खरगोन। कोरोना संकट के बाद किए गए लॉकडाउन ने संस्थागत प्रसव के लक्ष्य को प्रभावित किया है. जिले भर के सरकारी अस्पतालों में होने वाले संस्थागत प्रसव का ग्राफ नीचे गिरा है, क्योंकि वाहनों के परिचालन नहीं होने से गर्भवती पहले की तरह अस्पताल नहीं पहुंच पाई. गांव-कस्बों से सरकारी अस्पताल तक पहुंचने का एकमात्र साधन एंबुलेंस सेवा था, जो सभी को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाया. यही वजह है कि संस्थागत प्रसव में कमी आई है. ईटीवी भारत ने खरगोन जिले की पड़ताल की तो पाया कि कोरोना काल में असंस्थागत प्रसवों की संख्या बढ़ी, जबकि संस्थागत प्रसवों में कमी आई है. इस बात की पुष्टि खुद सीएचएमओ डॉक्टर रजनी डावर ने की है.
कोरोना के मुश्किल दौर में ग्रामीण स्तर के चिकित्सकों को लाभ हो रहा है. जो मरीज जिला अस्पताल तक नहीं पहुंच पा रहे, वे ग्रामीण डॉक्टरों के यहां प्रसव करा रहे हैं. कईयों की परंपरागत तरीके से घर पर ही डिलिवरी हो रही है. हालांकि खरगोन में सालों से दाई के रूप में कार्य कर रही मंगला बताती हैं कि शिक्षा और आय बढ़ने से लोग संस्थागत प्रसव करवाने लगे हैं, पहले हमें सात सौ पचास रूपए महीना मिलता था, लेकिन संस्था गत प्रसव होने से रोजगार भी छिन गया है.
खरगोन जिले में लॉकडाउन के दौरान जून माह में प्रसव के दौरान 15 गर्भवती महिलाओं की मौत भी हुई है. लॉकडाउन के पहले तीन माह में जहां 6 हजार डिलीवरी हुई थीं तो वहीं लॉकडाउन के बाद संस्थागत प्रसव अब तक सिर्फ 17 सौ प्रसव हुए हैं, जबकि अस्संथागत प्रसवों की संख्या एक हजार के करीब हैं. हालांकि डॉक्टरों का मानना है कि अब धीरे-धीरे संस्थागत प्रसवों की संख्या बढ़ेगी.
प्रसव की संख्या बढ़ाने के लिए सुदूर इलाकों में डिलीवरी प्वाइंट बनाए गए हैं. ताकि ग्रामीण क्षेत्र की गर्भवती महिलाओं को जिला अस्पताल तक न आना पड़े और उन्हें गांव के पास ही सुविधा मिल सके. इसके लिए सर्वे का काम भी लगातार किया जा रहा है.