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जलस्तर कम होते ही दिखने लगा तबाही का मंजर, पत्थरों के ढेर में तब्दील हुए कई घाट

खरगोन जिले के ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी का जलस्तर कम होने के साथ ही बाढ़ से मची तबाही का मंजर दिखाई देने लगा है. नर्मदा के कई घाट पत्थरों के ढेर में तब्दील हो गए हैं.

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जलस्तर कम होते ही दिखने लगा तबाही का मंजर
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Published : Sep 6, 2020, 3:16 PM IST

खरगोन। ओंकारेश्वर में नर्मदा का जलस्तर जैसे-जैसे कम हो रहा है. बाढ़ से मची तबाही का मंजर सामने आने लगा है. हालांकि रविवार सुबह सामान्य से करीब 2 मीटर ऊपर नर्मदा का जलस्तर बना हुआ है. बीते दिनों ओंकारेश्वर बांध के 21 गेट से 34 हजार क्यूसेक पानी लगातार छोड़े जाने के बाद बाढ़ से क्षेत्र के लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था.

जलस्तर कम होते ही दिखने लगा तबाही का मंजर

नर्मदा नदी में आई इस बाढ़ का मंजर अब साफ दिखाई देने लगा है. ओंकारेश्वर बांध से छोड़े गए पानी में सैंकड़ों टन मलबा बाढ़ में बहकर ओंकारेश्वर के प्रमुख घाटों पर जमा हो गया है. कई घाट अपना वास्तविक स्वरूप ही खो चुके हैं, तो कई घाटों का पहुंच मार्ग ही गायब हो गया है.

पत्थरों के ढेर में तब्दील हुआ घाट

नर्मदा का जैसे जैसे जल स्तर कम होता जा रहा है, वैसे-वैसे नुकसान ऊभरकर सामने आ रहा है. ओंकारेश्वर के प्रमुख ब्रम्हपुरी घाट पर बांध के निचले क्षेत्र में पड़ा सैकड़ों टन मलबा बहकर घाट पर जमा हो गया है. जिससे संपूर्ण घाट मलबे का नीचे दब गया है. इसी प्रकार नया झुला पुल के नीचे स्थित प्राचीन बिशल्या घाट पर आरसीसी से बना पहुंच मार्ग ही बह गया है, तो वहीं बाणगंगा और कोटितीर्थ घाट पर विशालकाय चट्टानें और भारीभरक पत्थर आकर जमा हो गए हैं. जिससे 40 मीटर लंबा घाट पत्थरों के ढेर में परिवर्तित दिखाई देने लगा है.

30 दुकानें बही, कई जीर्णशीर्ण अवस्था में बता रही अपना अस्तित्व

तबाही का मंजर यहीं खत्म नहीं होता है, नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित कैवलराम और गौमुख घाट पर स्थित पत्थरों से बनी लगभग 30 दुकानें बह गई हैं. वहीं कुछ दुकानें जीर्णशीर्ण अवस्था में खुद ही अपना अस्तित्व बयां कर रही हैं. बाढ़ के बाद मची इस तबाही के मंजर से ओंकारेश्वर आने वाले श्रद्धालुओं की फजीहत होगी. नर्मदा स्नान के लिए एक भी घाट व्यवस्थित नहीं बचा है.

1961 में ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचा था बाढ़ का पानी

नर्मदा नदी में सबसे भयानक बाढ़ साल 1961 में आई थी. जब नर्मदा का जलस्तर समुद्र सतह से 172.200 मीटर ऊपर तक जा पहुंचा था. इस बाढ़ ने खेड़ीघाट, मोरटक्का, कटार में भयानक तबाही मचाई थी. जिसमें कटार गांव तो पूरी तरह बाढ़ की भेंट चढ़ गया था. कटार को 1961 में नर्मदा किनारे से हटाकर ऊपर एक पहाड़ पर बसाया गया था, तो वहीं खेड़ीघाट में भी भारी नुकसान हुआ था.

