



Body:खरगोन जिले में जापानी पद्धति मीकावाकी पद्धति का उपयोग कर जिले में वनों को बढ़ाया जा सकता है। यह बात कलेक्टर गोपालचंद्र डाड़ ने नगरपालिका खरगोन द्वारा जंगला रोपण कार्यक्रम में पौधा रोपने के बाद कही। कलेक्टर डाड़ ने कहा कि यह एक जैविक ओर महंगी पड़ती है। अभी शुरुआत में 25 हजार पौधे लगाए जा रहे है । धीरे धीरे जिले में इस पद्धति को बढ़ेंगे। जापानी पद्धति का उपयोग में एक सौ वर्ग मीटर में सात सौ से आठ सौ पौधे लगाए जाते है जिसमे पहले छोटा फिर मध्यम ऐसे क्रम में लगाए जाते है। जिससे 3 गुना वृद्धि होती है।
बाइट- गोपालचंद्र डाड़ कलेक्टर

क्या है जापान की मिकावाकी पद्धति
खरगोन के एसडीएम अभषेक गहलोद ने बताया की सबसे पहले हमारे एनवीडीए के इंजीनियरों द्वारा इसका टेस्टिंग किया गया । जिसमें एक वर्ष में पौधों की 5 वर्ष की ग्रोथ मिली है। इसमें सबसे पहले जमीन की खुदाई की फिर काली मिट्टी डाल कर जमीन तैयार कर जीवनामृत घोल जो गाय गोमूत्र ओर गाय के गोबर गुड़ हल्दी से तैयार किया जाता है । उसे डाला जाता है।एक स्क़वेयर मीटर में तीन प्लांट लगाए जाते है। कम जगह में ज्यादा प्लांट लगा सकते है। इसकी ग्रोथ एक साल में3 साल और 3 साल में दस साल की ग्रोथ मिली है।
बाइट- अभषेकसिंह गहलोद एसडीएम


Conclusion:
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