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सर्व पितृ अमावस्या का समापन, शहीद सैनिकों का किया गया पिंड दान - Pitra Visarjan Amavasya

खरगोन में कुन्दा नदी के तट पर भगवान शंकर के मंदिर परिसर में बीते 15 दिनों से गीता गंगा ट्रस्ट द्वारा तर्पण पिंड दान कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था. जिसका समापन गुरुवार को शहीद सैनिकों का पिंड दान कर किया गया.

pind dan for martyr soldiers
शहीद सैनिकों के लिए किया गया पिंड दान
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Published : Sep 17, 2020, 4:36 PM IST

खरगोन। आश्विन माह की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. इस दिन से श्राद्ध समाप्त होते हैं. एक तरह से इस दिन पितृों को विदा कर दिया जाता है. शहर की जीवनदायिनी कुन्दा नदी के तट पर गीता गंगा ट्रस्ट द्वारा शहीद सैनिकों का पिंड दान किया गया.

गीता गंगा ट्रस्ट के पंडित जगदीश ठक्कर ने बताया कि ये 15 दिवसीय आयोजन कुन्दा नदी के तट पर भगवान शंकर के मंदिर परिसर में आयोजित किया गया था. जिसमें लोगों ने अपने पूर्वजों, सगे संबंधियों और शहीद सैनिकों का तर्पण और पिंडदान किया. उन्होंने कहा कि लोगों में भ्रांतियां फैली है कि गया जी में पिंड दान करने के बाद तर्पण और पिंड दान नहीं करना चाहिए. अगर ऐसा होता तो सनातन धर्म की परंपरा खत्म हो चुकी होती. धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कही भी नहीं लिखा है. हमारे पूर्वजों के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है.

सर्व पितृ अमावस्या के दिन भी भोजन बनाकर इसे कौवे, गाय और कुत्ते के लिए निकाला जाता है. ऐसा कहा जाता है कि पितर देव ब्राह्राण और पशु पक्षियों के रूप में अपने परिवार वालों दिया गया तर्पण स्वीकार कर उन्हें आशीरर्वाद देते हैं.

खरगोन। आश्विन माह की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. इस दिन से श्राद्ध समाप्त होते हैं. एक तरह से इस दिन पितृों को विदा कर दिया जाता है. शहर की जीवनदायिनी कुन्दा नदी के तट पर गीता गंगा ट्रस्ट द्वारा शहीद सैनिकों का पिंड दान किया गया.

गीता गंगा ट्रस्ट के पंडित जगदीश ठक्कर ने बताया कि ये 15 दिवसीय आयोजन कुन्दा नदी के तट पर भगवान शंकर के मंदिर परिसर में आयोजित किया गया था. जिसमें लोगों ने अपने पूर्वजों, सगे संबंधियों और शहीद सैनिकों का तर्पण और पिंडदान किया. उन्होंने कहा कि लोगों में भ्रांतियां फैली है कि गया जी में पिंड दान करने के बाद तर्पण और पिंड दान नहीं करना चाहिए. अगर ऐसा होता तो सनातन धर्म की परंपरा खत्म हो चुकी होती. धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कही भी नहीं लिखा है. हमारे पूर्वजों के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है.

सर्व पितृ अमावस्या के दिन भी भोजन बनाकर इसे कौवे, गाय और कुत्ते के लिए निकाला जाता है. ऐसा कहा जाता है कि पितर देव ब्राह्राण और पशु पक्षियों के रूप में अपने परिवार वालों दिया गया तर्पण स्वीकार कर उन्हें आशीरर्वाद देते हैं.

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