इसके बाद 1971 में आई बाढ़ में नर्मदा नदी का जलस्तर 171.680 मीटर तक पहुंच गया था. साल 1984 की बाढ़ में 170.640 मीटर, साल 1994 में 170.00 मीटर, साल 2003 में जलस्तर 168.690 मीटर तक पहुंच चुका था. बता दें कि ओंकारेश्वर बांध से पानी छोड़े जाने के बाद ओंकारेश्वर के सभी घाट क्षतिग्रस्त हो गए हैं.

खरगोन। ओंकारेश्वर में नर्मदा का जलस्तर जैसे-जैसे कम हो रहा है. बाढ़ से मची तबाही का मंजर सामने आने लगा है. हालांकि रविवार सुबह सामान्य से करीब 2 मीटर ऊपर नर्मदा का जलस्तर बना हुआ है. बीते दिनों ओंकारेश्वर बांध के 21 गेट से 34 हजार क्यूसेक पानी लगातार छोड़े जाने के बाद बाढ़ से क्षेत्र के लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था.

जलस्तर कम होते ही दिखने लगा तबाही का मंजर

नर्मदा नदी में आई इस बाढ़ का मंजर अब साफ दिखाई देने लगा है. ओंकारेश्वर बांध से छोड़े गए पानी में सैंकड़ों टन मलबा बाढ़ में बहकर ओंकारेश्वर के प्रमुख घाटों पर जमा हो गया है. कई घाट अपना वास्तविक स्वरूप ही खो चुके हैं, तो कई घाटों का पहुंच मार्ग ही गायब हो गया है.

पत्थरों के ढेर में तब्दील हुआ घाट

नर्मदा का जैसे जैसे जल स्तर कम होता जा रहा है, वैसे-वैसे नुकसान ऊभरकर सामने आ रहा है. ओंकारेश्वर के प्रमुख ब्रम्हपुरी घाट पर बांध के निचले क्षेत्र में पड़ा सैकड़ों टन मलबा बहकर घाट पर जमा हो गया है. जिससे संपूर्ण घाट मलबे का नीचे दब गया है. इसी प्रकार नया झुला पुल के नीचे स्थित प्राचीन बिशल्या घाट पर आरसीसी से बना पहुंच मार्ग ही बह गया है, तो वहीं बाणगंगा और कोटितीर्थ घाट पर विशालकाय चट्टानें और भारीभरक पत्थर आकर जमा हो गए हैं. जिससे 40 मीटर लंबा घाट पत्थरों के ढेर में परिवर्तित दिखाई देने लगा है.

30 दुकानें बही, कई जीर्णशीर्ण अवस्था में बता रही अपना अस्तित्व

तबाही का मंजर यहीं खत्म नहीं होता है, नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित कैवलराम और गौमुख घाट पर स्थित पत्थरों से बनी लगभग 30 दुकानें बह गई हैं. वहीं कुछ दुकानें जीर्णशीर्ण अवस्था में खुद ही अपना अस्तित्व बयां कर रही हैं. बाढ़ के बाद मची इस तबाही के मंजर से ओंकारेश्वर आने वाले श्रद्धालुओं की फजीहत होगी. नर्मदा स्नान के लिए एक भी घाट व्यवस्थित नहीं बचा है.

1961 में ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचा था बाढ़ का पानी

नर्मदा नदी में सबसे भयानक बाढ़ साल 1961 में आई थी. जब नर्मदा का जलस्तर समुद्र सतह से 172.200 मीटर ऊपर तक जा पहुंचा था. इस बाढ़ ने खेड़ीघाट, मोरटक्का, कटार में भयानक तबाही मचाई थी. जिसमें कटार गांव तो पूरी तरह बाढ़ की भेंट चढ़ गया था. कटार को 1961 में नर्मदा किनारे से हटाकर ऊपर एक पहाड़ पर बसाया गया था, तो वहीं खेड़ीघाट में भी भारी नुकसान हुआ था.

इसके बाद 1971 में आई बाढ़ में नर्मदा नदी का जलस्तर 171.680 मीटर तक पहुंच गया था. साल 1984 की बाढ़ में 170.640 मीटर, साल 1994 में 170.00 मीटर, साल 2003 में जलस्तर 168.690 मीटर तक पहुंच चुका था. बता दें कि ओंकारेश्वर बांध से पानी छोड़े जाने के बाद ओंकारेश्वर के सभी घाट क्षतिग्रस्त हो गए हैं.

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