खरगोन। देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ने कहा कि था कि 'जब राह में अंधेरा ही अंधेरा हो और दूर तक रास्ता नहीं दिखाई दे, तो थोड़ा आगे चलकर देखना चाहिए, हो सकता है आगे उजला सवेरा मिल जाएं'. पूर्व राष्ट्रपति कलाम इन विचारों को जिले के भगवानपुरा विकासखंड के बहादरपुरा की रहने वाली सारिका शांतिलाल शायद ही जानती हो या उसे पता हो. क्योंकि सारिका एक तो अपनढ़ है और दूसरा जिंदगी ने ऐसा मौका नहीं दिया कि वो कोई कहानी सुने या टीवी देखकर ज्ञानार्जन करें. अनजाने में ही सही अपनी सुझबुझ के साथ सारिका अपने हौसले के सहारे चलकर अंधेरों से कही दूर निकलकर उजले उजाले तक तो पहुंच गई है. लेकिन आज भी उसे साफ और स्वच्छ उजाले की तलाश है.
- 15 वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में पति की हुई मौत
15 वर्ष पूर्व एक सड़क दूर्घटना में सारिका के पति की मौत हो गई थी. इस घटना ने सारिका को झकझोर कर रख दिया. इसी दिन से सारिका के जीवन में अंधेरे ने अपना बसेरा कर लिया था. शांतिलाल अपने पीछे बु़ढ़े मां-बाप और एक 6 माह की शिवानी और 18 माह की नैना को सारिका के सुपुर्द कर गए थे. अब परिवार में 4 सदस्यों को पालने और बेटियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी सारिका के कंधों पर आ गई. पैतृक संपत्ति के नाम पर बस एक झोपड़ी ही है, कोई खेत भी नहीं. ऐसे हालात में आदिवासी महिला सारिका ने हिम्मत नहीं हारी और मजदूरी को अपना हथियार बनाया.
- 150 से 200 रूपए मिलती है मजदूरी
सरिका आज भी मजदूरी करती है. उसकों कभी 150 रूपए तो कभी 200 रूपए मजदूरी से मिलते है. सप्ताह में 1200 रूपए की कमाई के 4 हिस्से कर घर गृहस्थी का मैनेजमेंट करती है. एक हिस्सा बुढे़ सांस-ससुर का, दूसरा हिस्सा बड़ी बेटी की पढ़़ाई के लिए, तीसरा हिस्सा छोटी बेटी के लिए और चौथा हिस्सा अन्य खर्चों और आपात समय में काम लाती है. इसी हिस्से से सारिका बड़े मैनेजमेंट के साथ सभी सदस्यों की देखभाल कर रहीं है. हालांकि कभी-कभी बड़ी बेटी नैना भी अपनी मां के साथ छुट्टी के दिनों में मजदूरी कर हाथ बंटाती है. बड़ी बेटी 12वीं एग्रीकल्चर विषय पढ़ रही है. छोटी बेटी डॉक्टर बनना चाहती है. मां सारिका का भी यही सपना है कि वो उसके सपने पुरे हो.