खरगोन : मध्यप्रदेश में कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की पंचायत शुरु हो गई है. खरगोन में हुई पंचायत में भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी शामिल हुए. कक्काजी ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि अडानी-अंबानी ने किसानों को मरा हुआ ढोर समझ रखा है, और ये किसानों का मांस नोच कर खाने के लिए मंडरा रहे हैं.
खरगोन से किसान पंचायत की शुरुआत
भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कक्काजी ने कहा कि किसानों को जागृत करने के लिए किसान पंचायत का प्रदेश में जगह-जगह आयोजन किया जा रहा है. मध्यप्रदेश में इसकी शुरुआत खरगोन से हुई है. इस पंचायत का मकसद केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों की कमियों को किसानों को समझा कर उन्हें जागृत करना है. उन्होंने कहा कि किसान बिकाऊ नहीं टिकाऊ है.
'25 सितंबर को पीएम मोदी को लिखा था पत्र'
कक्काजी ने कहा कि 5 सितंबर को कृषि कानूनों को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया था और हमने 25 सितंबर को पीएम मोदी को पत्र लिख दिया था, जिसमें इस कानून का विरोध करने की बात लिखी थी. इस समस्या का हल सरकार को निकालना है. जब सरकार चाहेगी तभी इसका हल निकल सकेगा.
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'हमारी गांधीवादी विचारधारा'
कक्काजी ने कहा कि हम गांधीवादी विचारधारा को लेकर चल रहे हैं. जिसमें आंदोलन के साथ-साथ सरकार से चर्चा भी की जा रही है, जिस प्रकार गांधीजी आंदोलन के साथ-साथ अंग्रेजों से वार्ता जारी रखते थे, उसी प्रकार हम भी आंदोलन के साथ-साथ सरकार से चर्चा कर रहे हैं.
'दीप सिद्धू बीजेपी का एजेंट'
कक्काजी ने कहा कि जिस दीप सिद्धू ने गणतंत्र दिवस के दिन लालकिले के बाहर तिरंगा फहराया था, उसकी फोटो पीएम मोदी और अमित शाह के साथ है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ दीप सिद्धू की फोटो होना साफ है कि ये सोची-समझी साझिश थी. हमने पुलिस को पहले ही लिखित में सूचना दी थी कि ये किसान नहीं हैं. फिर भी ये लोग बिना पुलिस की मदद से 30 किलोमीटर चलकर लाल किले तक कैसे पहुंचे, फिर भी इस घटना के लिए हम देश से माफी मांगते हैं.
दिल्ली की सीमाओं में किसान आंदोलन जारी
केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को समाप्त करने की मांग को लेकर चल रहे किसानों के विरोध-प्रदर्शन और धरने को 83 दिन बीत चुके हैं, 11वें दौर की बातचीत के बाद भी गतिरोध कायम है. राज्यसभा और लोकसभा में कृषि कानूनों पर चर्चा भी हुई, पीएम मोदी ने जहां किसानों से बातचीत के लिए रास्ते खुले होने का जिक्र किया तो किसान भी बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन समस्या अबतक हल नहीं हो सकी है.